दलित नेता अमर बाउरी हो या आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी हो, वर्तमान में अपनी ज़मीनी सच्चाई को भूल मनुवाद-सामंतवाद को संरक्षण देते प्रहरी के रूप में स्पष्ट रूप से दिख चले हैं.
रांची : “आप केवल एग्जाम रद्द काहे करवाना चाहते है. जिन सेंटर में गड़बड़ी हुई है उसकी जांच करवा कर वहां का एग्जाम कैंसल करके दुबारा भी तो एग्जाम ले सकते है. हर बात पर एग्जाम कैंसल करवाना समझ नही आता आपलोग चाहते क्या है? साफ साफ पता चल रहा है आप चाहते ही नही की हमे नौकरी मिले जल्दी.”-यह शब्द बाबूलाल मरांडी के ट्विट के रिप्लाई में गुलशन सोरेन के द्वारा लिखा गया है. जो युवा भविष्य के मद्देनजर बीजेपी की कुमंशा को स्पष्ट करता प्रतीत होता है.
जहां एक तरफ युवा भविष्य के मद्देनजर झारखण्ड सरकार आगामी लोकसभा चुनाव के पहले परीक्षा लेने के पक्ष दिखती है. तो वहीं बीजेपी यानी विपक्ष परीक्षा तिथि घोषित होने दौर से ही स्थगित कराने का पैरोकार दिखती है. बीजेपी के दलित नेता अमर बाउरी हो या आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी हो, वर्तमान में अपनी ज़मीनी सच्चाई को भूल मनुवाद-सामंतवाद को संरक्षण देते प्रहरी के रूप में स्पष्ट रूप से दिख चले हैं. इनके पूर्व के वक्तव्य व ट्विट तथ्य की तस्दीक कर सकते हैं.
दरअसल, कल दिन भर जिस प्रकार सोशल मीडिया पर जेपीएससी परीक्षा प्रकरण के मद्देनजर विभिन्न प्रकार की प्रायोजित चर्चाओं को ट्रेंड कराने प्रयास हुआ. उसमें स्पष्ट रूप से सामन्ती प्रचार पद्धति का पैटर्न झलका. जिसके तल में दिखा कि राज्य का विपक्ष हर हाल में आगामी लोकसभा चुनाव के पक्ष में किसी भी परीक्षा को रोक युवाओं के बीच भ्रम की स्थिति उत्पन्न करना चाहती हैं ताकि साहेब के राहों में आने वाले सभी अडचन दूर हो सके.
परीक्षा देने का नाटक कर वीडियो बना वायरल करना सामन्ती मंशा का हिस्सा
झारखण्ड के JPSC प्रकरण में परीक्षा शुरू होने से पहले किसी के पास पेपर नहीं मिला, ना ही किसी ने ऐसा दावा किया और ना ही कोई स्क्रीनशॉट पोस्ट हुआ है. दरअसल इसकी शुरुआत चतरा के एक एक्जाम सेंटर से हुई, जहां कुछ छात्रों ने प्रश्न पत्र के पैकेट की सील खुले होने का आरोप लगाया. प्रशासन के उच्चाधिकारी ने पैकेट खोलने की वीडियो की जांच में पाया कि वहां नियमों का उल्लंघन नहीं हुआ है. फिर छात्र परीक्षा देने के लिए तैयार हो गए और वहां परीक्षा शुरू हो गई.
दूसरी घटना जामताड़ा की है. ज्ञात हो, पूर्व की रघुवर सरकार में झारखण्ड के जामताड़ा ने साइबर अपराध में ख्याति पाई. यह क्षेत्र सांसद निशिकांत दुबे के संसदीय क्षेत्र से भी नजदीक है. इससे जामताड़ा पर किस दल का अधिक प्रभाव हो सकता है समझना कोई राकेट साइंस नहीं. जामताड़ा के मिहिजाम स्थित एक परीक्षा केंद्र पर पर्वेक्षकों के समझाने के बावजूद, उच्चाधिकारियों के वहां पहुंचने से पहले, करीब 20 छात्र प्रश्न पत्र और OMR Sheet लेकर जबरन वहां से बहार निकल गए.
परीक्षा केंद्र के पर्वेक्षकों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया लेकिन वे धक्का-मुक्की और नारेबाजी करते हुए भाग निकले. ज्ञात हो, किसी भी परीक्षा के दौरान या उसके बाद, किसी भी परिस्थिति में परीक्षार्थियों को उत्तरपुस्तिका बाहर ले जाने की अनुमति नहीं होती. मसलन, जिस प्रकार उन छात्रों ने परीक्षा केंद्र से बाहर जाकर परीक्षा देने का नाटक कर वीडियो बनाया और वायरल किया. परीक्षा रद्द कराने की सामन्ती मंशा स्पष्ट रूप से प्रतीत हुआ. और प्रायोजित योजना का आभास कराया.
यह मामला राज्य की संस्थाओं से गहन जांच की मांग करती है
विपक्षीय नेता, शिक्षा व्यापारियों और और आईटी सेल जिस प्रकार से पुरे प्रकरण में साथ देते दिखे, पूरी स्थिति स्पष्ट कर सकती है. चूँकि राज्य को केन्द्रीय जांच एजेंसी पर भरोसा डिग चला है मसलन राज्य की संस्थाओं से यह मामला गहन जांच की मांग करता है. घटना के बाद जिले के वरिष्ठ अधिकारी वहां पहुंचे और परीक्षा समाप्त होने तक वहां डटे रहे. पूरे कैंपस को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया. बाहर निकल चुके परीक्षार्थियों समेत सभी के आने-जाने पर रोक लगाई गई.
केन्द्रीय बीजेपी शासन के अक्स में वास्तव में हम उस दौर में आ चुके है जहाँ भ्रष्टाचार और अपराध का बोलबाला है. एलेक्ट्रोल बांड, गोदी मीडिया की तस्वीरें और केन्द्रीय सरकारी संस्थानों की परिस्थितियां तथ्य की पुष्टि करती है. परीक्षा तिथि घोषित होते ही परीक्षा टालने व रद्द करवाने की मंशा स्पष्ट रूप दिख चली थी ताकि बीजेपी शासित राज्यों में पेपर लिक मामलों को लेकर जनता भरमाया जा सके. मामले में जिला प्रशासन ने एसआईटी गठन कर दो प्राथमिकियां दर्ज की हैं.
पहली एफ़ाइआर में 51 लोगों पर षड्यंत्र, एक्जाम सेंटर पर हंगामा, परीक्षा बाधित का आरोप है. और दूसरी एफ़ाइआर में OMR Sheet लेकर बाहर निकलने वाले 20 परीक्षार्थियों आरोपी बनाया गया है. मामले से जुड़े सारे साक्ष्य एवं वीडियो पुलिस के पास मौजूद हैं. आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद, साजिश को अंजाम देने में उनका साथ देने वालों पर कार्यवाई की जा सकेगी. मसलन, यह पेपर लीक का मामला नहीं बल्कि संगठित अपराध का मामला प्रतीत हो चला है.