रघुवर भूल गए कि झारखंड को मिले भूख से मौत, बेरोज़गारी व मॉब लिंचिग की पहचान उनकी देन।

बीजेपी के रघुवर भूल गए कि झारखंड को मिले भूख से मौत, बेरोज़गारी व मॉब लिंचिग की पहचान उनकी ही देन है

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धर्मांतरण बढ़ावा का झूठा प्रोपगेंडा रचने वाले पूर्व मुख्यमंत्री ने देश के मान चित्र पर झारखंड की छवि बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

शहीद जवानों के नाम पर राजनीति करने की परम्परा की शुरुआत भी राज्य में बीजेपी के रघुवर सत्ता ने की – इतिहास झूठलाया नहीं जा सकता…

रांची। फासीवादी विचारधारा को जब भी सत्ता की दूरी का एहसास सताता है और जनमानस के सवाल उन्हें डराते हैं तो वह अक्सर धर्म का दामन थाम लेती है। इसका ताज़ा उदाहरण बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा हेमंत सरकार पर धर्मांतरण को बढ़ावा देने के आरोप में देखा व महसूस किया जा सकता था। जहाँ उन्होंने देश के गिरती जीडीपी, केंद्र से राज्य को मिले जीएसटी क्षतिपूर्ति में धोखा पर बयान देने से बचने के लिए धर्म का सहारा लेना ही बेहतर समझा।

रघुवर दास का बयान है कि हेमंत सरकार की शह पर राज्य में धर्मांतरण का खेल शुरू हो गया है। दरअसल, सत्ता से दूरी की खीज में उनके भीतर इतनी बोखलाहट भर चुकी है। कि वह अपनी कार्यशैली की समीक्षा करने के बजाय फिर से सत्ता तक पहुँच बनाने के लिए धर्म का आड़ लेना शुरू कर दिया हैं। जबकि उनकी झारखंडी चेतना के विपरीत कार्यशैली अब इतिहास का हिस्सा बन चुका है। जिसे न झुठलाया जा सकता है और न ही झारखंडी जनता भूल सकती है।  

बीजेपी के रघुवर

साहब के कार्यकाल में झारखंड को भूख से मौत, मॉब लिंचिग, शहीदों पर राजनीति, फ़र्ज़ी एनकाउंटर जैसे पहचान मिले। अलग झारखंड के इतिहास में पहली बार था जब रघुवर सरकार में युवाओं को बेरोज़गारी का सर्वाधिक सामना करना पड़ा। कई युवाओं ने आत्महत्या की। भ्रष्टाचार के कई रिकॉर्ड ध्वस्त हुए। धर्मांतरण के आड़ में आदिवासियों में फूट करवाए गए। किसानों का अधिकारों पर हमले हुए आदि… 

ऐसा भी नहीं था कि रघुवर दास की अनभिज्ञता में यह सब हुआ। बल्कि उनहोंने अपनी नीतियों व सत्ता के मोह में केंद्र का खिलौना बन इन तमाम चीजों को अंजाम दिया। रही सवाल हेमंत सरकार में धर्मांतरण बढ़ावा का तो यह जांच का विषय हो सकता है। लेकिन, इसके आड़ में रघुवर के कुशासन को कतई नहीं भूलाया जा सकता है।  

रघुवर

बीजेपी सरकार में झारखंड मॉब लिंचिंग का अड्डा बना चुका था 

रघुवर सरकार ने न केवल झारखंड की पहचान फासीवादी एजेंडे  मॉब लिंचिग से कराई बल्कि राज्य को मॉब लिंचिग का अड्डा भी बना दिया। जबकि झारखंडी भावना का इससे दूर का भी नाता नहीं रहा है। 15 से अधिक  घटनाओं में कई निर्दोष की हत्याएँ हुई। एक विशेष समुदाय वर्ग के लिए प्रस्तावित इस घटना ने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर झारखंड की पहचान को कलंकित किया। पूरे प्रकरण में पुलिस केवल मूकदर्शक बन रघुवर भजन गाती रही। लेकिन, साहेब रघुवर बेशर्मी के साथ कहते रहे, “ऐसा और जगह भी तो होता है”। और भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा द्वारा “मॉब लिंचिग” के आरोपियों को गले लगाना, बीजेपी की दोहरी राजनीति से जनता का परिचय करवाया।  

एक-एक कर 20 गरीब भूख से मर गए और बीजेपी व रघुवर सरकार कोई भूखा नहीं कहती रही 

रघुवर

रघुवर सरकार जनता को भूख से मारने के लिए भी विश्व भर में अपनी पहचान बनायी है। ज्ञात हो कि रघुवर सरकार की नीतियों से 20 से अधिक लोग राज्य में भूख से मरे। हज़ारीबाग़ के इंद्रदेव माली, लातेहार के रामचरण मुंडा और सिमडेगा के संतोषी देवी की भूख से मौत ने विश्व को हिला दिया था। अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर भी सवाल गूंजे थे। इसके बावजूद रघुवर सरकार मानती रही कि उनके राज में कोई भूखा नहीं है। और आंकड़ों के खेल से साबित करने का प्रयास करती रही कि ये मौतें भूख से नहीं हुई।

