केंद्र की गलत वैक्सीनेशन नीति का पर्दाफाश – महज 2 दिन में दो कोर्ट ने फटकार लगाते हुए पूछे गंभीर सवाल – जवाब देने में देर कर रही मोदी सरकार

सुप्रीम कोर्ट – केंद्र डिजिटल इंडिया की रट लगाती है, मगर ग्रामीण भारत के हालात केंद्रीय सोच से भिन्न. ऐसे में झारखंड सरीखे राज्य का एक निरक्षर मजदूर राजस्थान या सुदूर इलाकों में कैसे कर पाएगा रजिस्ट्रेशन?

सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक ने बयान की देश की दुर्दशा – विश्व गुरु बनने का ख्वाब पालने वाले देश का दुर्भाग्य है कि वह कायदे से अनुशासित विश्व-शिष्य तक न बन पाया 

रांची:  देशहित में खुद को समर्पित करने का ढिंढोरा पीटने वाली बीजेपी व संघ विचारधारा के लिए शर्मनाक बात हो सकती है, कि शीर्ष न्यायालय समेत राज्य के हाईकोर्ट, लगातार देश की अखंडता के मद्देनजर, नसीहत देते हुए कड़ी उसे फटकार लगा रहे हैं. ज्ञात हो, महज दो दिनों में, देश में जनता के जीने के अधिकार को लेकर दो कोर्ट ने मोदी सरकार की आलोचना की और तीखे सवाल पूछे है. ऐसे में मोदी सत्ता का तत्काल जवाब न देना बड़ा सवाल खड़ा करता है. कि क्या त्रासदी के दौर में भी वह देश की तीसरे स्तंभ, न्यायपालिका को नजरअंदाज कर सकता है?

ज्ञात हो, कोरोना संक्रमण के दूसरी लहर में, कोर्ट ने देश में हुई ऑक्सीजन की भारी कमी पर, मोदी सरकार को कड़ी फटकार लगायी थी. मौजूदा दौर में, देश में कोरोना संक्रमण की स्थिति कुछ नियंत्रित हुई है. निस्संदेह, देश के लिए राहत भरी खबर हो सकती थी. लेकिन, राज्यों को वैक्सीन मुहैय्या कराने में, केंद्र द्वारा अपनाई जा रही गलत नीति, देश को सकते में डाल दिया है. नतीजतन, कोर्ट ने मानवीय पहलू का पक्ष रखते हुए केंद्र द्वारा अपनायी जा रही वैक्सीन नीति पर आपत्ति जताते हुए मोदी सरकार से तीखे सवाल पूछे है.

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बाद अब कोर्ट ने भी केंद्र से पूछा है कि राज्यों को वैक्सीन मुहैय्या कराने के मामले में उसकी नीति आखिर दोहरी क्यों?

31 मई 2021, सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में वैक्सीन उपलब्ध कराने के मामले में केंद्र द्वारा अपनाई जा रही नीतियों की आलोचना करते हुए फटकार लगाई है और तीखे सवाल पूछे हैं. कोर्ट ने पूछा है कि वैश्विक आपदा में भी वैक्सीन निर्माता ही आखिर क्यों वैक्सीन की कीमत तय कर रहे हैं? ऐसी नीतियों को सरकार से कैसे मंजूरी मिल सकती है. साथ ही वैसी गरीब जनता जो अन्य बीमारियों से भी जूझ रही हैं, उनके जीवन रक्षा के लिए आखिर सरकार के पास कोई सटीक प्लान क्यों नहीं है? 

कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार डिजिटल इंडिया की रट लगाती रहती है, मगर ग्रामीण इलाकों में हालात एकदम अलग हैं. झारखंड का एक निरक्षर मजदूर राजस्थान में कैसे रजिस्ट्रेशन कराएगा? साथ ही कोर्ट ने राज्यों के लिए केंद्र द्वारा तय टीकों की अलग-अलग कीमतों को लेकर भी सवाल उठाया. कोर्ट ने कहा कि केंद्र कहती है कि ज्यादा मात्रा में टीका खरीदने पर उसे कम दाम चुकाने पड़ते हैं. अगर आपका तर्क सही है तो फिर राज्यों को टीके के लिए अधिक दाम क्यों चुकाने पड़ रहे हैं. आखिर यह दोहरी नीति क्यों है. देशभर में टीके के दाम एक जैसे रखे जाने की जरूरत है. केंद्र की दोहरी नीति पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी आवाज उठायी हैं।

पीएम के लिए जैसे एसपीजी सुरक्षा जरुरी – वैसे ही देश को युवाओं के लिए वैक्सीन भी जरूरी 

1 जून, 2021 – केंद्र की वैक्सीनेशन नीति पर तीखे सवाल उठाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने भी केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगायी. दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने वैक्सीन और दवाओं पर केंद्र सरकार की स्टेटस रिपोर्ट को अस्पष्ट और प्राथमिकता तय करने में नाकाम बताया. कोर्ट ने केंद्र पर आरोप लगाया कि वह युवाओं पर विशेष ध्यान नहीं दे रही. युवा प्रधानमंत्री को एसपीजी सुरक्षा देते हैं, क्योंकि उनके ऑफिस को इसकी जरूरत है.

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि हमें यह जानना है कि देश को इस 2 लाख 30 हजार के प्रोजेक्ट आंकड़े में कितनी दवाएं मिलीं. नहीं जानना कि आप किस कंपनी से दवाएं खरीद रहे हैं. केवल बताएं कि हमें कितनी दवाएं मिलीं. हाईकोर्ट ने सख्त लहजे में कहा, ‘केंद्र के पास जब वैक्सीन नहीं है, तो घोषणाएं क्यों करती है. अगर वैक्सीन की कमी है तो प्राथमिकताएं तो तय करें. देश को नहीं पता कि आपने 60 प्लस को वैक्सीनेशन पहले देने के बारे में क्यों फैसला लिया?’

कोर्ट से यह फटकार कोई नयी नहीं, कोरोना संक्रमण में दिखती रही है ऐसी कार्रवाईयां

केंद्र की नीतियों को लेकर सुप्रीम व हाई कोर्ट ने पहली बार सवाल नहीं उठाये हैं. बीते अप्रैल माह में देश में हुई ऑक्सीजन की किल्लत पर भी कोर्ट ने मोदी सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था,“अब तो होश में आ जाओ सरकार”, क्योंकि लाशें गिनते-गिनते अब 20 दिन होने को हैं. मगर ना मौतों का सिलसिला थम रहा है, ना ही बदइंतजामी का दौर. दुर्भाग्य है कि जो देश विश्वगुरु बनने का ख्वाब रखता है, कायदे से तो वह विश्व-शिष्य तक नहीं बन पाया.

मद्रास हाईकोर्ट ने तो मोदी सरकार से यह तक पूछ लिया कि कोरोना संक्रमण की पहली लहर के बाद दूसरी लहर में केंद्र ने क्या तैयारी की? आखिर पिछले 14 महीने से क्या कर रही थी मोदी सरकार?

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