क्या केंद्रीय नेतृत्व के टूटते तिलिस्म का सच है यूपी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बगावत?

2024 के सपने में 2022 महत्वपूर्ण हो चला है. क्योंकि, मोदी का प्रधानमंत्री सफ़र यूपी के मुख्यमंत्री चुनाव से होकर ही दिल्ली पहुँचता है. जिसके मध्य में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आ खड़े हुए हैं.

रांची : भाजपा खुद को विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करती रही है. और दलील भी देती रही है कि दल में व्यक्ति नहीं बल्कि संगठन महत्वपूर्ण है. लेकिन उत्तर प्रदेश प्रकरण साफ़ संकेत देता है कि भाजपा-संघ ने खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए, तमाम तरह की झूठी व सम्मोहक़ धारणाएं गढ़ी. जिसके अक्स में भाजपा शीर्ष नेताओं ने भोली जनता, कार्यकर्ता, समर्थक व अंधभक्तों को देशभक्ति, हिंदुत्व, नैतिकता, मर्यादा व शुचिता जैसी पाठ, महत्वाकांक्षा पूर्ति में देश को पढ़ाते रहे. 

लेकिन, यूपी में मचा घमासान साफ़ उदाहरण है कि भाजपा का सम्मोहन, इंद्रधनुषी तिलिस्म अब टूटने को है. बंगाल चुनाव और झारखंड उपचुनाव में मिली करारी हार. कोरोना महामारी में देश भर से लचर प्रबंधन को लेकर उठती आवाज़ व लचर आर्थिक नीति में डूबती अर्थव्यवस्था, से पार्टी की साख को बट्टा लगा है. मसलन, पार्टी में भीतरी अंतरकलह की आवाज अब मजबूती से बाहर आयी है. जिसमे सच भी बाहर आया है कि भाजपा में संगठन नहीं बल्कि केवल दो व्यक्ति विशेष ही महत्वपूर्ण है. और इसी परंपरा प्रश्रय के मद्देनज़र योगी सरीखे नेता पार्टी में अपना सिक्का जमाने को आतुर है, और मजबूत दस्तक भी दी है. 

क्या आदित्यनाथ की महत्वाकांक्षा की आभास डरा रहा है केंद्रीय नेतृत्व को

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ की महत्वाकांक्षा अब केंद्रीय नेतृत्व को डरा रहा है. क्योंकि मौजूदा परिस्थिति में, 2024 के सपने में 2022 महत्वपूर्ण हो चला है. और मोदी का प्रधानमंत्री का सफ़र, यूपी के मुख्यमंत्री चुनाव से होकर ही दिल्ली पहुँच सकता है. लेकिन, योगी आदित्यनाथ की महत्वाकांक्षा मोदी के सफ़र को रोकती दिखती है. मसलन, इस डरावनी एहसास में केन्द्रीय नेतृत्व का हर प्रयास योगी के पर कतरने को आतुर है. 

लेकिन, संघ के मजबूत साथ में, योगी आदित्यनाथ की महत्वाकांक्षा ने बतौर यूपी मुख्यमंत्री, केंद्रीय नेतृत्व को बगावती तेवर दिखा दिया है. हालांकि, उत्तर प्रदेश के सरकारी बैनरों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह व जेपी नड्डा जैसे बड़े नेताओं की गायब तस्वीरें, पहले से ही कहानी बयान कर रही थी. साथ ही हर चुनाव प्रचार में, भले ही सुनने वाला कोई न हो, फिर भी योगी को संघ द्वारा दिया गया मंच का सच, घात-प्रतिघात की राजनीति की उसी बगावती सच का उभार भर है. मसलन, यूपी की राजनीति में उस परिस्थिति का निर्माण हो चुका है. जहाँ केंद्र के लिए योगी आदित्यनाथ न उगलते बनते हैं और न ही निगलते. 

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