रामगढ़ उपचुनाव : महतो समाज के लिए कठिन परीक्षा की घड़ी लेकर आया है. सामंती थिन्कटैंक व राजनीति ने उसके झारखंडी प्रत्याशी के समक्ष चालाकी से सामंती विचार के प्रत्याशी को ला खड़ा किया है.
रामगढ़ : झारखण्ड प्रदेश में बीजेपी का सच यह है वह आजसू के कंधे पर बंधूक रख महतो समाज के प्रखर नेतृत्वकर्ताओं को अपना शिकार बना रहा है. और आजसू अपनी पार्टी के विस्तार हेतु इस रास्ते को आसान समझ उसका साथ देता दिखा है. लेकिन, देश भर में बीजेपी का सच यह भी है कि वह क्षेत्रीय पार्टियों को बिना डकार लिए निगल जाता है. ऐसे में न केवल आजसू ज़मीनी राजनीति से दूर होती जा रही है महतो समाज पर भी झारखंडी समाज से पृथक होने का खतरा बढ़ गया है.
रामगढ़ उपचुनाव महतो समाज के लिए कठिन परीक्षा की घड़ी लेकर आया है. सामंती थिन्कटैंक व राजनीति ने उसके झारखंडी प्रत्याशी के समक्ष चालाकी से सामंती विचार के प्रत्याशी को ला खड़ा किया है. एक की राह स्पष्ट तौर पर 1932 स्थानीय, झारखण्ड समर्थित नियोजन, ओबीसी आरक्षण, जल-जंगल-ज़मीन व शिक्षा की राह जाती है. तो दूसरे की राह सामंतवाद का साथी, झारखंडी अधिकार के पीठ पर छुरा भोंकने, स्कूल बंद करने व पूँजीवाद के सहायक का सच लिए है.
ऐसे में यह उपचुनाव महतो समाज के झारखण्ड के प्रति मंशा को न केवल स्पष्ट करेगी. झारखण्ड के प्रति उसकी निष्ठां को भी प्रदर्शित कर सकती है. यह देखना दिलचस्प होगा कि वह झामुमो गठबंधन गठबन्ध के साथ जा कर अपनी बेटी का पक्ष लेते हुए सामन्तवाद को दोटुक जवाद देता है या फिर बीजेपी गठबंधन के प्रत्याशी के साथ जा अपनी अलग मंशा व राह स्पष्ट करता है. हालांकि, अबतक के इतिहास में यह समाज स्पष्ट रूप से झारखंडी मानसिकता के साथ अडिग खड़ा रहा है.