जब कॉर्पोरेट प्रेम के मद्देनजर आरएसएस के एजेडों व मोदी नीतियों के गठजोर तले बीजेपी के क्षेत्रीय नेतृव विफल होने का सच सामने हो. तो ‘द ऑर्गनाइजर’ में छपे लेख का आशय संघ का गिरगिट के भांति रंग बदलना क्यों नहीं माना जाए.
रांची : भाषा वैज्ञानिकों का मानना है कि कर्नाटक का ‘टक’ नागवंशियों के गौरवशाली इतिहास का सच लिए हुए है. मसलन, नागवंशियों की ऐतिहासिक धरती कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार सामंतवादियों को ज़मीनी हकीकत समझने पर मजबूर कर दिया है. सामन्तवादी व्यवस्था को इल्म हो चला है कि देश के राज्यों में उनके द्वारा फैलाए गए डबल इंजन सरकार के भ्रम का पर्दाफास हो चुका है. और बीजेपी व संघ के राष्ट्रवाद के गुब्बार की हवा फुस्स हो चुकी है.
सामंतवादियों की खासियत होती है कि वह गिरगिट से भी तेज गति से रंग बदलने में माहिर होते हैं. इसकी तस्दीक आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ‘द ऑर्गनाइजर’ में छपे लेख से होता है. आरएसएस व मोदी शासन के राष्ट्रवाद के अक्स में 9 वर्षों से हासिये पर भेजे गए स्थानीय नेताओं की याद ठीक लोकसभा चुनाव से पहले आई है. ज्ञात हो, आरएसएस के समाज निर्माण विचार तले राज्यों में कॉर्पोरेट के माध्यम से ज़मीन लूट हुई. ग्रामीण बाजारों तक विदेशी, चीन उत्पाद की पहुँच बढ़ी.
आरएसएस आखिर किन मुद्दों के आसरे क्षेत्रीय नेतृत्व देगा मजबूती?
यहीं नहीं, समाज के वर्गों को खंडित किया गया. सांप्रदायिक तनाव बढ़े. इतिहास से लेकर नीतियों तक में महिला , आदिवासी, दलित व पिछड़ों के शिक्षा व हक का हनन हुआ. युवाओं व किसानों में बेरोजगारी बढ़ी. बेटियाँ शर्मशार हुईं, भूख से मौतें हुई. नतीजतन बीजेपी के तानाशाही विचार तले स्थानीय नेताओं को चुप किया गया और कॉर्पोरेट लूट तले उन्हें राज्यों के ज़मीनी मुद्दे से दूर किया गया. और उनके आत्मसम्मान व नैतिकता को रौंद कर उन्हें दो आकाओं के चाकर बना दिया गया.
ऐसे में संघ के ‘द ऑर्गनाइजर’ को लेख में भ्रामिक तथ्यों के बजाय ठोस तथ्यों के आधार पर बताना चाहिए था कि आखिर क्यों प्रधानसेवक का करिश्माई चेहरा व राष्टवाद जैसा प्रभावी अस्त्र अब चुनाव जीतने के लिए काफी नहीं? आखिर क्यों आरएसएस राष्ट्र छोड़ क्षेत्र के तरफ बढ़ना चाहता है? और यह भी बताना चाहिए कि संघ आखिर किन प्रभावी मुद्दों के आसरे क्षेत्रीय स्तर पर मजबूत नेतृत्व देंगे? क्योंकि राज्यों में बीजेपी के पतन का कारण केवल मोदी की नीतियाँ नहीं संघ के एजेंडे भी हैं.
क्या आरएसएस अब वनवासी, घुसपैठ, अनुसूचित व आरक्षित वर्गों में फेरबदल, इतिहास फेरबदल, शिक्षा ख़त्म करने जैसे एजेंडों को वापस लेगा? क्या आरएसएस राज्यों के सरना कोड, आरक्षण बढोतरी, जाति आधारित गणना जैसे मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरेगी? या फिर अपने उन्हीं भ्रामिक लेख के आसरे स्थानिय नेताओं में भ्रम पैदा कर व राज्यों की अस्मिता को छीन-भिन्न कर मोदी सरकार के नीतियों का लिपा-पोती करना चाहता है?