बीजेपी चरित्र! बात विकास की, नीतियां आदिवासी खात्मे की

मोदी सरकार और भाजपा डबल इंजन सरकार की वह नीतियां जिसके अक्स में आदिवासियों के बीच खड़ा है अस्तित्व का संकट. इस फेहरिस्त में सीएए/एनआरसी, वन संशोधन विधेयक 2023, कोल बेयरिंग एरिया अमेंडमेंट बिल 2023.

रांची : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा और आरएसएस आदिवासी विकास की सिर्फ बात और प्रतीक की राजनीती करती दिखती है. भाजपा नेता दावा करते पाए जाते हैं कि मोदी सरकार की नीतियां विकास की राजनीति पर टिकी है. ऐसे में समीक्षा करना जरुरी हो जाता है कि मोदी सरकार और बीजेपी के प्रभाव में में बनने वाली नीतियां क्या झारखण्ड समेत देश भर के आदिवासी समाज को सकारात्मक या नकारात्मक तौर पर प्रभावित करेगी?

बीजेपी चरित्र! बात विकास की, नीतियां आदिवासी खात्मे की

ऐसे में मणिपुर त्रासदी प्राथमिक तौर पर स्पष्ट जवाब देती दिखती है. मोदी सरकार और उसकी डबल इंजन सरकार की सरकार के नीतियों के अक्स में आदिवासी वर्ग के समक्ष अस्तित्व का संकट आ खड़ा हुआ है. आदिवासियों का स्तित्व बचाने का यह संघर्ष सिर्फ मणिपुर ही सिमित नहीं, पूरा देश और उसका पहाड़ी इलाका इसी त्रासदी से गुजर रहा है. मोदी सरकार की तीन नीतियां न केवल जनजातियों समाज का जीवन नारकीय, पलायन को भी विवश कर रहा है.

मसलन, केंद्रीय सरकार इन तीन नीतियों विरोध झारखण्ड राज्य के आदिवासी मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन व उनकी सरकार मुखरता से कर चुके हैं. लेकिन, सत्ता व अधिक सीटों के घमंड में चूर मोदी सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ रहा. आदिवासी पहचान को समर्पित हेमन्त सरकार के द्वारा भेजी गयी सरना धर्म कोड प्रस्ताव और आरक्षण बढ़ोतरी विधेयक को वापस लौटा केन्द्रीय भाजपा सरकार ने इसका स्पष्ट संकेत दे दिया है कि उपरोक्त आरोप तथ्यात्मक हैं.

वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 की.

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कई मंचों से कहा है कि केंद्र सरकार के लाए वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 से आदिवासियों को उनके वन अधिकारों से वंचित करेगा.‌ नये अधिनियम के तहत वन अधिनियम, 1980 में परिवर्तन किये गये हैं. जिसके तहत किसी प्रोजेक्ट में ग्राम सभा की जरूरत ही नहीं है. जिसे आदिवासियों के हित कुचले जायेंगे तो दूसरी ओर ग्राम सभा का अधिकार का हनन होगा. जो स्पष्ट तौर पर आदिवासियों के अधिकारों का हनन है. जो समाज को चिंतित कर रहा है.

कोल बेयरिंग एरिया अमेंडमेंट बिल 2023 जनजातीय समाज पर डालेगा प्रतिकूल प्रभाव 

मोदी सरकार द्वारा लाए कोल बेयरिंग एरिया (एक्विजिशन एंड डेवलपमेंट) अमेंडमेंट बिल 2023से भी  झारखण्ड समेत देश भर के आदिवासियों के हक-अधिकारों का हनन होगा. जनजातीय समाज के हित में हेमन्त सरकार के द्वारा बिल का विरोध किया गया है. हेमन्त सरकार का मानना है कि इस अमेंडमेंट बिल के प्रावधानों में कई अनुचित बदलाव किए गए हैं. जिससे राज्यवासियों और जल, जंगल, जमीन और खनिज संपदा के दोहन को बढ़ावा देगा. 

  1. पूर्व के नियमों में सरकारी कम्पनियों को कोयला खनिज के खनन पट्टा की अवधि निर्धारित है. अब प्रस्तावित संशोधन में खनन पट्टा की अवधि खान का सम्पूर्ण जीवन काल होगा. सरकारी कम्पनियों को कोयला खनिज के खनन पट्टा की अवधि विस्तार के मामलों में राज्य सरकार को अतिरिक्त राशि की प्राप्ति नहीं हो पाएगी. 
  2. संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत आदिवासियों एवं मूलवासियों के भूमि को सुरक्षा एवं अधिकार मिला है. इससे वंचित कर सरकारी कम्पनियों के लिए अधिग्रहित भूमि को निजी संस्थाओं को अनेक आधार भूत परियोजनाओं के लिए उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान प्रस्तावित है.

सीएए/एनआरसी का भी पड़ेगा आदिवासियों पर प्रभाव 

मोदी सरकार के कार्यकाल में ऐसी पहली कई घटनाएँ घटी, जिसके अक्स में स्वतंत्र भारत के राजनीतिक इतिहास में कई समाज अपने अस्तित्व के लिए देशव्यापी आंदोलन करते दिखे. विरोध नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए), 2019 इसमें से एक है. आदिवासियों में इसका जोरदार विरोध देखा गया. 

आदिवासी समाज का स्पष्ट कहना था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम में कहा गया है कि नागरिकता धर्म के आधार पर दी जाएगी और लोगों को यह बताना होगा कि उनका धर्म क्या है. जबकि देश में आदिवासियों का कोई धर्म कोड परिभाषित नहीं किया गया. ऐसे में आदिवासी वर्ग को नागरिकता से वंचित हो जायेंगे. घुसपैठियों के रूप में वह चिन्हित किये जायेंगे.

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