कोयला क्षेत्र की नीलामी और वाणिज्यिक खनन के विरोध में कोयला क्षेत्र के श्रमिक 2 से 4 जुलाई तक हड़ताल पर चले गए हैं। ट्रेड यूनियनों के साथ कोयला मंत्री की वीडियो कॉन्फ़्रेंस वार्ता विफल होने के बाद ट्रेड यूनियनों के साथ कोयला मजदूर अंतिम विकल्प के रूप में हड़ताल पर जाने का फैसला किया है। हड़ताल के दौरान राज्य में कोयला खनन से लेकर तमाम ट्रांसपोटेशन तक बंद रहेगी।
एक अनुमान के मुताबिक, तीन दिनों में कोयले का लगभग 225 करोड़ रुपये का कारोबार प्रभावित होगा। राज्य में CCL, BCCL, ECL की खानों से रोजाना 75 करोड़ का कोयले का कारोबार होता है। जिसके कारण राज्य सरकार को राजस्व भी प्राप्त होता है। ठप्प रहेंगे और इस दौरान कोयला मजदूर भी एफडीआई का भी विरोध करेंगे।
राष्ट्रीय कोयला संगठन कर्मचारी संघ ने जानकारी दी है कि खनन और परिवहन में लगे लगभग एक लाख बीस हजार मजदूर भी इस अवधि के दौरान हड़ताल पर रहेंगे। जबकि CCL के 40 हजार, BCCL के 55 हजार, ECL के लगभग 12 हजार कर्मचारी हड़ताल में शामिल होंगे। कोयला खनन से लेकर परिवहन तक पूरी तरह ठप रहेगा। हड़ताल में इंटक, एटक, सीटू, एचएमएस और बीएमएस मजदूर संघ सक्रिय हैं।
कोयला मजदूर खनन कर केंद्र को औसतन 60 हजार करोड़ राजस्व देते है
देश भर में हर दिन 2.5 मिलियन टन कोयले का खनन होता है। जिसका मतलब है कि एक दिन में देश को चार सौ करोड़ के व्यापार का नुकसान होगा। हर साल, केंद्र सरकार को औसतन 60 हजार करोड़ राजस्व प्राप्त होता है। राज्य में BCCL, CCL व ईसीएल की खानें हैं। पिछले साल, रघुवर सरकार ने इन कंपनियों से लगभग 3976 करोड़ रुपये का राजस्व संग्रह किया था।
ज्ञात हो कि राज्य में रामगढ़ और धनबाद जैसे जिले की अर्थव्यवस्था कोयले पर निर्भर है। जबकि बोकारो, हज़ारीबाग़, गिरिडीह, चतरा जैसे जिले भी पर्याप्त मात्रा में कोयले की आपूर्ति करते हैं। राज्य के अन्य प्रमुख क्षेत्र मगध, पिपरवार, बरकाकाना, कुज्जू, राजरप्पा हैं।
मसलन, इस बंदी ने कोयला सेक्टर में सरकार की मोनोपॉली खत्म करने की और कदम बाधा दिया है। अब कोयले का भविष्य केवल सरकार ही बल्कि कोयला उत्पादन करने वाली कंपनियां तय नहीं करेगी. क्योंकि, कोयला मज़दूर यूनियनों का मानना है कि सरकार एलान से मज़दूर और ग़रीबों का किसी भी हाल में भला नहीं होगा। भला होगा तो केवल पूँजीपतियों का.