लाखों को मौत के मुंह में धकेलने वाली फ़ासिस्‍ट सत्ता फिर बढ़ी चुनावी खेल की ओर!

देश की फ़ासिस्‍ट सत्ता को भरोसा है कि उसका झूठा प्रचार और सांप्रदायिक अफ़ीम फिर सर चढ़कर बोलेगा और लोग परेशानियां भूल जायेंगे!

फ़ासिस्‍ट इरादों को नाकाम करने के लिए एकजुट हो रहा है देश!

महामारी में फ़ासिस्‍ट सत्ता की नीतियों का विनाशकारी नतीजा देश की जनता ने झेला है. जिसके अक्स में लाखों के मौत के मुँह में समाने का सच सामने है. लाखों परिवारों के उजड़ने का, हज़ारों बच्चों का बेसहारा होने का सच भी हमारे सामने है. करोड़ से अधिक लोगों ने रोज़गार खोए और आर्थिक तबाही के दंश झेलने को मजबूर हैं. और मानवीय व सामाजिक आपदा का सच बनकर सामने खड़ी है, जिसका सामना न केन्द्रीय सत्ता-व्यवस्था और न ही समाज कर पाने की स्थिति में है. मनुवाद व्यवस्था के मद्देनजर मोदी सरकार की अनर्थकारी नीतियों में देश की अर्थव्यवस्था पहले ही भूतल में समा चुकी थी, महामारी ने तो उसे कसमसाने तक का मौका नहीं दिया. 

महामारी तो दुनिया के तमाम देशों के लिए भी थी, मगर आर्थिक बदहाली केवल हमारे देश के हिस्से आई. भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़ने के बजाय बुरी तरह सिकुड़ गया है. मसलन, आने वाले दिन गरीब व मध्य वर्ग के लिए भयावह दिन आये तो देश को अचंभित नहीं होना चाहिए.

23 अप्रैल 2021 – 24 घण्टों में सबसे अधिक कोरोना मरीज़ों के मामले में भारत दुनिया भर में शीर्ष पर था

कोरोना महामारी की दूसरी लहर की दस्तक गर्मियों के अन्त तक ही दुनिया के कुछ हिस्सों में हो चुकी थी. बेल्जियम, ईरान, चेक गणराज्य, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, स्पेन, अमेरिका आदि देशों के कुछ हिस्सों में फैलना शुरू हो गया था. साल की शुरुआत तक संकट जगजाहिर हो चुका था. सभी देशों की सरकारों ने वक़्त रहते तैयारियाँ शुरू कर दी थीं. मगर भारत का प्रधानसेवक तैयारी नहीं बल्कि बड़े बोल बोलने में व्यस्त था. जनवरी में मोदी जी ने दावा किया कि देश ने संक्रमण पर नियंत्रित पा लिया है. दुनिया को मंत्र भी देने से न चूके. भक्त मण्डली अपने आराध्य की वाहवाही में पागल हो चुकी थी. 

ठीक तीन महीने बाद, 23 अप्रैल 2021 – 24 घण्टों में सबसे अधिक कोरोना मरीज़ों के मामले में भारत दुनिया में शीर्ष पर आ खड़ा हुआ. और संक्रमितों की संख्या बढ़ती ही चली गयी. महामारी से निपटने में सलाह देने के लिए कोविड-19 पर बनी राष्ट्रीय वैज्ञानिक टास्कफ़ोर्स की फ़रवरी और मार्च माह में बैठक तक नहीं हुई. राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन अधिनियम के तहत गठित 11 दलों में से एक ने सरकार को दूसरी लहर के मातहत स्पष्ट तौर पर चेतावनी दी और तैयारी हेतु विस्तृत सिफ़ारिशें भी की. जिसमे सुझाव दिया गया था कि भारत को तुरन्त 60,000 टन ऑक्सीजन का आयात करना चाहिए. और 150 ज़िला अस्पतालों को दुरुस्त भी करना चाहिए. 

अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी को पूरा करने के लिए 162 प्रेशर स्विंग एब्सॉर्पशन संयंत्र लगाये जाने के लिए भी ख़ास तौर पर सुझाव दिए गए. संयंत्रों पर महज 200 करोड़ रुपये की लागत आनी थी. मगर मोदी सरकार के लिए ये ज़रूरी क़दम उठाने के बजाय, पाँच राज्यों के विधानसभा व उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव, कुम्भ, आईपीएल का आयोजन ज्यादा जरुरी था. जिससे महामारी ने विकराल रूप लिया.

ग़लती मानने के बजाय चोरी और सीनाज़ोरी के अन्दाज़ में फ़ासिस्‍ट सत्ता 

मौत का ऐसा ताण्डव मचने के बाद भी मोदी सत्ता ग़लती मानने के बजाय चोरी और सीनाज़ोरी के अन्दाज़ में झूठे दावें परोस रही है. लेकिन यह भी सच है कि मोदीभक्त, भाजपा-संघ समर्थक व कार्यकर्ता सरकारी बदइन्तज़ामी के शिकार हुए है. जो भाजपा के सेहत के लिए अच्छी खबर नहीं है. ऐसे में उनके पास साम्प्रदायिकता का प्रेत को बाहर निकालना एकमात्र रास्ता शेष बचता है. जिसमे वे पुराने माहि‍र भी हैं. कुछ घटनाएँ आने वाले समय में इनके मंसूबों की ओर इशारा भी करने लगी है.

मसलन, इतिहास में जैसे राजा-महाराजा हर वक़्त युद्ध की तैयारियों में लगे रहते थे. चाहे जनता अकाल या बाढ़ से ही त्रस्त क्यों न हो, सेनाएँ खड़ी करने के लिए उनकी वसूली चलती रहती थी, ठीक वैसे ही फ़ासिस्‍ट सत्ता को केवल चुनाव जीतने और सत्ता में बने रहने से मतलब है. सत्ता में बने रहने के लिए वे कुछ भी करते हैं. अब देश को तय करना है क‍ि इनके मंसूबों को कामयाब होने देंगे, या इनके इरादों को एकजुट होकर नाकाम करेंगे!

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