झारखण्ड: OBC आरक्षण विधेयक पर राज्यपाल की चुप्पी के क्या मायने 

झारखण्ड : 20 वर्ष के अधिकार हनन के इतिहास बाद हेमन्त सत्ता में ओबीसी वर्ग को त्रासदी से निकालने वाले मानवीय विधेयक से बीजेपी की दूरी व राज्यपाल की चुप्पी, ओबीसी समाज को केंदीय बीजेपी सत्ता के प्रति कर सकती आक्रोशित.

रांची : सामन्ती विचारधारा के अक्स में देश में हमेशा से ओबीसी वर्ग के साथ पक्षपात होता रहा है. काका कालेलकर कमीशन की रिपोर्ट को पुरानी बताई गयी. मंडल कमीशन के तहत देश भर में घूम कर 3743 जातियों को OBC वर्ग के लिए पहचाना गया जो भारत की कुल जनसंख्या के 52% है. देश मेँ बवाल खड़ा हो गया. अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में जनसंघ ने अपने 90 सांसदों ने समर्थन वापस ले मोरार जी की सरकार गिरा दी. 

झारखण्ड: OBC आरक्षण विधेयक पर राज्यपाल की चुप्पी के क्या मायने

अटल बिहारी बाजपेयी ने जनसंघ समाप्त कर बीजेपी बनाई. कांशीराम का नारे “मंडल कमीशन लागू करो वरना सिँहासन खाली करो” ने सामंती कार्यपालिका मलाई पर तलवार लटका दी. मसलन, धार्मिक चोले के तहत मंडल आन्दोलन को कमंडल के तरफ भ्रमित किया गया. कोलिजियम के अक्स में न्यायालय में 4 बड़े फैसले हुए. 3743 जातियों में केवल 1800 जातियों को OBC माना गया. 52% OBC को केवल 27% ही आरक्षण मिला.

OBC को आरक्षण तो मिला लेकिन प्रोमोशन में नहीं. क्रीमीलेयर, जिसकी आमद 1 लाख हो उसे आरक्षण नहीं मिला. मसलन, महाविद्यालय में OBC बच्चे को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सका. आडवाणी ने नरेन्द्र मोदी को हनुमान बना सामन्ती राम के रथयात्रा के पहिये तले OBC के अधिकारों को रौंद दिया. लेकिन, झारखण्ड में तो वह बीजेपी सत्ता इस वर्ग के लिए और बड़ा दुर्भाग्य साबित हुआ. इन्हें इनका 27 प्रतिशत अधिकार भी नहीं दिया.

20 वर्षों के अधिकार हनन इतिहास के बाद हेमन्त सत्ता ने ली ओबीसी वर्ग सुध 

झारखण्ड के 20 वर्षों के अधिकार हनन इतिहास के बाद हेमन्त सत्ता में ओबीसी वर्ग को त्रासदी से उबारने की दिशा में ठोस पहल हुई. ओबीसी के अधिकारों को सुनिश्चित करने के दिशा में 11 नवंबर 2022 को कुल 77% SC, ST, OBC आरक्षण विधेयक विधानसभा से पारित कर 9वीं अनुसूची में भेजा गया. पत्रकार दिलीप मण्डल ने शुक्रिया कहा और ओबीसी समाज को सीएम को धन्यवाद करने हेतु निवेदन भी किया गया. 

लेकिन, ऐसे खुशी के पल में भी विपक्ष के रूप विद्यमान बीजेपी का ओबीसी वर्ग के साथ छल जारी रहा. ज्ञात हो, आरक्षण विधेयक को केंद्र भेजने के लिए आग्रह करने हेतु सभी पार्टियों ने 20 दिसंबर 2022, को राज्यपाल से मुलाक़ात करना था. लेकिन, इस बार भी राज्य के ऐसे गंभीर विषय पर बीजेपी साथ खड़ी नहीं हुई. उन्होंने सर्वदलीय शिष्टमंडल से दूरी बनाई. कारण तो बीजेपी ही बता सकती है और राज्य के ओबीसी वर्ग के बुद्धिजीवी ही राज्य के जनता को समझ व समझा सकते है. 

ओबीसी आरक्षण पर राज्यपाल का मौन खड़ा करती है केन्द्रीय बीजेपी सत्ता के मंशा पर सवाल 

ओबीसी वर्ग के ऐसे गंभीर मुद्दे पर जहाँ एक तरफ बीजेपी का गैरजिम्मेदाराना दलील. बाबूलाल मरांडी का प्रेस वार्ता में ‘इस मुद्दे पर बहुत राजनीति हो चुकी है’ और सीएम की नीति बीजेपी के नीतियों का तुष्टिकरण है, कह पल्ला झाड़ना. और अंतिम सत्य के रूप में मौजूदा वक्त तक ऐसे गंभीर मुद्दे में झारखण्ड के राज्यपाल का मौन रहना केन्द्रीय बीजेपी सत्ता के मंशा पर ओबीसी वर्ग में सवाल खड़े कर सकते हैं. और उनके नीतियों के प्रति आक्रोशित भी कर सकते हैं.

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