झारखण्ड में निजी विश्वविद्यालयों की स्थिति ठीक नहीं : राज्यपाल

राज्य के विभिन्न निजी विश्वविद्यालयों की शैक्षणिक व प्रशासनिक गतिविधियों की समीक्षा बैठक राज भवन में संपन्न हुई. समीक्षा बैठक में राज्यपाल, अपर मुख्य सचिव, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग के. के. खंडेलवाल, राज्यपाल के अपर मुख्य सचिव शैलेश कुमार सिंह एवं राज्य में स्थित विभिन्न निजी विश्वविद्यालयों के कुलपति मौजूद थे. बैठक को संबोधित करते हुए राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि शिक्षा को व्यवसाय के रूप में कतई नहीं लेना चाहिये. छात्रहित में ऐसी शिक्षा व्यवस्था का कोई औचित्य नहीं है.

उन्होंने कहा कि आश्चर्य व दुख का विषय है कि हमारे राज्य में स्थापित निजी विश्वविद्यालय यूजीसी व सरकार द्वारा निर्धारित मापदण्डों को पूर्ण नहीं कर रहे हैं. यूजीसी की अनुमति के बिना निजी विश्वविद्यालयों द्वारा विभिन्न कोर्स प्रारम्भ कर विद्यार्थियों को डिग्री वितरित कर दी जाती हैं. ऐसा कर वे सिर्फ विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं.

निजी विश्वविद्यालयों को यूजीसी एवं सरकार द्वारा निर्धारित मापदंडों को यताशीघ्र पूर्ण का निदेश 

राज्यपाल महोदय द्वारा सभी निजी विश्वविद्यालयों को यूजीसी एवं सरकार द्वारा निर्धारित मापदंडों को यताशीघ्र पूर्ण का निदेश दिया गया. और कहा कि सभी निजी विश्वविद्यालयों को छात्रहित में सर्वोपरि भावना का ध्यान रखना चाहिये. आज राज्य में काफी निजी विश्वविद्यालय खुल रहे हैं. छतीसगढ़ का उल्लेख करते हुए कहा कि जब से निजी विश्वविद्यालय खुलने हेतु मान्यता देने की प्रचलन प्रारम्भ हुई तो छत्तीसगढ़ में सन 2001 में 125 से अधिक विश्वविद्यालय खुल गये. कुछ विश्वविद्यालय होटलों से संचालित हो रहे थे. परिणाम यह हुआ कि बिना यूजीसी के मापदंड संचालित निजी विश्वविद्यालय बंद हो गये और दो माह में मात्र 6 विश्वविद्यालय ही शेष बच गये. छात्रहित में यह एक गंभीर विषय है. 

क्या हम वह वातावरण नहीं स्थापित कर सकते जहाँ देश-विदेश से विद्यार्थी शिक्षा हासिल करने के लिए यहाँ आना चाहे 

राज्यपाल महोदय ने कहा कि निजी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से कहा कि क्या हम विश्वविद्यालयों में उस प्रकार का वातावरण नहीं स्थापित कर सकते हैं जहाँ देश-विदेश से विद्यार्थी शिक्षा हासिल करने के लिए यहाँ आये. सभी निजी विश्वविद्यालयों को अपने विद्यार्थियों को गुणात्मक शिक्षा प्रदान करनी चाहिये ताकि वे सम्मानजनक रोजगार प्राप्त कर सकें. उन्होंने विश्वविद्यालयों में टीचर-स्टूडेंट्स अनुपात में सुधार लाने पर ज़ोर दिया. विडम्बना है कि बहुत से निजी विश्वविद्यालयों के पास इतने वर्ष पूर्व मान्यता प्राप्त होने के बाद भी न अपना भवन है और न ही पर्याप्त भूमि.

निजी विश्वविद्यालयों को निदेश दिया गया कि वे अपने यहाँ छात्राओं एवं दिव्यांगो के लिए पृथक शौचालय की व्यवस्था करें. दिव्यांगो हेतु रैम्प का निर्माण शीघ्र करें. लोकसभा की सामाजिक न्याय और अधिकारता संसदीय समिति का अध्यक्ष होने के नाते डिसेबिलिटी विधेयक के अध्ययन के दौरान कई शहरों का भ्रमण किया और देश भर के दिव्यांगजनों से मिला, उनकी बातें सुनी व उनकी प्रतिभाएं देंखी. इसलिए दिवयांगों के लिए रैम्प की आवश्यकता है. 

हमारे विश्वविद्यालय को महिलाओं को स्थानीय स्तर पर रोजगार सुलभ कराने के लिए गंभीरतापूर्वक ध्यान देना चाहिए. देश के विभिन्न अस्पतालों में केरल की नर्सेज को देखा जा सकता है. हम झारखंड की महिलाओं को नर्स की बेहतर प्रशिक्षण क्यों नहीं दे सकते हैं, केवल आवश्यकता है तो समर्पण व ढृढ़ इच्छाशक्ति से कार्य करने की. आज हमारे विद्यार्थी यहाँ से डिग्री प्राप्त कर राज्य के बाहर नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इस राज्य में भी कई कंपनियां हैं, आप सभी को चाहिये कि विद्यार्थियों के प्लेसमेंट के लिए पूरा प्रयास करें.

निजी विश्वविद्यालयों को प्लेसमेंट सेंटर को प्रभावी बनाने के निदेश

निजी विश्वविद्यालयों को अपने यहाँ प्लेसमेंट सेंटर को प्रभावी बनाने हेतु निदेश दिया गया. राज्यपाल महोदय ने निजी विश्वविद्यालयों को विभिन्न प्रशासनिक पदों यथा- कुलपति, प्रतिकुलपति, कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक, वित्तीय सलाहकार, वित्तीय पदाधिकारी इत्यादि पर नियुक्ति के समय उनकी पृष्ठभूमि की ओर गंभीरतापूर्वक जाँच करने  हेतु कहा. उनकी बेहतर छवि होना चाहिये ताकि विश्वविद्यालय की छवि ख़राब न हो.

राज्यपाल महोदय ने राज्य में उच्च शिक्षा के विकास हेतु चिंता जताई. उच्च शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधार हेतु उनका निरंतर मार्गदर्शन करने को वह तत्पर हैं. निजी विश्वविद्यालयों के पास 25 एकड़ की भूमि होनी चाहिये. इसके अतिरिक्त 5 वर्ष के अंदर पूर्णतः आधारभूत संरचना विकसित होने चाहिये. सभी निजी विश्वविद्यालयों से निर्धारित मापदंडों का शीघ्र अनुपालन करने हेतु निदेश दिया. विदित हो कि राज्य में अभी कुल 16 निजी विश्वविद्यालय है.

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