झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता-नेता सभी कहते पाए जाते हैं कि ऐसे ही नहीं कहते हम ‘हेमन्त है तो हिम्मत है’. सटीक दलील भी देते हैं. कहते हैं हेमन्त के नेतृत्व में राज्य राजनीतिक रूप से दक्ष हो रहा है.
रांची । झारखण्ड में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता-नेता सभी यह कहते पाए जा रहे हैं कि ऐसे ही हम नहीं कहते ‘हेमन्त है तो हिम्मत है’. कारण पूछने पर स्पष्ट कहते हैं कि हेमन्त सोरेन न केवल झारखण्ड के मुख्यमंत्री के रूप में, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर भी सटीक व अलंकृत विकल्प हैं. मसलन, न झारखण्ड की जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री चुन कर कोई गलती की है और ना ही हमने.
कार्यकर्ता – सरकार बनते ही राज्य कोरोना महामारी के चपेट में आया. अल्प संसाधन के बीच मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने अपनी कुशलता से राज्य को संकट से बाहर निकाल. राज्य को भूख से भी मरने नहीं दिया. जबकि भाजपा काल में राज्य में सामान्य दिनों में भी भूख से केई मौतें हुई. मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार में उतारी गई सारी योजनाएं जहां हर वर्ग के गरीब को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने की वकालत करती है तो वहीं महिलाओं को समाजिक सुरक्षा के साथ आत्मनिर्भर बनाती है.
हेमन्त सरकार को कई केन्द्रीय माध्यमों से अस्थिर करने के प्रयास के बावजूद मुख्यमंत्री अपनी कुशल राजनीति का परिचय दे रहे हैं. एक तरफ वह सरकार को बचा रहें तो दूसरी तरफ उनकी नीतियाँ शिक्षा पर विशेष जोर देते हुए राज्य को सभी आयामों में विकसित की मोती लकीर खींच रही है. किसान-कृषि, ऊर्जा, इतिहास, पर्यटन, खेल, उद्योग, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, महिला सुरक्षा, न्याय, स्थायीकरण, नियुक्ति, स्वरोजगार, दलित, आदिवासी, पिछड़ों की समस्याओं समेत सभी आयामों में राज्य बुनियादी तौर मजबूत हो रहा है. ऐसे में हम क्यों न कहें –“हेमन्त है तो हिम्मत है…