झारखण्ड को पूरा एक दिन बिना जनता द्वारा चुनी सरकार ने चलाया और साक्षी राजभवन बना. लेकिन हेमन्त सोरेन के आसरे राज्य फ़ासी समझ के आगे न झुकने – न हार मानने की छवि गढ़ने में कामयाब रहा.
रांची : धरती आबा बिरसा व अन्य महापुरुषों के बाद दिशोम गुरु शिबू सोरेन ही थे जिन्होंने सामन्ती पैंतरों को समझा और सटीक रणनीत के आसरे उसे परास्त कर हमें अलग झारखण्ड प्रदेश दिया. अलग झारखण्ड के पूर्व के 20 वर्षों के राजनीति के आसरे सामंतवाद मान बैठा कि उनके पैंतरों को समझने कि कड़ी झारखण्ड में समाप्त हो चली है. और झारखण्ड अपने महापुरुषों के अथक प्रयासों से अर्जित हक-अधिकार को बंद मुठी के फिसलते रेत की भांति हड़पा जा सकता है.
लेकिन, पूर्व सीएम हेमन्त सोरेन के कार्यकाल में झारखण्ड हित में लिए गए फैसलों और नीतियों ने तमाम सामन्ती सोच को धराशाही कर दिया. मनुवादी समझ को न केवल अस्त-व्यस्त किया. उसके समक्ष अस्तित्व संरक्षण को लेकर प्रश्न खड़ा कर दिया. पूर्व सीएम हेमन्त सोरेन की तानाशाही गिरफ्तारी और निशिकांत दुबे, बाबूलाल मरांडी, अमर बाउरी, सुधीर चौधरी सरीखे कई सामन्ती नेता-पत्रकार के क्रियाकलाप को इस तिलमिलाहट के स्पष्ट सच के रूप में समझा जा सकता है.
पूर्व सीएम हेमन्त ने आदिवासी-मूलवासी सामन्ती समस्याओं से मुक्ति दी
हेमन्त सोरेन ने 2019 में झारखण्ड के सीएम के रूप में शपथ ली थी. सत्ता के खुमार में सराबोर होने के बजाय उन्होंने राज्य के महापुरुषों के जन संघर्ष की परंपरा को आगे बढ़ाया. भूमि अधिग्रहण, खनन, आंगनबाड़ी, पारा शिक्षक, आदिवासी-मूलवासी को सामन्ती समस्याओं से मुक्ति दी. योजनाओं के आसरे एससी-एसटी-ओबीसी व गरीबों के अधिकार संरक्षित कर उन्हें ठोर दिया. आदिवासी – मूलवासी के 1932 स्थानीय नीति, आरक्षण, सरना-आदिवासी धर्म कोड लड़ाई को अपना कंधा दिया.
राज्य के बेजुबानों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की, दमित-गरीब उद्धार के मद्देनजर शिक्षा के क्षेत्र में ठोस इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर उन्हें नई आस दी. हेमन्त ही वह पहले सीएम थे जिन्होंने मंच से कहने की हिम्मत दिखाई कि सामन्तवाद भेड़िया की तरह झुंड बनाकर दलित, आदिवासी ओबीसी व गरीब के अधिकारों पर टूट पड़ाता है. शायद हेमन्त सोरेन के यही वह विशेषताएं रही जिसके अक्स में आदिवासी मूलवासियों में सघर्षों के प्रति उम्मीद बढ़ी है. और राज्य की एकजुटता कायम रही.
झारखण्ड राज्य को पूरा एक दिन बिना जनता द्वारा चुनी हुई सरकार ने चलाया
मसलन, सामन्तवाद को यह कैसे गवारा हो सकता था कि उसकी तमाम तंत्र एक आदिवासी की जनहित समझ से मात खाए. मसलन, वह अपने ही पूर्व के सरकार की घोटालों के मद्देनजर इडी के आसरे उनपर हमला बोला. जैसे ही जांच उनकी ही दहलीज़ पर पहुँचती जांच को रोक दिया जाता. फिर पुनः दुसरे एंगल से उनपर हमला होता और यह सिलसिला पूर्व सीएम हेमन्त सोरेन के गिरफ्तारी के बाद तक जारी है. अब भी उनपर बिना सर-पैर के आरोप मढ़े जा रहे हैं.
31 जनवरी 2024 की काली सर्द रात को संविधान के अक्षरों को शर्मशार कर हेमन्त सोरेन रूपी सशक्त झारखंडी समझ की राजभवन से गिरफ्तारी हुई. झारखण्ड राज्य पूरे एक दिन बिना सरकार या राष्ट्रपति शासन के चला. कहा सकते हैं राज्य को पूरा एक दिन बिना जनता द्वारा चुनी हुई सरकार ने चलाया. और साक्षी राजभवन बना. लेकिन तमाम परिस्थितियों के बीच भी झारखण्ड नें हेमन्त सोरेन के आसरे अन्याय के सामने कभी न झुकने-हार न मानने की छवि गढ़ने में कामयाब रहा.