पारसनाथ पर्वत विवाद : आदिवासी व जैन समुदाय दोनों ही बुद्ध मार्ग के भांति भारत के मूल परम्परा है. और भारत के सभी मूल परम्परा प्रेम और शान्ति को ही समर्पित है. यह ऐतिहासिक झलक इन दोनों समुदायों के समझाता बैठक में स्पष्ट दिखा.
गिरिडीह : आदिवासी समुदाय और जैन समुदाय दोनों ही बुद्ध मार्ग के सामान भारत के मूल परम्परा के ऐतिहासिक वाहक समुदाय है. लेकिन एक गरीब समुदाय है जो अपने पहचान के बचाव की गुहार उसी सत्ता से लगा रहे हैं जिस सत्ता को जैन समुदाय 20 प्रतिशत से अधिक टैक्स दे रहा है. इस सत्य को, मंशा को जैसे चाहें वैसे समझें. लेकिन आखिरी सत्य यही है कि इन दोनों मूल समुदाय को आपस में लड़ाने का प्रयास 2019 में पूर्व के बीजेपी शासन में हुआ.
तमाम परिस्थितियों के बीच जैन समुदाय केन्द्रीय राजनीति के मंशा को समझते हुए आन्दोलन को तैयार हुए. और उनका प्रतिनिधिमंडल झारखण्ड के सीएम हेमन्त सोरेन से मिले. सीएम के द्वारा तत्काल केंद्र को आग्रह पत्र लिखा गया. देश भर में पारसनाथ चर्चा का केंद्र बना. आनन फानन में केंद्र ने मामले को राज्य सरकार के मत्थे मढ अपना पल्ला झाड़ती दिखी. गृहमंत्री मंत्री झारखण्ड आयें लेकिन अपने संबोधन में इस गंभीर मामले पर एक शब्द भी न बोलना देश का दुर्भाग्य रहा.
सीएम हेमन्त सोरेन व विधायक सुदिव्य कुमार के नेतृत्व में झारखण्ड ने देश को दिखाया कि राज्य अपने मूल परम्पराओं को समेटना जनता है. अपने दोनों हाथों को काटने के बजाय उसे जनहित व विकास के लिए समर्पित करना आता है. क्योंकि भारत के सभी मूल परम्परा या मार्ग शान्ति और प्रेम को ही संरक्षण देता है. यही भावना दोनों समुदाय के समझौते बैठक में भी दिखी. जिसके अक्स में इन समुदायों ने सामंतवाद के हाथ से यह धार्मिक मुद्दा झटके में वापस खींच लिया.
दोनों ही समुदायों का पूर्व से चली आ रही सह अस्तित्व की भावना को यथावत रखने पर जोर
ज्ञात हो सीएम सोरेन का मानना है कि किसी भी समस्या का हल बातचीत से निकलता है. मसलन, पारसनाथ पर्वत विवाद निपटारा हेतु मधुबन, गिरिडीह में झारखण्ड सरकार के गिरिडीह विधायक सुदिव्य कुमार के अगुवाई में, जिला प्रशासन, जन प्रतिनिधियों के उपस्थिति में, जैन समुदाय और ट्रस्ट के प्रतिनिधि, स्थानीय संथालय, गैर संथाल समुदाय के बीच सफल वार्ता हुई. वार्ता में सभी समुदाय ने पूर्व से चली आ रही सह अस्तित्व की भावना को यथावत रखने पर स्वतः जोर दिया.
बैठक में कहा गया कि पारसनाथ ही मरांग बुरु है और शिखरजी है. भविष्य में न जैन तीर्थयात्रियों को परेशानी हो और न ही संथाल समुदायों को मरांग बुरु तीर्थस्थल पर जाने में कोई परेशानी हो, इस पर दोनों पक्षों के बीच प्रेमपूर्वक आपसी सहमति बनी. जैन समुदाय ने कहा कि उसके ओर से किसी भी प्रकार के नए नियम नही लाए जाएंगे. तो संथाल समुदाय ने कहा कि उसके तरफ से भी कोई प्रतिबन्ध नहीं होगा. पूर्व की भांति दोनों एक दूसरे के रीति रिवाज व परंपरा का सम्मान करेंगे.
एसडीओ की अध्यक्षता में एक अनुमंडलीय स्तर की कमिटी बनाने पर बनी सहमती
भविष्य के मद्देनजर विधायक सुदिव्य कुमार के सुझाव पर एसडीओ की अध्यक्षता में एक अनुमंडलीय स्तर की कमिटी बनाने पर भी सहमती बनी है. एसडीओ, बीडीओ, सीओ, जैन समुदाय के दोनों भाग (दिगम्बर और श्वेतांबर) के सदस्य, स्थानीय जन प्रतिनिधि, मरांग बुरु के सदस्य कमिटी में प्रतिनिधि होंगे. विधायक व सांसद इसके पदेन सदस्य होंगे. समस्या की स्थिति में कमिटी सबसे पहले मामले को सुलझाने का प्रयास करेगी. इस वार्ता को दोनों ही पक्षों की प्रशंसा मिली.