मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विस्थापितों की ली सुध, विस्थापन आयोग के गठन पर दिया जोर

सार्वजनिक व निजी उपक्रमों के मद्देनजर विस्थापितों की समस्याओं के अध्ययन व समाधान हेतु विस्थापन आयोग का होगा गठन

कोल इंडिया। एचईसी। दामोदर घाटी निगम। थर्मल पावर स्टेशन। बांध। नेशनल पार्क। के कैनवास में विस्थापन, झारखंड तबाही का आखिरी सच हो। जो 40-50 लाख विस्थापितों की ऐतिहासिक सुराग का साक्षी भी है। लोगों के उजाड़े जाने का साक्षी है। जिसके अक्स में आदिवासी-दलित, मूलवासियों की आह, उनके आसूओं की त्रासदीय सच दबी है। विस्थापन आयोग न होने के मद्देनजर विस्थापन एवं जमीन के सवाल पर लड़ रहे सामाजिक संगठनों को नकार दिए जाए। 

केंद्र और राज्य की भाजपा के डबल इंजन सरकार की नीतियां भी पूंजीपति मित्रों के लाभ उसी जमीन लूट से ही जुड़ी हो। जिसके अक्स में सीएनटी और एसपीटी एक्ट में संशोधन अध्यादेश तक लाने का सच हो। भूमि अधिग्रहण पुनर्वास अधिनियम का खुले आम उल्लंघन का सच हो। सामाजिक ताना-बाना तोड़ने के मद्देनजर साम्प्रदायिकता के छिन्न करने का सच भी इसी मंशे को उभारे। आदिवासी-दलित उत्पीड़न, उनकी हत्याओं की लम्बी फेहरिस्त की रचना कर दे जाए। 

झाविमो के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी भी कहने से न चूके कि झारखंड को विस्थापन की त्रासदी से बचाने के लिए दलगत भावनाओं से उठकर एक मंच पर आना होगा। और मौजूदा दौर में दामोदर घाटी निगम में हक-अधिकार के मद्देनजर विस्थापितों के नाम नौकरी करने वालों का सच बाहरी होने का हो। तो ऐसे में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का विधानसभा में आजादी के बाद से सार्वजनिक व निजी उपक्रमों के भूमि अधिग्रहण के मद्देनजर विस्थापितों की समस्याओं के अध्ययन व समाधान हेतु विस्थापन आयोग की गठन जोर दे। तो राज्य के लिए सुखद खबर बल्कि लाखों विस्थापितों के लिए राहत देने खबर भी हो सकती है। 

बहरहाल,  भाजपा के बाबूलाल मरांडी को झाविमो के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के कहे वक्तव्य अमल करना चाहिए। और झारखंड को विस्थापन की त्रासदी से बाहर निकालने के खातिर उन्हें दलगत भावनाओं से उठकर एक मंच पर आना चाहिए।

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