हेमन्त सरकार ने दिए झारखंड के आंदोलनकारियों को नौकरी व पेंशन के अधिकार

आंदोलनकारियों व आश्रितों को नौकरी व पेंशन के अधिकार देना बताता है कि झारखंड अपने बुजुर्गों-महापुरुषों को सम्मान देना जानता है। और जो राज्य अपने बुजुर्गों की पहचान मिटने से बचाता है उस राज्य की पहचान वर्षों तक जीवित रहती है

झारखंड में 14 वर्षों के भाजपा शासन में, झारखंड आन्दोलन के सिपाहियों की अनदेखी होना ही, उनकी त्रासदी को बयान के लिए काफी हो सकता है। जहाँ सत्ता सहयोगी आजसू की नाराज़गी भी तथ्यों की पुष्टि करे। जिन्होंने अपना सर्वस्व लूटकर हमें अलग झारखंड तोहफे में दिया, उनका ही जीवन ऐसे मुहाने आ खड़ा हुआ जहाँ उनकी गरिमा मुफलिसी के त्रासदी में तार-तार होती रही। उनके परिवार, अगली पीढ़ी को गरीबी के दंश में शिक्षा के अभाव में, बंधुआमजदूरी की परिस्थिति को स्वीकारते हुए राज्य से पलायन तक करना पड़ा। 

इससे अधिक पीड़ादायक स्थिति और क्या हो सकता है जहाँ अधिकांश आन्दोलन के सिफाही बेहतर इलाज़ के अभाव में काल के मुंह में समा गए। जो थोड़े बहुत जीवित है आर्थिक दृष्टिकोण से उनकी स्थिति दयनीय है। यह किसी सत्ता की कैसी अपंग मानसिकता हो सकती है जो उसे अपने सिरमौर बुजुर्ग महापुरुषों की सुध लेने की इजाज़त न दे। जिसका लोभ मानवता को घुटने टेकने पर मजबूर करे… नाम करण आप स्वयं कर लें।

क्षितिज में हमेशा अँधेरा नहीं रहता भोर होती है। राज्य में पहला मौका है जहाँ महान आन्दोलकारी विरासत की अगली पीढ़ी, झारखंडी मानसिकता की सरकार ने पहली बार न केवल उन आन्दोलनकारियों को, बल्कि उनके परिवार की भी सूध ली है। जहाँ आन्दोलनकारियों को पहली बार महसूस भी हुआ है कि उनका संघर्ष बे मायने नहीं था। पाँव के छालों में मरहम लगाने के मद्देनज़र उनकी पीढ़ियों के भविष्य में नया बिहान हुआ है और उनके अरमान पूरे होने की दिशा सधे क़दमों के साथ फिर से अग्रसर है। 

हेमंत सरकार ने आंदोलनकारियों के हक अधिकार के मातहत अपना मानवीय पहलू दिखाया है

ज्ञात हो झारखंड की हेमंत सरकार ने आंदोलनकारियों के हक अधिकार के मातहत अपना मानवीय पहलू दिखाया है। जहाँ मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने आंदोलकारियों व उनके आश्रितों को सीधी नियुक्ति के रूप में नौकरी तथा पेंशन समेत अन्य जरूरी सरकारी सुविधाएँ मुहैया कराने जैसे क्रांतिकारी ऐलान किया है। यह भी ज्ञात रहे कि मुख्यमंत्री ने सत्ता में आते ऐसे तमाम आंदोलनकारियों को चिन्हित करने के निर्देश अधिकारियों को दिए थे। 


चूँकि हेमंत सोरेन स्वयं महान आन्दोलनकारी, दिशुम गुरू शिबू सोरेन के पुत्र हैं, तो उन्हें निश्चित रूप से आन्दोलनकारियों के संघर्षीय जीवन का भान है। झारखंड के आन्दोलनकारियों को आन्दोलन जंगलों से छिप कर चलाना पड़ा है। ऐसे वक़्त में, परिवार तितर-बितर हो जाते हैं। बच्चे की शिक्षा तो दूर की बात होती है, दिनों तक खाने को कुछ नहीं मिलता। बच्चा बाप के काँधे को तरसता है।  मसलन, हेमन्त सोरेन की यह पहल किसी भी गणतंत्र देश-राज्य के लिए न्यायोचित हो सकता है। क्योंकि बुजुर्गों की पहचान न मिटने देने की कवायद झारखंड की पहचान को वर्षों तक जीवित रख सकता है।

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