झारखण्ड में हेमन्त सोरेन के बगैर विपक्षी एकता की अकल्पनीय. इण्डिया गठबंधन के अक्स में देश के 13 बड़े नेताओं में उनका नाम ऑर्डिनेशन कमेटी में प्रस्तावित. झारखण्ड ने माना कि समस्याओं के अक्स में अब राष्ट्रीय राजनीति की जरुरत.
रांची: इनकार नहीं किया जा सकता कि मौजूदा दौर में सीएम हेमन्त सोरेन ने देश भर में झारखण्ड के सबसे बड़े नेता के तौर पर ख्याति पाई है. साथ ही उनके लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली के अक्स में देश भर में राज्य की सामाजिक पहचान ने भी अपनी पैठ बनाई है. 29 दिसंबर 2019 सीएम पद की शपथ लेने के बाद हेमन्त सोरेन की राज्यवासियों के विकास पर एकटक निगाह ने न केवल उन्हें राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में अलग पहचान दी, झारखण्ड के प्रति केन्द्र के सौतेलापन रवैये से भी देश वाक़िफ़ हुआ.
नतीजतन, राष्ट्रीय की वर्तमान राजनीति परिस्थिति में हेमन्त सोरेन का कद बतौर लोकतांत्रिक नेता बढ़ा है. इस परिदृश्य ऐसे समझें कि केन्द्रीय राजनीति के अक्स में विपक्षी के द्वारा बनाई गई इण्डिया गठबंधन की मीटिंग मुंबई में सम्पन्न है. जिसमें कांग्रेस पार्टी समेत तमाम दलों ने सर्वसम्मति से देश के 13 बड़े नेताओं में हेमन्त सोरेन का नाम भी ऑर्डिनेशन कमेटी में प्रस्तावित किया है. जो आदिवासी, दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक के प्रति इण्डिया गठबंधन के जिम्मेदार भाव को भी दर्शाता है.
एक समय था जब नेतृत्व क्षमता को लेकर राजनीतिक गलियारे में सवाल भी उठे थे
जुलाई माह, 2013, हेमन्त सोरेन पहली बार झारखण्ड का सीएम बने, तब उनके नेतृत्व क्षमता को लेकर सामंती समझ ने सवाल उठाने का प्रयास किया. लेकिन उस 18 महीने के शासन में ही उन्होंने अपनी राजनीतिक समझबूझ का परिचय दे दिया था. दिसंबर 2014-2019 तक उन्होंने बतौर विपक्ष नेता उनके द्वारा उभारा गया जन दर्द अप्रत्याशित रहा. नतीजतन, दिसंबर 2019 के विधानसभा चुनाव में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर उन्होंने साबित कर दिया कि वह लम्बे रेस के बड़े खिलाड़ी हैं.
आदिवासी समाज में दिशोम गुरु शिबू सोरेन और हेमन्त सोरेन की अलग पहचान
केन्द्रीय सत्ता समेत राज्य के विपक्ष को भान हो चला कि हेमन्त सोरेन की राजनीतिक कुशलता ने राष्ट्रीय स्तर अलग पहचान स्थापित कर ली है. उनकी समझ में यह बिंदु घर कर गयी है कि उनके पहल के बगैर झारखण्ड में विपक्षी एकता की कल्पना नहीं हो सकती. क्योंकि इस राज्य में झामुमो का एक विराट परंपरागत और कार्यकर्ता युक्त वोट बैंक है. जो राजनीति में किसी भी विपरीत परिस्थिति में सामंती प्रतिद्वंदियों से लोहा लेने के लिए जाने जाते हैं.
साथ ही आदिवासी-दलित और अल्पसंख्यक वर्ग के बीच शिबू सोरेन और हेमन्त सोरेन की अपनी अलग पहचान है. जो साए की तरह झामुमो के पक्ष में खड़े रहते है. ज्ञात हो, झारखण्ड में केंद्रीय एजेंसियां लगातार सक्रिय है. इसी ताक़त के बल पर हेमन्त सोरेन उससे मजबूती से निपटा रहे हैं. झारखण्ड में 14 लोकसभा सीटें हैं. इनमें 12 पर एनडी का कब्ज़ा है. सिर्फ दो सीटें विपक्ष के पास है. ऐसे में इण्डिया गठबंधन को इस आंकड़ा को तोड़ने के लिए हेमन्त सोरेन की जरूरत होगी.
ममता बनर्जी-कांग्रेस के बुलाने पर हेमन्त ने उनके प्रत्याशी के लिए किया चुनाव प्रचार
हेमन्त सोरेन की राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ता कद तो इससे भी स्पष्ट होता है कि उन्होंने अन्य राजनीतिक पार्टियों के द्वारा बतौर स्टार प्रचारक के रूप में बुलाया जाता है. बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने उनसे सहयोग मांगा था. हेमन्त सोरेन ने उनके प्रत्याशियों के पक्ष में कई सभाएं की. असम विधानसभा चुनाव में भी जनजातीय बहुल इलाकों में कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में उन्होंने माहौल बनाया था. हेमन्त सोरेन सभी राष्ट्रीय मसलों पर अपनी स्पष्ट और बेबाक राय रखते हैं.
हेमन्त सोरेन के नेतृत्व कुशलता पर देश की राजनीतिक पार्टियों ने दिखाया है भरोसा
आम चुनाव 2024 को लेकर इण्डिया गठबन्ध के अक्स में देश की अधिकाँश पार्टियाँ भाजपा के तानाशाही नीतियों को हराने के लिए एकजुट हो चुकी है. तो उसमें हेमन्त सोरेन का भी खुलकर समर्थन दिखा है. ज्ञात हो, हेमन्त सोरेन ने दिल्ली के आम आदमी पार्टी के सीएम और राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल ने राज्यसभा में मोदी सरकार के लाए तानाशाही अध्यादेश के विरुद्ध मांगने पर समर्थन दिया था. मणिपुर हिंसक घटनाओं में भी जेएमएम और हेमन्त मुखर रहे. तमाम घटनाओं में हेमन्त सोरेन के जिम्मेदार नेतृत्व के कारण देश की राजनीतिक पार्टियां उनपर भरोसा कर रही है.