पत्थलगड़ी और सीएनटी-एसपीटी एक्ट मामलों में दर्ज मुकदमे वापसी के मायने

पत्थलगड़ी और सीएनटी-एसपीटी एक्ट मामलों में दर्ज मुकदमे वापसी का फैसला, जनता और सरकार के बीच न केवल फिर से वैचारिक भरोसे को बहाल करेगा, ग्रामीण व गरीबों का लोकतंत्र पर विश्वास को भी मजबूती देगा।

रांची : पत्थलगड़ी आन्दोलन। सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन के विरोध में आंदोलन। झारखंड में भाजपा की डबल इंजन सत्ता का वह सच लिए है। जिसके अक्स में तानाशाही के मद्देनजर आंदोलन को आंदोलनकारियों के खिलाफ मुकदमों को दर्ज कर रौंदने का प्रयास है। लोटा-पानी सत्ता का झारखंडी जायज विचारों को हथकड़ियों में कैद करने का सच है। लेकिन, मौजूदा हेमत सत्ता द्वारा ऐसे तमाम मामलों को वापस लेने का निर्णय केवल झारखंडी विचारों के साथ इंसाफ करने का सच भर नहीं। झारखंड की मूल समस्याओं के समझ व निराकरण का भी सच लिए हुए है। जो राज्य वासियों के वैचारिक शान्ति में महत्वपूर्ण और दूरगामी कदम साबित हो सकता है।

झारखंड की भूमि जहाँ खनिज-सम्पदा से भरपूर होने के सच से जुड़ा है। वहीं भाजपा की राजनीति झारखंड में बाहरियों की लूट मानसिकता से सरोकार रखने का सच लिए है। जाहिर है तमाम मामलों में भाजपा का रवैया गैर जिम्मेदाराना होना स्वाभाविक सच हो सकता है। ऐसे में झारखंडी मानसिकता की राजनीती से जुडी हेमंत सरकार का नजरिया इन समस्याओं को लेकर भिन्न रहेगा। मसलन, हेमंत सरकार द्वारा कठोर कदम न उठा झारखंडी जनता से सरोकार बनाना,  समस्याओं के हल निकालने की दिशा में, यह तरीका झारखंड के विकास में भी दूरगामी असर डाल सकता हैं।  

क्या हुआ था भाजपा शासन में पत्थलगड़ी और सीएनटी-एसपीटी मामले में

ज्ञात हो कि भाजपा की पिछली रघुवर सरकार समस्याओं का हल निकाने के बजाय, आग में और घी डालने का काम किया था। दरअसल, भाजपा के शासन काल में, खूंटी के गांवों में एक के बाद एक पत्थलगड़ी होने लगी थी। जो परंपरा से अलग हटकर संविधान की अलग व्याख्या करती थी। जिसके अक्स में बाहरी प्रवेश निषेध से लेकर सरकार तक के बहिष्कार की बात थी। खूंटी के ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा सरकार, उसकी व्यवस्था और उसकी नीतियों को लेकर स्थानियों में आक्रोश था। जिसका परिणाम पत्थलगड़ी के रूप में सामने आया। 

हालांकि, कई बुद्धिजीवियों का मानना है नेतृत्वकर्ताओं का गुजरात से कनेक्शन थे। गुजरात के एक खास जमात के लोगों ने खूंटी में पत्थलगड़ी करने वाले लोगों को भड़काया। और बाद में मुद्दा बड़ा होता चला गया। तमाम इलाकों में फोर्स बिठा दिया गया। लोग अपने ही इलाकों में कैद हो गए। गिरफ्तारियां हुई, लोगों पर राजद्रोह के आरोप लगाए गए। राज्य के विभिन्न थानों में पत्थलगड़ी से जुड़े मामलों में 23 प्राथमिकी दर्ज हुए। 

तत्कालीन रघुवर सरकार द्वारा चहेते मित्र कॉर्पोरेट के लाभ पहुंचाने के मद्देनजर, छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट (सीएनटी) और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट (एसपीटी) में, जन भावनाओं को समझे बिना संशोधन करने का फैसला लिया। चूँकि सीएनटी- एसपीटी एक्ट, छोटानागपुर और संथाल परगना में आदिवासी-मूलवासियों की जमीन की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण कानून है। और इससे जनभावनाओं का गहरा जुड़ाव है। मसलन, भाजपा सरकार के इस फैसले से राज्य में समाज व राजनीति में भूचाल आ गया। मगर भाजपा सरकार ने एक तानाशाह की भूमिका में उठती आवाज को थामने के लिए ताकत का सहारा लिया। कई लोगों पर मामले में मुकदमें दर्ज हुए। 

हेमंत सरकार के फैसले से क्या बदलेगा?

महत्वपूर्ण सवाल हो सकता है कि मौजूदा सत्ता के फैसले से झारखंड में क्या बदलेगा? हेमंत सरकार का मानना है कि राज्य के लोग अगर भटक गए हैं तो उन्हें राह दिखाना जरूरी है. क्योंकि अपनी ज़मीने के लिए लड़ने वाला कभी देशद्रोही-राजद्रोही नहीं हो सकता. वे इसी राज्य का हिस्सा हैं और अपने ही लोग हैं. इसलिए उन पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने का सम्बन्ध राज्य के उस शांति से है. जिसके मातहत व्यवस्था झारखंड में विकास की गति फिर से बहाल कर सकती है. क्योंकि यह कदम सरकार और ग्रामीण के बीच वैचारिक भरोसे को बहाल कर सकती है. और वैचारिक शान्ति किसी लोकतांत्रिक राज्य के विकास का बुनियादी सच हो सकता है.

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