आज़ाद भारत में, मोदी सत्ता की स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति ऐतिहासिक वीभत्स्य

झारखंड की खुशकिस्मती है कि कोरोना काल में झारखंड में भाजपा शासन नहीं, 12 सांसदों के चुप्पी के बावजूद हेमन्त सत्ता ने स्वास्थ्य सेवाओं में क्षमता के बढ़कर कार्य किये. रवि प्रकाश के ट्विट सरकार की जनता के प्रति कर्मठता को दर्शाता है.

कोरोना महामारी के पहले ही भारत का अनुभव स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ताहाल को लेकर दयनीय थी. बीमारी के मद्देनजर आम गरीब के लिए सरकारी अस्पतालों में इलाज के दौर से गुजरना किसी हादसे सरीखे होती थी. और निजी अस्पतालों में डॉक्टर, जांच व दवाओं का ख़र्च, उस आम गरीब की कमर तोड़ कर भी गारंटी न दे पाने की स्थिति में थी कि उसकी बीमारी दूर हो गयी. और देश में नयी बीमारी पैदा होने से पहले ही कोई सुरक्षात्मक कदम उठाने के स्थिति में मोदी की स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए दूर की कौड़ी थी. मोदी सत्ता में संस्थानों के मौत के बाद इस त्रासदीय स्थिति में गुणात्मक वृद्धि से इनकार कतई नहीं किया जा सकता.

झारखंड जैसे गरीब राज्य में, 14 वर्षों की भाजपा शासन में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति त्रासदी के चरम को छूते हुए भू-तल में समा गई थी. बावजूद इसके, कोरोना महामारी से पहले चापलूस बुद्धिजीवी व गोदी मीडिया वर्ग, चन्द सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों के आड़ में, बेशर्मी से केंद्रीय सत्ता की ढींगे हांकती रही. लेकिन कोरोना महामारी में भाजपा सत्ता की स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ताहाल हालत की पोल खुल गई. महामारी की दूसरी लहर में अस्पतालों के भीतर और बाहर जो नरसंहार देखने को मिली है, वह देश की जनता के प्रति केंद्रीय सत्ता की समझ को बयान कर सकती है. 

रवि प्रकाश कहते हैं कि संक्रमण के दौरान झारखंड सरकार पल-पल उसके साथ खड़ा

मोदी सत्ता की स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति ऐतिहासिक वीभत्स्य

झारखंड जैसे राज्य की खुशकिस्मती ही हो सकती है कि कोरोना के दौरान राज्य में भाजपा का शासन नहीं था. और वर्तमान मुख्यमंत्री ने अपनी क्षमता से बढ़कर काम किया. जिससे न केवल राज्य की स्थिति संभली. अन्य राज्यों को कई मामलों में मदद मुहैया भी हुई. साथ ही जनता के प्रति हेमंत सत्ता की संजीदगी का हेल्दी आकलन होता है, जब रवि प्रकाश कहते हैं कि संक्रमण के दौरान झारखंड सरकार पल-पल उसके साथ खड़ा रहा. जो उन्हें संक्रमण से लड़ने में मानसिक ताकत प्रदान की. 

हालांकि, भीषण नरसंहार के बाद, भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत पर अब कई चापलूस बुद्धिजीवी व गोदी मीडिया वर्ग भी मोदी सत्ता व्यवस्था पर सवाल उठाने पर मजबूर हैं. देश के संस्थानों में संघी मानसिकता के मौजूदगी से उत्पन्न वीभत्स्य स्थिति से समझा जा सकता है, कि क्यों संघ की विचारधारा को सरदार पटेल जैसे बड़े नेता घातक मानते रहे. क्योंकि पिछले सात सालों के दौरान बिल्कुल तबाही के कगार पर पहुंच चुकी सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था निश्चित रूप से उस सत्ता की मानसिक अपंगता को बयान करती है.

 संघी सत्ता की पाखण्ड मानसिकता की पराकाष्ठा

और उस संघी सत्ता की पाखण्ड मानसिकता का पराकाष्ठा पार करने की भी. जब उसका प्रचारक व खुद को देश का प्रधानसेवक मानने वाला, महज दो मगरमच्छ के आँसू बहा अपने पाप धो लेना चाहता है. और उसका आईटी सेल झूठे आंकडे पेश कर कोरोना के दरम्यान उस सत्ता के अपंग कार्यों को उपलब्धि के रूप में गिनवाने से नहीं चूकता. और झारखंड जैसे राज्य में जनता की समझ तब और गंभीर होनी चाहिए, जब झारखंड की भाजपा इकाई अपनी जनसेवा गिनाये. वह भी तब मीडिया का हर पन्ना गवाही दे कि त्रासदी के दौर में झारखंड भाजपा केवल राजनीति करती रही. हाईकोर्ट तक को जब यह पूछना पड़े कि राज्य के 12 सांसद चुप क्यों हैं. तो इससे बड़ी शर्मनाक सच्चाई उस भाजपा विचारधारा के लिए और दूसरी कुछ हो नहीं सकती.

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