झारखण्ड : कोरोना बचाव में लगाए गए प्रतिबन्ध पर श्वेत पत्र की मांग करने वाले दीपक प्रकाश व तमाम भाजपा कार्यकर्ता को पहले बताना चाहिए कि क्यों वह पूरे कोरोना महामारी काल के दौरान घर में दुबके रहे. बाहर निकले भी तो केवल विधि व्यवस्था बिगाड़ हेमन्त सरकार को अस्थिर करने के प्रयास में…
रांची : कोरोना संक्रमण से बचाव में केंद्र द्वारा लाये गया अव्यवस्थित लॉकडाउन से आम जनता व देश की आर्थिक स्थिति का हश्र क्या हुआ है, किसी से छिपी नहीं है. यह पीड़ा झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के वक्तव्यों में कई बार झलका है. हेमन्त के फैसलों में यह दिखता है कि उन्हें गरीब-मजदूर, व्यवसायियों की समस्याओं का भान है. लॉकडाउन के दौरान उनके द्वारा जनहित में कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की गयी. मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराया, पर इससे इनकार नहीं करते कि, लॉकडाउन ने आर्थिक तौर पर सरकार, गरीब-मजदूर, व्यवसायियों कमोवेश हर तबके की आर्थिक कमर तोड़ दी है.
नतीजतन, संक्रमण की तीसरी संभावित लहर को देखते हुए हेमन्त सरकार द्वारा लगाये गये प्रतिबन्ध में लोगों की आजीविका का पूरा ध्यान रखा गया है. लेकिन, विडंबना है कि पिछले 2 सालों से मौत पर राजनीति कर रहे भाजपाइयों को आखिर इस बार भी यह सच नहीं दिखा. वैसे भी जिसके पास महामारी में सड़क नापते शहीद मजदूरों का आंकड़ा तक न हो, उसे दिखेगा भी कैसे. इन्हें न तो गरीब-मजदूर, व्यवसायियों की चिंता है न ही राज्य के राजस्व की. चिंता है तो केवल अपनी राजनीति की. मसलन, इस दफा भी हेमन्त सरकार द्वारा लगाये गए कोरोना प्रतिबांध को लेकर राजनीति करने को तैयार हैं. ज्ञात हो, सरकार द्लवारा गए प्रतिबन्ध पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश द्वारा सरकार से कोरोना प्रतिबन्ध पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग की गयी है.
दीपक प्रकाश को ज्ञात होना चाहिए कि अभी श्वेत पत्र से ज्यादा जरूरी आजीविका और संक्रमण को रोकना है
एक परिपक्व राजनीतिज्ञ, दीपक प्रकाश को इतना तो वैचारिक ज्ञान होना चाहिए कि अभी कोरोना से बचाव पर श्वेत पत्र जारी करने से ज्यादा जरूरी, आजीविका को प्रभावित किये बिना संक्रमण को रोकना है. दरअसल, गरीब-दलित विरोधी मानसिकता वाले भाजपाइयों को समाजिक समस्या की चिंता कहां है. सर्वविदित है कि लॉकडाउन से जब गरीबों के रोजगार छिने. मौतों का ग्राफ बढ़े, तो मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने आगे बढ़कर मदद का हाथ बढाया और कहा कि सरकार गरीबों को कफन भी निःशुल्क उपलब्ध कराएगी. लेकिन, भाजपाइयों द्वारा तब भी गंदी मानसिकता का परिचय देते हुए इसे मुद्दा बना राजनीति की गयी थी.
आम जीवन को प्रभावित किये बिना प्रतिबन्ध का पहल, सराहनीय
सोमवार को हेमन्त सरकार ने कोरोना रोक-थाम में प्रतिबन्ध (आंशिक रूप से मिनी लॉकडाउन जैसा) लगाया गया है. जो एक सराहनीय कदम है. सरकार द्वारा वैसे संस्थानों को बंद किया गया है, जिससे आम जन-जीवन प्रभावित न हो, और संक्रमण के प्रसार को भी काफी हद तक कंट्रोल किया जा सके. जैसे -रेस्टोरेंटों को बंद नहीं किया गया है, केवल क्षमता पर प्रतिबंध लगाया गया है. इंटर स्टेट बसों के परिचालन पर रोक नहीं लगायी गयी है, पर कोरोना गाइडलाइन के नियमों का पालन (मास्क पहनना, सोशल डिस्टेसिंग, सैनिटाइजर का उपयोग) अनिवार्य कर दिया गया है. सरकारी और निजी क्षेत्रों का काम प्रभावित न हो और संक्रमण भी न फैले, इसलिए क्षमता का 50% लोगों की ही उपस्थिति की अनुमति दी गयी है.
हेमन्त सरकार ने एक तरफ पहुंचायी राहत, तो भाजपा नेता-कार्यकर्ता दुबके रहे घरों में
पिछले लॉकडाउन को लेकर दीपक प्रकाश हेमन्त सरकार पर आरोप लगाते रहे कि दूसरी लहर में राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गयी थी. लेकिन, दीपक प्रकाश ने अपने पार्टी नेताओं के कार्यशैली को सिरे से ख़ारिज करते दिखे. केंद्र की सरकार ने जब झारखंडवासियों को मरने के लिए उसके भरोसे छोड़ दिया, तो राज्य के मुखिया हेमन्त सोरेन ने ही अपने लोगों की सुध ली और मदद लेकर पहुंची. ऑक्सीजन की कमी को उन्होंने राज्य संसाधन से पूरा कर असंभव को संभव कर दिखाया. सरकारी अस्पतालों में बेडों की व्यवस्था करायी. लोगों को निःशुल्क भोजन उपलब्ध कराया.
दूसरी तरफ दीपक प्रकाश और उसके जैसे राज्य के तमाम भाजपा नेता अपने घरों में दुबके रहे. किसी भाजपा नेता ने इतनी हिम्मत नहीं दिखाई जिससे कहा जा सके कि वह राजनीति से परे गरीब-दमित झारखंडवासियों को राहत पहुंचाने आगे आये हों. वह बाहर आये तो केवल विधि व्यवस्था को तोड़ने जिससे हेमन्त सरकार अस्थिर हो सके. या फिर उनके द्वारा मौकापरस्त के भांति गाल बजाकर केवल राजनीतिक रोटी सकने प्रयास हुआ. जिसका एक रूप हम मौजूदा दौर में देख सकते हैं.