प्लास्टिक मुक्त होने की दिशा में बढ़ा गुमला जिला, दोना-पत्तल का प्रचलन बढ़ा 

गुमला जिले में दुर्गम पहाड़ी एवं जंगली क्षेत्रों में बसनेवाली महिलाएं बनी परिवर्तन की वाहक. दोना-पत्तल बना कर परिवार की चला रही हैं आजीविका 

पलायन रोकने हेतु ये महिलायें अन्य महिलाओं को रोजगार से जोड़ने का कर रहीं है प्रयास 

गुमला : इन दिनों जिले में परिवर्तन की बयार बह रही है. इस बार परिवर्तन की वाहक बनी है दुर्गम पहाड़ी एवं जंगली क्षेत्रों में रहनेवाली महिलाएं. कजरी, सुंदर देवी और बूंद देवी, ये तीनों उन सैकड़ों महिलाओं की फेहरिस्त में है जो अहले सुबह जंगल में जाकर सखुआ की पत्तियां चुनती व तोड़ लाती है. फिर इन पत्तियों से बनते हैं सुंदर दोने और प्लेटे. जब ये बनकर तैयार हो जाती है तो इसे बाजार में बेच दिया जाता है. 

जिला गुमला के डुमरी प्रखंड के मझगाँव पंचायत में स्थित बाबा टांगीनाथ धाम की पहाड़ी के ऊपर बसा गाँव लुचुतपाठ की महिलाओं की यह दिनचर्या है. समूह में बैठकर सारा काम किया जाता है. इससे महिलाओं की अच्छी आमदनी हो जाती है. विदित हो कि इस गाँव में 135 परिवार बसते हैं. गाँव की ज्यादातर महिलाएं दोना के कारोबार से जुड़कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुदढ़ कर रही हैं. इस गाँव के साथ-साथ जिले के सभी प्रखंडों में बसने वाली गरीब महिलाएं भी दोना बनाकर पूरे गुमला जिले में सप्लाई करती हैं. 

गुमला को प्लास्टिक मुक्त बनाने की दिशा में इन महिलाओं का बेमिसाल योगदान 

कुछ वर्षों पहले तक इन महिलाओं के पास आय का कोई स्रोत नहीं था. इस काम से जहां महिलाओं की अच्छी आमदनी होती है वहीं गुमला जिले को प्लास्टिक मुक्त बनाने की दिशा में वे अपना योगदान दे रही हैं. इन महिलाओं को प्रशासन की ओर से सराहना व प्रोत्साहन भी मिला है. अब हालात यह है कि जिले में डिसपोजल प्लेट से ज्यादा पत्तों से बने दोनों का उपयोग किया जाता है. जिले के सभी प्रखंडों के होटलों, धार्मिक स्थलों एवं शादी समारोहों आदि उत्सवों के लिए सखुआ पत्ते से बने दोना एवं पत्तल का उपयोग हो रहा है. यहां स्टील के प्लेट व डिस्पोजल प्लेट का इस्तेमाल नहीं के बराबर है. 

क्या कहती है ये कर्मठ महिलाएं

कजरी- जंगल से पत्ता लाकर गाँव में दोना बनाने का काम मैं करती हूँ. इससे आमदनी हो जाती है. गाँव में रोजगार का साधन नहीं है. इसलिए इस कारोबार से से जुड़ी हूं.

सुंदर देवी- रोजगार की तलाश में मैं गाँव से पलायन कर गई थी. लेकिन अपना गाँव अपना ही होता है. जितनी मेहनत दूसरे के लिए करती थी, अब अपने लिए करती हूँ. जिससे अच्छी आमदनी भी हो जाती है.

बूंद देवी- जिले में दोनों की खपत बहुत अधिक है. पत्तल-दोना के लिए कुछ रूपये नहीं लगते. जंगल से तोड़कर लाते हैं और दोना बनाकर सप्ताह में एक दिन जाकर बाजार में बेच देते हैं.

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