क्या मानसिक दिवालियापन के दौर से गुजर रही है झारखण्ड भाजपा? …थिंक टैंक नाकाम  

रघुवर दास की महीनों से शांत राजनीति में, विधानसभा सत्र के ठीक पहले उथल-पुथ होना . उन्होंने खुद आदिवासी प्रेमी व हेमंत सरकार आदिवासी विरोधी बताया है. सवाल है कि केन्द्रीय सत्ता में झारखण्ड से अधिकाँश भाजपा सांसद होने के बावजूद सरना कोड का पास न होना मानसिक दिवालियापन नहीं तो क्या? कैसा आदिवासी प्रेम हो सकता है?

झारखण्ड के भाजपा नेता व पूर्व मुख्यमन्त्री रघुवर दास की महीनों से शांत राजनीति में, विधानसभा सत्र शुरू होने के ठीक पहले एक बार फिर उथल-पुथ देखी जा रही है. ज्ञात हो, कोरोना के तीसरे लहर के कयास के बीच रघुवर दास द्वारा राज्य सरकार पर आदिवासी विरोधी होने व धार्मिक स्थलों को पूर्णतयः न खोलने को लेकर आवाज उठाया गया है. यह पहली बार नहीं है जब भाजपा व उसके नेता द्वारा आरोप लगाया गया हैं. पहले भी संक्रमण काल में धार्मिक राजनीति के मद्देनजर ऐसे आरोप लगाते रहे हैं. तमाम परिस्थितियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि प्रदेश भाजपा मानसिक दिवालियापन के दौर से गुजर रही है और उसके पास कोई ठोस मुद्दा नहीं है.

रघुवर दास को बताना चाहिए कि उनके शासनकाल में आदिवासी बहुल जिला खूंटी क्यों उबलता रहा?

हेमन्त सरकार पर आरोप लगाने वाले आदिवासी प्रेमी! रघुवर दास को बाकायदा बताना चाहिए कि पांच साल के कार्यकाल में उन्होंने आदिवासियों के विकास के लिए कौन सी ठोस लकीर खींची? भाजपा की विचारधारा तो इसकी इजाजत नहीं देती, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर भी उनके द्वारा आदिवासी संस्कृति, भाषा और सामुदायिक विकास के लिए क्या किया कुछ किया गया? कम से कम यह तो जरुर बताना चाहिए कि उनके शासनकाल में आदिवासी बहुल जिला खूंटी क्यों उबलता रहा? क्यों पत्थलगड़ी आंदोलन को दबाने के नाम पर सैकड़ों को जेल में ठूंसा गया? आदिवासी समुदाय अलग-धर्मकोड के लिए आंदोलन करता रहा, लेकिन भाजपा ने क्यों मांग का समर्थन नहीं किया? 

केन्द्रीय सत्ता में झारखण्ड से अधिकाँश भाजपा सांसद होने के बावजूद कोड का न मिलना कैसा आदिवासी प्रेम हो सकता है?

जबकि हेमन्त सरकार के कार्य खुद भाजपा नेता के आरोप को खंडन करने के लिए काफी हो सकता है. मौजूदा दौर में खूंटी भाजपा काल की तुलना में शांति है. हेमन्त सरकार ने राज्य कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल कर उनका मान बढ़ाया. हेमन्त सरकार ने आदिवासी समुदाय की अलग धर्मकोड की मांग को विधानसभा से पारित करा केंद्र भेजा. लेकिन, केन्द्रीय सत्ता में झारखण्ड से अधिकाँश भाजपा सांसद होने के बावजूद अबतक कोड का न मिलना, कतई आदिवासी प्रेम नहीं हो सकता. इसके लिए सीधे तौर भाजपा जिम्मेदार है. 

मसलन, भाजपा-संघ की मानसिक दिवालियापन ही हो सकता है, जहाँ भाजपा विचारधारा नहीं चाहती कि आदिवासी समुदाय को अलग धर्मकोड मिले. अगर ऐसा संभव हो गया तो आरएसएस व उसके अनुषंगी संघों के वनवासी कल्याण केंद्र का क्या होगा. और उसके द्वारा चलाये जा रहे तमाम एजेंडे तो धराशाही हो जायेंगे? जो उसके आकाओं को कतई मंजूर नहीं हो सकता.

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