केन्द्रीय ट्रैप से झारखण्डी जनता को बाहर निकल सरकार को भी निकालना होगा और सरकार के साथ झारखण्ड के अस्तित्व की लड़ाई को अंत तक पहुंचाना ही होगा. 21 वर्षों में कई सरकार देखे लेकिन केवल हेमन्त सरकार ही झारखंडी भावना से मेल खाती है. झारखण्ड को इस दफा न चूकना होगा, न झुकना होगा …जंग जीतना होगा.
राँची : मौजूदा दौर में एक खास किस्म की मानसिकता झारखण्ड में लगातार फ़ासी प्रयोग कर रहा है. एक तरफ झारखण्ड के प्रखर अनुभवी आवाज, नयी यथार्थवादी सोच को कुचलने का प्रयास हो रहा है. तो दूसरी तरफ फिर सपनों की दुनिया का भ्रम पैदा कर, तमाम मूल वर्ग को फिर अँधेरे जीवन में धकेलने का प्रयास करती साफ़ दिखती है. ऐसे में मूल युवा-जनता को समझना ही होगा कि झारखण्ड के कैनवास पर न तो अलिफ़ लैला जैसी आलौकिक कहानी लिखी जा रही है और न ही किसी कविता को मूर्त रूप दिया जा रहा है. बल्कि राज्य के सच्चाई को जीते हुए एक-दुसरे का हाथ थमते हुए झारखण्ड के बुनियाद को गढ़ने का प्रयास हो रहा है.
हेमन्त सोरेन बतौर मुख्यमंत्री, एक भयावह लूटेरी सोच जिसकी पहुँच संस्थानिक बुनियाद तक है, से तमाम तांत्रिक विसंगतियों, तमाम प्रपंचों, आर्थिक खिंचाव के बीच झारखण्ड जैसे छले-गरीब राज्य को विकास की पटरी पर सीमित संसाधनों व सीमित सीपेसलारों के साथ ला खड़ा करने हेतु जूझते दिखते हैं. ऐसे में झारखण्ड के तमाम मूल वर्गों को बाहरी मानसिकता के मिडिया सेल सहित तमाम दुष्प्रचार से इतर अपनी समझ के मुताबिक, झारखण्डी सपनों के तमाम फटे चरित्रों को मस्तिष्क में जोड़ते हुए, जंग जितने तक फिर से एक जुट खड़ा रहना होगा. हमने सभी सत्ता को देखा है. हमें हेमन्त सत्ता को ही अपनी समझ से तरासना होगा. अन्यथा देर हो जायेगी. न इतिहास माफ़ करेगा न पीढ़ी.
क्या हमें भ्रामिक प्रचार के अक्स में ज़मीनी सच्चाई भूल राज्य मानवीय पहल की खिंची तमाम पहलूओं को भूल अँधेरे कुद्द जाना चाहिए? – सवाल
ज्ञात हो, मौजूदा दौर में केन्द्रीय उपेक्षा के बावजूद झारखण्ड की शासन तमाम भाजपा शाषित राज्यों के मुकाबले बेहतर है. मौजूदा सत्ता पूर्व की सत्ता के भांति तानाशान नहीं है. आम-जन के सुख-दुःख, समस्याओं के साथ सम्वेदंसिलता के साथ खड़ी दिखी है. जन भावनाओं का आदर करती दिखी है. क्या यह लोकतांत्रिक सत्ता का गुण नहीं है? क्या हमें भ्रामिक प्रचार के अक्स में ज़मीनी सच्चाई भूल जाना चाहिए? शिक्षा, कृषि, श्रम, खेल, व्यापार-उद्योग, गरीबी, महिला सशक्तिकरण, शान्ति जैसे तमाम पहलूओं को भूल जाना चाहिए.
हमें झारखण्ड व सरकार को केन्द्रीय ट्रैप से बाहर निकालना ही होगा अन्यथा देर हो जायेगी
यकीनन नहीं, हमें मौजूदा सरकार के साथ खड़ा हो उसे सुझाव देना चाहिए. उसे हिम्मत देना चाहिए की तुम्हारे साथ हैं. हमें इस सत्ता के भीतर उस लूतेरी मानसिकता का चिंता को दूर करना चाहिए? हमें हेमन्त सत्ता को कहना चाहिए की आप झारखण्ड हित में फैसले ले हम आपके साथ खड़े हैं. बार-बार शोर मचाया जा रहा है कि पोषण सखी के साथ अन्याय हुआ है, 1932 आधारित स्थानीय नहीं लाया जा रहा है. इस मामले में झारखण्ड खबर की समझ है कि यह एक केन्द्रीय ट्रैप है. जिसमे यदि हेमन्त सरकार हड़बड़ी दिखाती है वह फंस सकती है. और इस सरकार का फंसना झारखण्ड का फंसना साबित हो सकता है.
ऐसे में हमें ज़मीनी सच्चाई का आंकलन करते हुए समझना ही होगा कि किसी सरकार के फैसले लिए लाने से पहले उसे कटघरे में खड़ा करने के दुष्परिणाम हो सकते है. राज्य के सपने-अधिकार व विकास की लकीरें ऐसे अधर में अटक सकते है. जहाँ दूर-तक हमें शायद रास्ते ही न दिखे. यह वक़्त झारखण्डी के लिए ऐतिहासिक फैसले लेने के लिए जानी जाएगी. यह वक़्त झारखण्ड का कठिन परीक्षा लेने वाला है. और इस परीक्षा में सरकार व जनता दोनों को साथ खड़े हो राज्य की लड़ाई को अंतिम पायदान तक पहुंचाना चाहिए. ताकि हम व हमारी पीढ़ी हमारे महापुरुषों के सपनों को जी सके.