झारखण्ड : राज्य में आदिवासी ज़मीन कब्ज़े को लेकर सीएम गंभीर -जांच के आदेश

आदिवासी ज़मीन कब्ज़े के मद्देनजर हो रहे जांच में मुख्य बिन्दु – कितने आदिवासी जमीन पर गैर आदिवासियों का कब्जा. कितने आदिवासी अपने जमीन से हुए बेदखल. कितने आदिवासियों की जमीन वापसी का मामला लंबित.

रांची : झारखण्ड देश का एक अनुसूचित राज्य है. इस प्रदेश में प्रभावी सीएनटी-एसपीटी एक्ट आदिवासी-मूलवासी के ज़मीनों के सुरक्षा कवच के रूप में विद्यमान है. लेकिन, झारखण्ड गठन के उपरान्त केन्द्रीय सरकारी नीतियों, लम्बे समय तक बाहरी मानसिकता के प्रभाव में भाजपा शासन की नीतियों में हुई अनियमित्ताएं के अक्स में शहरी क्षेत्रों में आदिवासी ज़मीनों पर अतिक्रम हुए हैं. नतीजतन, आदिवासी ज़मीन कब्ज़े के अक्स यह ग़रीब समुदाय बेघर व विस्थापित हुए है. उपरोक्त विसंगतियों के जांच के मद्देनज़र मौजूदा हेमन्त शासन में कदम उठाये गए हैं.  

राजधानी रांची, शहर में हुए आदिवासियों जमीन कब्ज़े के मद्देनज़र मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन द्वारा विस्तृत जांच का निर्देश दिया जाना, राज्य के लिए सुखद खबर हो सकता है. इस बाबत प्रधान सचिव द्वारा राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव को पत्र निर्गत कर दिया गया है. पत्र में तीन बिंदुओं पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश हैं. ज्ञात हो, 6 मई को ईडी द्वारा आईएएस पूजा सिंघल, पति अभिषेक झा के पल्सी हॉस्पिटल में छापेमारी हुई थी. जिसमे खुलासा हुआ था कि हॉस्पिटल जिस ज़मीन पर बना है वह वकास्त भुईहरी मुंडई ज़मीन है. 

रांची शहर में आदिवासी ज़मीन कब्ज़े में जांच के आदेश में मुख्य बिन्दु

ज्ञात हो, राज्य में भूईहर आदिवासी की जमीन उस समुदाय के अलावा किसी और को बेची नहीं जा सकती. ऐसे में, बरियातु में कई अन्य भवन भी भुईहरी ज़मींत पर खड़े पाए जाने के कारण राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा यह कदम उठाया गया है. जांच के बिन्दु – 

  1. सीएनटी एक्ट उल्लंघन के मद्देनज़र कितने आदिवासियों की ज़मीन पर गैर आदिवासियों का कब्ज़ा है?
  2. रांची शहरी क्षेत्र में कितने आदिवासी अपनी ज़मीन से हुए हैं बेदखल? 
  3. शहरी क्षेत्र में कितने आदिवासियों की ज़मीन वापसी का मामला लंबित है? 

आदिवासी ज़मीन पर बने गैर आदिवासी भवन के निर्माण को सीएम द्वारा गंभीरता से लिया गया है. राज्य गठन के बाद राज्य में पहला मौक़ा है जब किसी सीएम द्वारा आदिवासी ज़मीन कब्ज़े की विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है. जो निश्चित रूप से आदिवासी-मूलवासियों के लिया राहत भरी खबर हो सकती हैं.

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