झारखण्ड : सीएम हेमन्त ने कानूनी पचड़ों से स्थानीय व आरक्षण विधेयक को बचाने के लिए केंद्र के पाले में डाल फिर एक बार कुशल रणनीति का परिचय दिया. केन्द्रीय मुहर लगते ही न केवल विधेयक अजर-अमर होगा, बीजेपी का झारखण्ड प्रेम भी प्रदर्शित होगा.
रांची : झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के कुशल रणनीति के अक्स में 11 नवंबर 2022 का दिन झरखण्डियों की पहचान के सुनिश्चित करने के मद्देनजर ऐतिहासिक बना. झारखण्ड की मूल जनता द्वारा 1932 आधारित स्थानीयता की मांग राज्य के गठन काल से होती रही है. लेकिन बाहरी वर्चस्व के अक्स में केन्द्रीय राजनीति ने इस जनवादी मुद्दे को अनसुलझा पहेली बना दिया था. साथ ही इस मुद्दे पर प्रखर झारखंडी मूल नेताओं के कारीयर को सुनियोजित तौर पर समाप्त किया गया.
कुशलता का परिचय देते हुए सीएम का 1932 स्थानीयता व आरक्षण विधेयक को अजर-अमर करने कर प्रयास
ज्ञात हो, बीजेपी के पूर्व की सरकार में, आजसू दल की सहमति में, राज्य सत्र से पारित कर 1985 वर्ष आधारित स्थानीयता झरखण्डियों पर थोपा गया. नतीजतन, न्याययालय ने बीजेपी के उस स्थानीय नीति को असंवैधानिक करार दिया. जिससे फिर यह मुद्दा झारखण्ड की राजनीति के केंद्र में रहा. और बीजेपी जैसे दल के बाहरी आधारित राजनीति को राज्य में बल मिला. साथ ही बीजेपी एक तरफ स्थानीयता पर राजनीति करती रही और दूसरी तरफ हेमन्त सरकार के पगों को रोकती रही.
लेकिन, सीएम हेमन्त 1932 स्थानीयता के कोर्ट में फँसने जैसे दूरगामी परिणाम समझ रहे थे. मसलन, उन्होंने फिर एक बार कुशलता का परिचय देते हुए स्थानीयत विधेयक को विधानसभा से पारित कर संविधान के 9वीं अनुसूची में शामिल करने हेतु, विधेयक को केंद्र के पाले में डाल दिया है. अब केंद्र की मुहर लगते ही विधेयक झरखण्डियों के पहचान के सुनिश्चित करने के मद्देनजर अजर-अमर हो जाएगा. साथ ही बीजेपी का झारखण्ड प्रेम जनता को देखने को मिल सकेगा.
विपक्ष के सामंती ज्ञान पर सीएम सोरेन का मानीय मूल्यों पर आधारित ज्ञान भारी
ज्ञात हो, विपक्ष के समक्ष चारा न बचने की स्थिति में उसके द्वारा 1932 आधारित स्थानीयता विधेयक को प्रवर समिति में भेजने तक का प्रस्ताव लाया गया. सीएम ने विपक्ष के प्रस्ताव पर स्पष्ट कहा कि 2001 में मंत्रिमंडल समिति द्वारा तैयार प्रस्ताव को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था. पूर्व सरकार की स्थानीय नीति को कोर्ट ने खारिज किया. कर्नाटक जैसे बीजेपी शासित राज्य भी आरक्षण संबंधी विधेय 9वीं अनुसूची में शामिल कर रहे हैं. हम अपने पैर पर कुलहाड़ी फिर से नहीं मार सकते.
सीएम ने कहा कि वर्षों लंबित इस विधेयक में केवल सरकारी रोजगार ही नहीं अन्य स्तर के रोजगार को जोड़ने के प्रावधान है. झारखंडी जन अधिकार संरक्षण के मद्देनजर इसका दायरा विस्तृत होने के कारण इस विधेयक पर केंद्र की मुहर लगना आवशयक है. ताकि भविष्य में केंद्र द्वारा बनने वाले योजनाओं में झारखण्ड भी भागीदार बन सके. हमारी सरकार पारदर्शिता पर विश्वास करती है. मसलन, राज्य को बर्बाद करने वाले गिरोह की सक्रिय सोच पर सीएम का मानवीय सोच भारी पड़ी है.