मालिकों को खुश करने के जोश में पत्रकारिता की मूल भावना का तिलांजलि दे चूका एक राष्ट्रीय अखबार!

विज्ञापन रोके जाने से नाराज़ हो कर वह मीडिया घराना सच्चाई दिखाने के बजाय नागपुर-कानपुर के मालिकों को खुश करने के जोश में पार कर दी है चटुकारिता की सारी हदें 

राँची। 26 जनवरी 2021, देश का 71वां गणतंत्र दिवस पूर्ण करने को है। 26 जनवरी 1950 में  संविधान लागू हुआ तो देश ने जहाँ लोकतंत्र के पाठ को पढ़ा, तो वहीं देश की मीडिया ने देश के चौथे अस्तंभ होने का दंभ भरा और अपनी जनता के लिए अपनी ज़िम्मेदारी निभाने की कसमें भी खाई। लेकिन मौजूदा मोदी सत्ता में मीडिया का धार पूँजी की दौड़ में भोथरा होने का अनूठा सच,  देश के सामने उभरा। 

संविधान अपनी है बताते हुए इस सत्ता ने संविधान में दर्ज लोकतंत्र की धज्जियाँ जमकर उड़ायीं। संविधान के पन्नों में दर्ज जनता के हक को कार्यकर्ताओं के बीच देने या छिनने का सच उनकी मेनिफेस्टो तक सिमट गई। देश की गरीब का आलम मौजूदा दौर में 1950 के हिन्दुस्तान से दोगुना हो चला। शिक्षा-हेल्थ-पीने का पानी भी मुनाफ़े के धंधे हो गए। और खेती-किसानी उघोग के हाथों में और उघोग का मतलब खनिज संसाधनों की लूट बना दी गई। लेकिन, देश की मोदी सत्ता के लूट संस्कृति को चाटुकार मीडिया देश हित में बताने के मुहिम में जुड़ गयी।

पत्रकारिता का निष्पक्षता लोकतंत्र के लिए खाद-पानी 

किसी भी लोकतांत्रिक देश में पत्रकारिता वह आईना है, जिसमे जनता उस देश के सरकार की शासन प्रणाली व नीतियों का अक्स (प्रतिबिम्ब) देखती है। जाहिर है पत्रकारीय आईना जितना साफ़/निष्पक्ष होगा, सरकार की छवि उतनी साफ़ देखेगी। कहा भी जाता है कि निष्पक्ष पत्रकारिता किसी लोकतंत्र के लिए खाद-पानी होता है। लेकिन, मौजूदा दौर में कई ऐसे मिडिया घराने व राष्ट्रीय अखबार हैं, जिन्होंने पूँजी के अंधी दौड़ में, अपने नैतिक जिम्मेदारी से परे हो, निष्पक्षता को खत्म कर चुकी है। 

इन दिनों झारखंड में नकारात्मक व प्रायोजित ख़बरे एक राष्ट्रीय अखबार में जोरों से सुर्खियां बटोर रही है। ज्ञात हो कि झारखंड में संकट के दौर में, विकास के मातहत सरकारी विज्ञापन के प्रति सरकार का हाथ तंग है। वह विज्ञापन व्यय में कटौती कर राज्य में अन्य जरूरी विकास कार्यों में व्यय कर रही है। ऐसे में विज्ञापन बंद होने की नाराज़गी वह मीडिया घराना अपने अखबार में नकारात्मक व प्रायोजित ख़बरों को प्राथमिकता देकर जता रही है। जो पत्रकारिता के मूल भावना को तिलांजलि देना हो सकता है। 

वह अपने प्रायोजकों या मालिकों को खुश करने के लिए, लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई हेमंत सरकार को बदनाम करने की भरसक कोशिश करते दिख रही है। हालांकि, मीडिया का यह घिनौने रूप/मकसद छुप नहीं सकता, क्योंकि मीडिया आईना ही तो है छवि दिख ही जाती है। भविष्य उसकी विश्वसनीयता पर जरूर सवाल करेगा, तब उसे अपनी साख बचाना मुश्किल होगा।  

पत्रकारिता द्वारा ख़ास मकसद से टारगेट किया जाना भी एक प्रकार की चाटुकारिता है

संस्थानों में पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान कमोवेश बताया यही जाता है कि पत्रकारिता का मकसद बेबाक, निस्वार्थ व निडरता से सच्चाई को जनता के सामने लाना है। फिर चाहे वह सच्चाई शक्तिशाली व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाली ही क्यों न हो। लेकिन, मूल भावना के विपरीत प्रायोजकों के इशारे पर यदि किसी को टारगेट कर बदनाम करने पर उतारू हो, तो वह पत्रकारिता नहीं चाटुकारिता ही हो सकता है। 

कानपुर-नागपुर के मालिकों के इशारे पर चल रहा है सरकार को अस्थिर करने की मुहिम 

झारखंड में, जनमानस के हितों की लड़ाई के लिए जानी जाने वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की सरकार को बदनाम करने के लिए संबंधित राष्ट्रीय मीडिया का सहारा लिया जा रहा है। इसपर सत्तारुढ़ दल का साफ़ कहना है कि, “ऐसी पत्रकारिता राज्य में शायद ही कोई और समाचार पत्र कर रहा है। पिछली सरकार में इस अखबार को करोड़ों का विज्ञापन दे कुछ भी छपवा जाता था। जिसकी प्रतियाँ पाठक केवल ‘ठोंगा’ बनाने के लिए खरीदते थे। आज वह अखबार झूठी और भ्रामक खबरें छापने के लिए चर्चा में है। आज जब उसका विज्ञापन बंद हो गया है, तो वह पत्रकारिता भूल एक चुनी हुई सरकार को कानपुर-नागपुर के मालिकों को खुश करने के लिए, उनके इशारे पर अस्थिर करने के मुखिम जुटी हुई है।”

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