रांची : मौजूदा दौर में, भाजपा-संघ को लूटेरा गैंग कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं है. और बीजेपी नेताओं के हालत ऐसे हो चले हैं कि अपने सरपरस्त आकाओं से बेहतर वह किसी अन्य को मान पाने की नैतिक इच्छाशक्ति उनमे बची नहीं है. मसलन, देश के गरीब मूल जनता के संसाधनों के लूट के अक्स में संघ-भाजपा के एजेंडे में निहित आडम्बरवाद को समाज में प्रसारित करना ही भाजपा नेताओं का एक मात्र लक्ष्य शेष रह जाता है. और सत्ता से दूर होने की स्थिति में बीजेपी नेता के लिए कोई भी उलुल-जुलूल बयान दे, जनता के बीच बने रहने का प्रयास एक मात्र विकल्प रह जाता है.
इनकार नहीं किया जा सकता कि कोरोना जैसी घातक महामारी के दौर में हेमन्त सरकार द्वारा देश भर में पीठ-थपथपाने वाला काम किया गया है. जब केन्द्रीय भाजपा, प्रधानसेवक ,गृहमंत्री आदि बंगाल चुनाव में व्यस्त थे तब देश की जनता ऑक्सीजन के लिए त्राहिमाम थी. उत्तर प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्य में शवों को न दीवार छुपा पा रही थी और ना ही गंगा घाट के बालू. ऐसे नाजुक वक़्त में झारखण्ड के मुख्यमंत्री संविधान के मूल्यों में निहित मानवता को आधार मान, पहले पायदान पर खड़ा हो कर देश को ऑक्सीजन मुहैया कराने का प्रयास करते रहे. ऐसे में कोई भाजपा नेता कहे कि कोरोना के आड़ में मुख्यमंत्री छिप रहे हैं तो इसे बेशर्मी ही कहा जा सकता है.
भाजपा की डबल इंजन सरकार में राज्य में भ्रष्टाचार चरम पर था
ज्ञात हो, भाजपा की डबल इंजन सरकार में राज्य में भ्रष्टाचार चरम पर था. नित नयी-नयी नीतियों के सहारे भाजपा सरकार में झारखण्ड की मूल जनता के ज़मीन व अन्य संसाधन लूटने के कुप्रयास होते रहे. बेटियों की इज्जत खुद भाजपा नेता ही तार-तार करते दिखे. स्वयं पूर्व मुख्यमंत्री बेटी के पिता को न्याय मांगने पर उसे दुत्कारते, अपमानित करते दिखे. भाजपा के पूर्व विधायक सह खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय को उस भाजपा सरकार के भर्ष्टाचार के विरुद्ध किताबें लिखनी पड़ी. राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार समेत भाजपा के 12 सांसदों द्वारा स्कूलों को मर्जर के नाम पर बंद करने के निर्णय पर सवाल उठाया गया. ऐसे में अब भाजपा नेता पूर्व की भाजपा सरकार को बेहतर बताये तो हास्यास्पद हो सकता है.
रांची विधायक सीपी सिंह का पूर्व कार्यकाल स्वयं भरष्टाचार कर उपमा रहा है. भाजपा-संघ के आडम्बरवाद, भ्रमवाद विचारधारा की परम्परा आगे बढाने वाले सीपी सिंह, जिनके मंत्री रहते, उनके विभाग में राज्य का अरबों रूपये का नुकसान ( घोटाला भी कह सकते है) हुआ. इनके संरक्षण में फलने-फूलने वाले अधिकारियों व ठेकेदारों की एक लंबी फेहरिस्त रही है. इन्होंने भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के बजाय केवल चांदी काटी. पूरे रांची शहर को बर्बाद होने दिया. अब जब सत्ता से बाहर हैं तो इन्हें शहर की बदहाली दिखती है, जबकि मेयर अबतक इन्हीं के दल में मौजूद है.
स्वयं भाजपा राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने सीपी सिंह की कार्यशैली पर उठाए थे सवाल
सीपी सिंह मीडिया के समक्ष अपने नगर विकास मंत्री कार्यकाल की बढाई करते दिखते है, रांची शहर के सौंदर्यीकरण का दावा करते हैं, लेकिन हकीकतन उनकी ही पार्टी के राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार उनके कार्यशैली पर सवाल खड़ा कर चुके हैं. जुलाई 2019 में एक पत्र लिख सांसद ने सीपी सिंह को बताया था कि उनके विभाग में योजनाओं के नाम पर धंधा चल रहा था. सांसद ने पत्र में कहा था कि 200 करोड़ रूपए खर्च कर शहर में बनने वाले नालों और सीवेरज-ड्रैनेज के नाम पर कारोबार हुआ था. 100 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी हरमू नदी नाला ही रहा. राजधानी में विकास काम और तालाबों के सौंदर्यीकरण आदि के नाम पर 300 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है.
इसमें कांके में बने स्लॉटर हाउस, बड़ा तालाब सौंदर्यीकरण, कांटा टोली फ्लाईओवर का अधूरा काम और रातू रोड प्लाईओवर बनाने के लिए डीपीआर में खर्च, कांके में ही अर्बन हाट घोटाला, कोकर स्थित डिस्टलरी तालाब का काम भी शामिल था. यानी कुल मिलाकर 600 करोड़ रूपए पानी की तरह पूर्व विभागीय मंत्री सीपी सिंह ने बहा दिया था. लेकिन शहर वासियों के लिए सुविधा के नाम पर मिला वही ढाक के तीन पात. अब इनका बयान देना कि हेमन्त सरकार उनके सरकार द्वारा चलाये गए योजनाओं को बंद कर दिया गया, केवल भ्रम-आडम्बर नहीं तो क्या हो सकता है.
1 रुपए रजिस्ट्री योजना गरीब महिलाओं के लिए नहीं बल्कि करोडपति व नेताओं के पत्नियों के लिए थी
भाजपा सांसद स्वयं ज़मीन मुद्दे को लेकर चर्चा में रहे. और उनका यह मामला पिछली भाजपा सरकार की 1 रूपए में रजिस्ट्री योजना की पोल खोलती है. ज्ञात हो कि भाजपा सांसद की पत्नी पर ज़मीन लेन-देन के गंभीर आरोप लगे हैं. भाजपा नेता ने राजनीतिक प्रभाव से 20 करोड़ की प्रॉपर्टी केवल 3 करोड़ में अपनी पत्नी के नाम खरीदी है. ऐसा करने से सरकार को लाखों रुपये के राजस्व का घाटा हुआ है. शिकायत के आवेदन के साथ रकम प्रप्ति की रसीद प्रस्तुत की गयी है. जिसमे उल्लेख है कि प्रॉपर्टी खरीदने के लिए तीन करोड़ रुपए नगद रुपये दिये गये, जो कि नियम के विरुद्ध है.
ऐसे में हेमन्त सरकार द्वारा उस योजना को बंद कर महिला सशक्तिकरण में कई योजनायें चलाई गयी तो इसमें बुराई क्या है. यदि राज्य की हजारों महिलाएँ स्वरोजगार कर स्वावलंबी बन रहीं है तो भाजपा को क्यों बुरा लग रहा है? यह एक बड़ा सवाल हो सकता है. इस मुद्दे पर झामुमो को भाजपा से सवाल पूछना चाहिए. बहरहाल, अगली कड़ी में हेमन्त सत्ता द्वारा चलाये जा रहे योजनाओं का विश्लेषण होगा.