किसानों के आत्महत्या से भी नहीं पसीजा था उस बीजेपी सरकार का दिल

झारखंड में पहली बार सबसे अधिक किसानों की आत्महत्या का रिकॉर्ड भी बीजेपी के रघुवर सरकार के ही नाम है। केंद्र की मोदी सत्ता व डबल इंजन सरकार ने राज्य के किसानों के लिए 133 योजनाओं की शुरूआत के ढिंढोरे पीटे। लेकिन, परिणाम में केवल 3 साल के भीतर 12 से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली। चान्हो के पतरातू गांव के कर्ज में डूबे किसान लखन महतो और सुतियांबे के बलदेव महतो उर्फ वासुदेव की मौत इसके सटीक उदाहरण हो सकते हैं। 

इतने अन्नदाताओं केमौत के बाद भी रघुवर सरकार का दिल नहीं पसीजा। सरकार द्वारा आत्महत्या करने वाले किसानों के परिजनों को मुख्यमंत्री कोष से 2-2 लाख रुपए की आर्थिक मदद की घोषणा भी मिथ्या साबित हुई। किसी एक भुक्तभोगी को भी वह राशि मिलने की खबर नहीं है। एक आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2017 में 7, 2019 के जुलाई-अगस्त माह में 3 किसानों ने आत्महत्या की थी। यह आंकड़े उस सरकार के निर्दयता के सबूत हो सकते है। 

बीजेपी के रघुवर दास में शहीद सैनिकों पर राजनीति करने की परंपरा की शुरुआत 

बीजेपी के ऱघुवर दास ने राज्य में ओंछी राजनीति की पराकाष्ठा भी पार की। सत्ता पाने के लिए देश के नेता केवल विपक्ष के साथ राजनीति करते हैं। जिसमे सत्ता पक्ष अपनी उपलब्धियों को व विपक्ष सत्ता पक्ष के गलत नीतियों को जनता तक पहुंचाते है। लेकिन, रघुवर ने तो शहीद सैनिकों के नाम पर राजनीति करने की परम्परा शुरू की। 

पुलवामा हमले में शहीद हुए झारखंड के सैनिकों के परिवारों को रघुवर सरकार द्वारा आर्थिक मदद देने की घोषणा हुई थी। 14 फरवरी को पुलवामा हमले के दो दिन बाद, 16 अगस्त को स्वयं रघुवर दास ने घोषणा की थी कि वो और उनके मंत्रिमंडल के तमाम मंत्री अपनी एक महीने की सैलेरी शहीदों के परिजनों को देंगे। साथ ही उस घोषणा में करीब 1.90 लाख राज्य कर्मियों के एक दिन का वेतन लगभग 47 करोड़ भी शामिल था। लेकिन, रघुवर का यह वादा भी केवल दिखा ही रहा। कर्मचारियों से लिए गए राशि का क्या हुआ जांच का विषय है।  

रघुवर

झारखंड के सेलेब्रेटी भी बीजेपी के रघुवर के झूठे वादों से अछूते नहीं रहे

बीजेपी के रघुवर दास के झूठे वादे से झारखंड के सेलेब्रेटी भी अछूते नहीं रहे। अपने हर सभा में रघुवर कहते थे कि अगर पूरे राज्य में 24 घंटे बिजली नहीं दिया तो वोट मांगने नहीं जायेंगे। न राज्य को 24 घंटे बिजली मिली, न ही रघुवर दास जनता से वोट मांगने से चूके। ज्ञात हो कि, झारखंड को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने वाले क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की पत्नी साक्षी को ट्वीट कर बिजली कटौती पर नाराज़गी जतानी पड़ी थी। हालांकि, बाद में साक्षी ने उस ट्वीट को हटा लिया था।

बीजेपी सरकार में कुपोषण, बेरोज़गारी, फ़र्ज़ी एनकाउंटर, भ्रष्टाचार जैसे के खेल की लंबी है सूची

वर्तमान सरकार पर आरोप लगाने वाले रघुवर दास खुद के दामन में लगे के दागों क्यों नहीं देखते। उनकी गलत नीति से राज्य भर में करीब 48 % बच्चें कुपोषित हुए। उनके ही शह पर राज्य में फ़र्ज़ी एनकाउंटर और भ्रष्टाचार के गंदे खेल गये। युवाओं ने बेरोज़गारी से त्रस्त हो आत्महत्या किए। ऐसे में सवाल है क्या भाजपा द्वारा राजनीति के लिए धर्म का दामन थामना उस सरकार के पापों को धो  पायेगी। और वह केवल धर्म की नैया पर सवार हो वैतरणी पार कर सत्ता तक पहुँच जायेगी? क्या झारखंड की जनता उसके जोल्मों को माफ़ कर देगी…?

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