फर्क देखिए! निजीकरण के नाम पर जहाँ निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने की है भाजपा की मंशा, वहीं हेमंत सोरेन की नीतियों में झारखंड के विकास की झलकती है नियत

गुरुवार को मोदी सरकार ने रेलवे की निजीकरण की और बढ़ाया कदम, तो उसी दिन मुख्यमंत्री ने निजी कंपनियों से जनकल्याण के लिए आगे आने को किया आग्रह 

हेमंत की नियत जहाँ निजी कंपनियों में जनता को रोजगार देने की है, तो वहीं मोदी सरकार पर लग रहे हैं देश बेचने का आरोप  

रांची : सात बरस के शासन में, केंद्रीय भाजपा की मोदी सरकार की नीतियां पूंजीपति पोषक के रूप में उभरी है. लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका को नजरअंदाज कर मोदी सरकार द्वारा पूंजीपतियों के पक्ष में, ऐसे कई घातक निर्णय लिए गए, जिससे देश को आर्थिक-सामाजिक नुकसान झेलना पड़ा है. जिसमे निजीकरण जैसे फैसले प्रमुखता से शामिल है. ज्ञात हो, केंद्र की असंवेदनशील नीतियों के मद्देनजर देश कोरोना महामारी की त्रासदी को झेल रहा है. ऐसे में समस्याओं के निदान पर ध्यान न केंद्रित करते हुए,  गुरुवार को रेलवे की निजीकरण के दिशा में कदम बढ़ाया जाना, फिर एक बार केंद्र की घातक मंशा को जाहिर करता है. 

ज्ञात हो, केंद्र की नीतियों से स्पष्ट है कि वह निजी कंपनियों को तमाम संसाधन सुपुर्द कर, देश की सभी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेने को आमादा है. और चूँकि भाजपा बनियों की पार्टी है. मसलन, तमाम संसाधन पर संघी सवर्ण मानसिकता को काबिज कर, देश की आर्थिक ताक़त पर अपना एकाधिकार चाहती है. जहाँ देश केवल टैक्स से प्राप्त रकम पर निर्भर रहने को मजबूर होगा. और पिछले सात बरस के कार्यकाल साफ़ गवाही भी देता है कि निजी क्षेत्र के पूंजीपतियों ने देश को टैक्स दिया नहीं, बल्कि दिवालियापन व लोन के नाम पर देश के अर्थ का दोहन किया है. ऐसे में मोदी सत्ता की नीतियों का सच कैसे देश को अंधकार की ओर ले जाएगा, समझी जा सकती है.  

निजीकरण को लेकर मोदी सरकार की मंशा और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की नियत में फर्क 

जबकि, निजीकरण को लेकर फर्क मोदी सरकार की मंशा और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की नियत के तुलना से भी समझी जा सकती है. जहाँ मुख्यमंत्री सोरेन पिछले अनुभवों से सीखते हुए,  निजी कंपनियों से मदद का आग्रह किया जाना, साफ़ संकेत देता है कि यह मदद की अपील राज्य को लूटने के लिए नहीं, बल्कि झारखंड को संकट से उबारते हुए विकास की ओर ले जाने के लिए है. यह आग्रह राज्य को कोरोना वैक्सीन मुहैया कराने की प्रयास के लिए है. जो निजी कंपनियों के मानवीय पहलू को भी जनता के समक्ष रख रखेगी. 

वैक्सीन पर केंद्र का झूठ सामने आने के बाद मोदी सरकार चल सकती है कोई अन्य चाल, हेमंत नहीं चाहते कि झारखंडी जनता को हो परेशानी 

27 मई, गुरुवार का दिन निजी कंपनियों के कामों को लेकर चर्चा में रहा. जहाँ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट ने हेमंत सरकार पर बेबुनियाद आरोप लगाया कि झारखंड में वैक्सीन की बर्बादी देशभर में सबसे ज्यादा हुई है. हालांकि, मुख्यमंत्री द्वारा आंकड़ों के माध्यम से टीकाकरण का रखा गया सच, केंद्र की झूठी राजनीति को पर्दाफाश करने के लिए काफी थी. लेकिन विडम्बना है कि नैतिकता के आधार पर भी केंद्र द्वारा गलती नहीं माना जाना, उसके तानाशाही मंशे को दर्शा सकता है. और जाहिर है कि झूठ सामने आने के बाद केंद्र वैक्सीन देने के नाम पर आनाकानी कर सकती है. 

