झारखण्ड : एक भी मूलवासी स्थानीयता के अधिकार से नहीं होंगे वंचित

झारखण्ड : स्थानीयता के अधिकार को परिभाषित करने हेतु विधेयक को स्वीकृति मिली. एक भी आदिवासी-मूलवासी व विस्थापित स्थानीयता के अधिकार से न हो वंचित – सीएम का विशेष जोर.

रांची : दिनांक: 14 सितम्बर, 2022 को मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के के अध्यक्षता में आदिवासी-मूलवासी व विस्थापितों के हक-अधिकार के हित में ऐतिहासिक फैसला लिया गया. झारखण्ड सरकार मंत्रिमंडल द्वारा राज्य के निवासियों के लिए स्थानीयता के अधिकार परिभाषित करने वाली प्रस्ताव को मंत्रिपरिषद की स्वीकृति मिली.

स्थानीयता के अधिकार को परिभाषित करने वाली स्वीकृति प्रस्ताव में मुख्य आधार

  • खण्ड 1 – झारखण्ड राज्य की भौगोलिक सीमा में निवास करता हो एवं स्वयं अथवा उसके पूर्वज का नाम 1932 अथवा उसके पूर्व सर्वे खतियान में दर्ज हो.
  • खण्ड 2 – भूमिहीन के मामले में उसकी पहचान संबंधित ग्राम सभा द्वारा की जाएगी, जो झारखण्ड में प्रचलित भाषा, रहन-सहन वेश-भूषा संस्कृति एवं परम्परा इत्यादि पर आधारित होगी.

झारखण्ड में निवास करता हो एवं पूर्वज का नाम 1932 या पूर्व सर्वे खतियान में दर्ज हो

खण्ड-1 में वर्णित स्थानीयता का आधार के अनुसार स्थानीयता का अधिकारी होने के लिए पहली जरूरी शर्त है कि वह झारखण्ड राज्य की सीमा में निवास करता हो. और उसका व उसके पूर्वज का नाम 1932 अथवा उसके पूर्व सर्वे खतियान में दर्ज हो. मसलन, जिसके पास उपरोक्त खातियान है वह स्पष्ट रूप से वह झारखण्ड का स्थानीय निवासी होगा.

भूमिहीन के मामले में ग्राम सभा द्वारा होगी स्थानीयों की पहचान

ज्ञात हो, पूर्व की सत्ताओं के खनन लूट नीतियों के अक्स में झारखण्ड प्रदेश विस्थापितों का प्रदेश भी बन कर रहा गया है. ऐसे में खण्ड 2 के माध्यम से सरकार द्वारा राज्य के विस्थापित अथवा भूमिहीन जनता के अधिकार संरक्षण को गंभीरता से लिया गया है. खण्ड 2 के अनुसार भूमिहीन के मामले में स्थानीय की पहचान संबंधित ग्राम सभा द्वारा की जाएगी. जिसका आधार झारखण्ड में प्रचलित भाषा, रहन-सहन, वेश-भूषा, संस्कृति एवं परम्परा इत्यादि पर आधारित होगी.


मसलन, पहला खण्ड जहां राज्य के खातियान धारियों को सम्मान करता है तो वहीं दूसरा खण्ड राज्य में जमीन लूट के अक्स में स्थानीयों को राज्य से बेदखल करनी वाली मनुवादी मंशा पर जबरदस्त चोट करता है. और राज्य के विस्थापित मूलवासी को स्थानीय होने के अधिकार से सम्मानित करता है. हालांकि, दोनों खण्ड में निहित प्रावधानों को और स्पष्ट व सरलीकरण करने पर चिंतन-मंथन हो रहा है.

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