जेपीएससी नियमावली । खनन नहीं पर्यटन । खेल नीति । पहली बार कई काम महज 1 बरस में

जेपीएससी नियमावली । पर्यटन । खेल नीति । – हेमंत सरकार की महज 1 वर्ष में उपलब्धि

घोटालों की मोमेंटम हाथी। कंबल घोटाला-कर्ज। -रघुवर सरकार की 5 वर्ष की उपलब्धि 

रांची : तो रघुवर बरस में जिस राज्य में विकास के नाम पर उड़ाया गया हाथी करोड़ों खर्च के बावजूद. रोजगार न दे पाने के भार से दब उस हाथी का बैठ जाने का ऐतिहासिक सच लिए हो. उस डबल इंजन सरकार का सच सीएनटी-एसपीटी से लेकर पत्थलगड़ी तक के संवेदनशील मुद्दों के आसरे फैली आग को बुझाने के बजाय घी डालने का हो. नियमों के ताक पर रखने के मामले में चारा घोटाले के इतिहास को पीछे छोड़, कम्बल घोटाले के रूप नया ऐतिहासिक सच लिए भी वही रघुवर सरकार ही खड़ी हो. जहाँ भाजपा डबल इंजन सरकार का आखिरी सच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व गठबंधन में बनी सरकार के दौर में खाली खजाना परोसने का हो. 

वहाँ तमाम परिस्थितियों में भी मौजूदा हेमंत सत्ता उन चुनौतियों को स्वीकार करते हुए, जन कार्यों को माध्यम बना नए सिरे से राज्य में विकास को नई दिशा देने का सच लिए हुए खड़ा हो जाए. संसाधनों के अभाव में भी कोरोना जैसे त्रासदी में जनपक्षीय कार्य की पराकाष्ठा पार कर दे, तो यह इच्छाशक्ति व जुझारूपन का ही अक्स हो सकता है. ऐसे नाजुक दौर में भी राज्य अगर पहली बार जेपीएससी की नयी नियमावली, नयी खेल नीति, पर्यटन पर जोर जैसे प्रमुख बड़ी लकीर खींच दे. तो उस सरकार की बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है। समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने जैसे सच से भी मौजूदा सत्ता अगर इस दौर में जा जुड़े. जहाँ हाशिए के छोर पर खड़ी जनता पर विशेष जोर दिखे. और भाजपा विचारधारा को यह उपलब्धि न पचे. तो लोकतंत्र मजबूती के मद्देनजर उस विचारधारा की मजबूरियां समझी जा सकती है. 

हेमंत सत्ता जेपीएससी की नियमावली बनाने में सफल 

राज्य गठन के 2 दशकों के उपरान्त भी अगर जेपीएससी झारखंड में अनसुलझी पहेली बन प्रतिभाओं का मुंह चिढ़ाती रहे. उसकी कोई अपनी नियमावली तक न हो. चूँकि संघ मानसिकता पर आधारित, भाजपा सरकार के लिए गरीबों की शिक्षा उसकी मानसिकता में फिट न बैठने के मद्देनजर, मायने न रखे. नतीजतन पूर्व के 14 वर्षों के भाजपा सत्ता का इस ओर ध्यान न देने के मुनासिब समझ सामने हो. जहाँ उस संघ मानसिकता का दबाव इससे समझा जाए. जहाँ रघुवर सत्ता तो फिर भी लोटा-पानी और झोला उठाये बाहरियों का सच लिए हो. लेकिन बाबूलाल मरांडी व अर्जुन मुंडा जैसे झारखंडी आत्माओं का भी सच इसी दिशा में हो. तो मामले की समझ अधिक मुश्किल नहीं हो सकती है. मसलन, हेमंत सत्ता में नियमावली बनी, परीक्षाएं अब विवादों से इतर नियुक्ति करने को तैयार हो. तो निश्चित रूप से मौजूदा सत्ता की इच्छाशक्ति का ही रूप हो सकती है. 

खेल नीति व पर्यटन के दिशा में हेमंत सरकार की बड़ी लकीर 

किसी कलम को लिखने में संकोच नहीं हो सकता कि भाजपा सत्ता को कभी भी झारखंड की मूल भावना से सरोकार नहीं रहा. यदि सरोकार होता तो क्या वह झारखंड की खेल से पहचान को अनदेखी करती? क्या प्रतिभावान खिलाड़ियों की सूची के मद्देनजर वह झारखंड में ठोस खेल नीति लेकर नहीं आती? झारखंड व देश को गौरव प्रदान करने वाले खिलाड़ियों के साथ क्या कोई सत्ता वेटरों जैसा सलूक कर सकता है? क्या खिलाड़ी खेल के बजाय अपना जीवन का अंतिम सच सब्जी बेचना, रेजा-कुली बनना मानता? तमाम परिस्थितियों को तो केवल एक महान परम्परा को समाप्त करने का साजिश ही माना जा सकता है.

जिस झारखंड का सच प्राकृतिक के अनुपम सौगात से जुड़ा हो. वहां उसका सच भाजपा सत्ता में केवल खनन लूट के पर्यायवाची के तौर पर उभरे. तो अबोध बालक भी संघ मानसिकता पर आधारित उस बिचारधरा की आखिरी सच समझ सकता है. मसलन, मौजूदा हेमंत सत्ता ने राज्य को नयी खेल नीति देने की ओर ठोस कदम बढ़ाए. जो झारखंड के खून में मौजूद खेल परंपरा को पुनर्जीवित करने का माद्दा रखे. जिसकी रेखा गांव-पंचाय़त तक जाती हो. खेल नीति की ही भांति वह हेमंत सत्ता खनन के साथ ही पर्यटन पर भी जोर दे. और वह लकीर देश-विदेश में झारखंड को स्थापित करते हुए स्थानीय गरीबों के रोजगार से जा जुड़े. तो यकीनन यह झारखंड के जीत की गाथा की अनूठी शुरुआत हो सकती है.

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