मसलन, संभावनाओं को देखते हुए गुरुवार को मुख्यमंत्री द्वारा निजी कंपनियो को पत्र लिखा. पत्र में बड़ी कंपनियों से सीएसआर फंड (CSR Fund) के तहत अपने-अपने कार्य क्षेत्र में 18-45 साल के लोगों को कोविड-19 का वैक्सीन दिलाने में मदद करने का आग्रह किया गया है. मुख्यमंत्री की यह पहल दर्शाता है कि झारखंडी जनता के कल्याण के लिए कोई मुख्यमंत्री किस हद तक संवेदनशील हो सकता है. 

हेमंत का पूर्व का अनुभव काफी अच्छा, अब देखना यह है कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन किसका होगा अडाणी या जीएमआर का 

निजी कंपनियों से मदद मांगने का अनुभव मुख्यमंत्री का बेहतर रहा है. पिछले वर्ष देशव्यापी लॉकडाउन की अवधि में अंडमान निकोबार द्वीप समूह में फंसे प्रवासियों की घर वापसी के लिए मुख्यमंत्री की अपील पर दिल्ली की कंपनी आगे आयी थी. वहीं गुरुवार को खबर सामने आयी है कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के निजीकरण के दिन दूर अब नहीं है. गुरुवार को रेल मंत्रालय ने इस स्टेशन की बोली लगाने के लिए 9 कंपनियों को योग्य पाया है. इसमें अडानी और जीएमआर समेत 9 कंपनियों शामिल हैं. अब देखना यह है कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन किसका, अडाणी या जीएमआर का? हालांकि, मोदी सत्ता के निजीकरण का विरोध होता रहा है. इसमें भी रेलवे से जुड़े संगठन का विरोध हो सकता है. 

मोदी सत्ता पर आरोप लगता रहा है कि निजीकरण के माध्यम से केंद्र देश बेचने की कर रही है तैयारी 

मोदी सरकार हमेशा तर्क देती रही है कि सरकारी प्रतिष्ठानों के निजीकरण से कामकाज के तरीक़े में बदलाव होगा. कंपनी को निजी हाथों में बेचने से जो पैसा आएगा उसे जनता के लिए बेहतर सेवाएं मुहैया कराई जाएगी. वहीं केंद्र की इस तर्क का विभिन्न संगठनों (जिसमें आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ भी शामिल है) ने सरकारी कंपनियों को निजी कंपनियों को बेचने का विरोध किया है. इनका कहना है कि यह पहल निजी कंपनियों के हाथों देश को बेचने की रणनीति का हिस्सा है. 

इन्हीं निजी कंपनियों में झारखंडियों को रोजगार देने का हेमंत सोरेन की सोच. 75 प्रतिशत आरक्षण इसी रणनीति का हिस्सा

दूसरी तरफ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सोच निजी कंपनियों के माध्यम से झारखंडी जनता को रोजगार दिलाना है. बता दें कि सीएम ने पहले ही कहा है कि राज्य में निजी कंपनियों में स्थानीय लोगों को लिए 75 %आरक्षण की व्यवस्था लागू की जाएगी. इसी नीति के तहत कई निजी कंपनियों ने झारखंड के लोगों को रोजगार देने की पहल शुरू की है. कपड़ा उद्योग से जुड़ी अरविंद ग्रुप ऑफ कंपनीज के साथ हुआ एग्रीमेंट, इसी कड़ी का हिस्सा है. मुख्य़मंत्री ने यह भी कहा है कि झारखंड के लोगों को राज्य में ही नौकरी देने वाली कंपनियों को सरकार मदद करेगी.

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