भारत में आरएसएस व बीजेपी हमेशा दो नीतियों का सच लिए होता है. लोकतांत्रिक समाज में खुद को सही ठहराने के अक्स में उसका प्रयास समाज को सच से परे मिथ के सागर में डूबोना होता है.
रांची : हिडन एजेंडे के मद्देनजर देश में आरएसएस व बीजेपी दो नीतियों के साथ आगे बढ़ने का सच लिए होता है. जिसके अक्स में उसका एक मात्र प्रयास भारतीय समाजक को सच से परे मिथ के सागर में गोता लगवाना होता है. चूँकि सामन्तवाद की घुसपैठ देश में हर क्षेत्र व संस्थान में है. मसलन उसे फिल्म जगत का भी सहयोग प्राप्त है. जिसके अक्स में वह धनबल बल, लोभ औए इतहास चीड-चाद के आसरे आसानी से बहुजन को ही बहुजन के सामने दुश्मन के रूप में पेश कर देता है.
ज्ञात हो, लोकतंत्र में इतिहास गढ़ने की शक्ति आम जनता के हाथों में होती है जो सामन्ती मानसिकता को डराती है. इसलिए विकृतिकरण के आसरे सामन्ती मानसिकता के द्वारा असल इतिहास छिपाने का प्रयास होता है. ताकि बीजेपी-आरएसएस लूट मानसिकता पर आधारित अपनी विचारधारा और राजनीति को लोकतांत्रिक समाज में सही ठहरा सकें. बीजेपी-आरएसएस का यह सामाजिक प्रयोग झारखण्ड जैसे आदिवासी-दलित बाहुल्य राज्य में स्पष्ट देखा जा सकता है.
एक आदिवासी सीएम को झारखण्ड की लड़ाई आरएसएस-बीजेपी से नहीं बल्कि एक आदिवासी से पड़ रही है लडनी
सामंतवाद के इस दर्शन के अक्स में, झारखण्ड में बीजेपी-आरएसएस का सच चालाकी से एक आदिवासी को ही एक आदिवासी सीएम के जनहित प्रयासों के सामने बाधक बना खडा करने का है. ज्ञात हो झारखण्ड की गरीबी, अधिकार हनन जैसे समस्याओं के मूल में पूर्व के बीजेपी सरकारों की नीतियां व राजनीति रही है. अयोग्य घोषित होने की परिस्थिति में जेवीएम सुप्रीमों के रूप में बाबूलाल मरांडी सामने आए. जिनका अस्तित्व बीजेपी-आरएसएस के नीतियों के विरोध पर टिका रहा.
वर्तमान झारखण्ड में बाबूलाल जैसा आदिवासी बीजेपी-आरएसएस का प्रमुख चेहरा है. जाहिर है, इसके पीछे मौकापरस्ती व लोभ मुख्य कारण हो सकता है. जिसके अक्स में बीजेपी और आरएसएस ने सीएनटी-एसपीटी शाजिश, मूल वासियों के अधिकार हनन, बाहरी समर्थन जैसे तमाम कुकृत्यों को एक आदिवासी के कंधे पर डाल खुद को पाक-साफ़ बता दिया है. और एक आदिवासी सीएम को झारखण्ड की मूल लड़ाई आरएसएस-बीजेपी से नहीं बल्कि एक आदिवासी से लडनी पड़ रही है.