पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं “बाबूलाल”, बीजेपी में जाते ही बिगड़ा है मानसिक संतुलन, नहीं की जा सकती उनसे जनजाति उत्थान की कल्पना!

जनजाति विकास के लिए हेमन्त सरकार ने की थी जनजाति सलाहकार परिषद (TAC) की नयी नियमावली का गठन, विरोध कर बीजेपी ने पेश की ओछी राजनीति

क्या बाबूलाल नहीं जानते हैं कि पूर्ववर्ती सरकार में जब एक गैर आदिवासी TAC का अध्यक्ष था, तब जनजातियों की क्या स्थिति थी

रांची : राज्य की राजनीति को बेहतर बनाने और झारखण्ड के विकास को लेकर बीजेपी नेता अपने कामों को बखान हमेशा करते है. लेकिन देखा जाए, तो उनके सभी कामों के पीछे एक ओछी राजनीति की भावना छिपी रहती थी. यह ओछी राजनीति और कुछ नहीं, बल्कि गैर बीजेपी पार्टी अगर सत्ता में आ जाए, तो उसे बदनाम करने से जुड़ी है. ठीक अब इसी तरह की राजनीति दलबदलू नेता बाबूलाल मरांडी और उनके दो जनजाति समाज के विधायक कर रहे हैं. 

हेमन्त सरकार में गठित किये गये जनजाति सलाहकार परिषद (TAC) की बैठक को पूर्वाग्रह से ग्रसित बाबूलाल मरांडी ने जिस तरह से विरोध किया है, वह सीधे-सीधे उनकी और बीजेपी नेताओं की ओछी राजनीति का परिचायक है. TAC नियमावली और उसकी पहली बैठक का विरोध करने के लिए बाबूलाल ने जिस तरह का तर्क दिया है, वह साफ बताता है कि उनका मानसिक संतुलन बीजेपी में जाते ही बिगड़ गया है. बता दें कि भाजपा नेता ने हेमन्त सरकार के बनाये जनजाति सलाहकार परिषद की पहली बैठक का बहिष्कार किया है.

बाबूलाल को बताना चाहिए कि बीजेपी की बनायी नियमावली सही व संवैधानिक, तो हेमन्त सरकार की असंवैधानिक कैसे?

बाबूलाल का तर्क है कि हेमन्त सरकार में बनायी गयी TAC पूरी तरह से अंसवैधानिक और अपूर्ण है. लेकिन ऐसा कहने से पहले बाबूलाल मरांडी यह क्यों भूल जाते है कि जब किसी अन्य जनजाति बहुल वाले राज्य में सत्तासीन रही भाजपा सरकार ने ऐसा किया था, तो वह सही था. तो फिर हेमन्त सरकार की बनायी नियमवाली गलत कैसे हुई. बाबूलाल जानते है कि छत्तीसगढ़ की रमन सरकार ने भी वहां के जनजाति समाज के लिए बनायी TAC का गठन इसी तर्ज पर किया था. जिसे बाद में उच्चतम न्यायालय ने मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र वाला बताय था. ऐसे में बाबूलाल को यह जरूर बताना चाहिए कि हेमन्त सरकार की नियमावली गलत कैसे हुई. दरअसल बाबूलाल भी यह जानते हैं कि नियमावली गलत नहीं है. यहीं कारण है कि पहले TAC  नियमावली को गलत बताने वाले बाबूलाल हाईकोर्ट में जाने की बात करते हैं, लेकिन जाने की हिम्मत नहीं दिखाते.

जनजाति समाज की एक महिला नेता भी TAC की सदस्य है, लेकिन जिसका मानसिक संतुलन बिगड़ा है, उसे यह नहीं दिखेगा.

बाबूलाल ट्विटर पर TAC का विरोध करते हुए लिखते है कि परिषद में किसी महिला का प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है. एक बार फिर अपनी बिगड़े मानसिक संतुलन का परिचय बाबूलाल यहां पर देते दिखे. शायद उनको पता नहीं, या जानकार भी ओछी राजनीति वे कर रहे हैं. क्योंकि हेमन्त सरकार के बनाये TAC में जामा से तीन बार विधायक रही और जनजाति समाज की कद्दावर नेता सीता सोरेन भी एक सदस्य है. 

रघुवर दास के TAC अध्यक्ष रहते जनजाति का क्या उत्थान हुआ, यह किसी से छिपा नहीं है. 

TAC  नियमावली और पहली बैठक का विरोध करते हुए बाबूलाल कहते है कि अध्यक्ष तो जनजाति समाज से ही बनाया जाना चाहिए. एक बार फिर बाबूलाल भूल गये कि चुनाव में प्रचंड जीत के साथ सत्ता में आने वाले हेमन्त सोरेन स्वंय एक जनजाति समाज से आते हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद बाबूलाल ने तो हेमन्त सोरेन को आशीर्वाद तक दिया था. लगता है कि जब पूर्ववर्ती सरकार में रघुवर दास सीएम थे, तो TAC के अध्यक्ष वहीं थे. भाजपा नेता के अध्यक्ष रहते राज्य की जनजाति समाज का विकास कैसा हुआ यह किसी से छिपा नहीं है. क्या बाबूलाल यही चाहते है कि फिर से TAC का अध्यक्षा एक गैर-जनजाति व्यक्ति हो. उस दौरान जेवीएम सुप्रीम रहते बाबूलाल तो इसका विरोध ही करते हैं.

बाबूलाल या बीजेपी नेता बैठक में आये या नहीं आये, पर हेमन्त सरकार तो काम करेगी ही.

बीजेपी जनजाति नेता के बहिष्कार के बावजूद हेमन्त सरकार ने TAC की पहली बैठक कर यह संकेत दे दिया है कि उनका मुख्य ध्येय राज्य की जनजातियों का विकास और उत्थान करना है. बाबूलाल या बीजेपी के सदस्य नेता बैठक में आये या नहीं आये, लेकिन उनकी सरकार तो काम करती रहेगी.

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