टनल हादसा : केन्द्रीय नीतियां और कितने श्रमिकों की बलि लेगा

उतराखंड टनल हादसा : केन्द्रीय सामन्ती सत्ता देश के और कितने श्रमिकों की बलि लेगा. बचाव कार्य का जिम्मा केंद्र को लेना चाहिए था जबकि मणिपुर की भांति यहाँ भी डबल इंजन सरकार रुपया डेग चल रही है. 

रांची : बिहार-झारखण्ड का समिलित क्षेत्र जम्बुद्वीप का वह क्षेत्र है जहाँ बुद्ध प्रिय सम्राट असोक के शासन में श्रमण यानी श्रम की परम्परा को मजबूत नीव मिली. लेकिन, मनु व्यवस्था के अक्स में श्रम परम्परा के वाहक श्रमिकों को शुद्र करार दे नव निर्माण के नीव तले बलि का साधन माना गया. आज देश में मनु विचारधारा पर आधारित आरएसएस की मोदी सरकार है. और मोदी शासन के चार धाम का स्वप्न देश के 41 श्रमिकों की बलि लेने पर आमादा है.

केन्द्रीय नीतियां और कितने श्रमिकों की बलि लेगा

आरएसएस-मोदी के सत्ता में सभी डबल इंजन के राज्यों की एक सी स्थिति हो चली है. कॉर्पोरेट और वोट उगाही के अक्स में मणिपुर पहाड़ में आदिवासी दोहन हो या फिर उतराखंड में हिमालय का दोहन, सभी में श्रम परपरा के वाहकों की बलि, मनु व्यवस्था की पहचान के तौर पर केंद्र में है. इसकी स्पष्ट झलक कोरोना दौर में सड़के नापते मजदूरों की व्यथा में मिली और अब उत्तराखंड में आधुनिक तकनीक की जगह ब्लास्टिंग के अक्स में टनल में फंसे 41 श्रमिकों की सिसक में देखी जा सकती है.      

इसकी दबी गूँज मोदी सरकार के पर्यावरण संम्बधी जल, जंगल, ज़मीन या पहाड़ दोहन के अक्स में बनी सभी नीतियों में देखी-समझी जा सकती है. यही नहीं मोदी के 2014 के पहले की भाषणों में, 10 वर्षीय शासन से समझी जा सकती है. साथ ही मौजूदा दौर में देश के चुनावी क्षेत्रों, राज्यों में पीएम मोदी के द्वारा 2047 के अक्स दिखाए जा रहे सपनों से भी समझी जा सकती है. ज्ञात हो, कोरोना काल के हीरो सीएम, हेमन्त सोरेन ने एक बार फिर पीएम के नीतियों पर सवाल उठाया है.  

झारखण्ड-बिहार के 41 श्रमिकों की ज़िंदगी दांव पर

आदिवासी सीएम हेमन्त सोरेन ने देश में गरीब श्रमिकों के पहरुआ के तौर पर अपनी पहचान बनाई है. उत्तरकाशी में बिहार-झारखण्ड के 41 श्रमिक जीवन की जंग लड़ रहे हैं. 12 नवंबर से ये श्रमिक टनल में फंसे हैं. अनमने ढंग से रुकते-चलते बचाव-कार्य के बीच अब तक साफ नहीं है कि फंसे श्रमिक कों कब तक टनल से सुरक्षित बाहर निकाला जा सकेगा. मीडिया को भी करीब जाने से मनाही है. झारखण्ड सरकार द्वारा भेजी गयी तीन सदस्यीय टीम बीजेपी नीतियों के आगे बेबस है.

सीएम हेमन्त घटना के बाद से श्रम विभाग को निर्देश दे रहे हैं और अपने श्रमिकों की स्थिति से अवगत होते देखे जा रहे है. मंत्री सत्यानन्द भोक्ता स्वयं मामले की मोनिटरिंग कर रहे हैं, टोल फ्री नंबर भी जारी की है. सुदिव्य कुमार सरीखे विधायक निरंतर श्रमिकों के परिजनों को ढाढस बंधा रहे हैं. मामले को लेकर सभी सोशल मिडिया पर भी निरंतर सक्रीय हैं. लेकिन, बचाव कार्य में ढीलापन को देखते हुए आखिरकार झारखण्ड के सीएम हेमन्त पीएम मोदी सरकारी पर नाखुश दिखे है. 

टनल में फसे मजदूरों के पक्ष में सीएम हेमन्त की पीड़ा 

उत्तराखंड सुरंग हादसे में फंसे मजदूरों को रेस्क्यू में विलंब पर सीएम हेमन्त ने नाराजगी जतायी है. उन्होंने कहा आधुनिक युग में भी इंतजार के सिवा कोई उपाय नहीं. फंसे मजदूरों के प्रति केंद्र सरकार का असंवेदनशील रवैये की कसमसाहट उनके शब्दों में स्पष्ट झलकी. उनका मानना है कि मजदूरों के बचाव कार्य का जिम्मा भारत सरकार को लेनी चाहिए थी. लेकिन मणिपुर की भांति यहाँ भी राज्य सरकार का रुपैया डेग की कार्रवाही जारी है. उनके अफसर अपने श्रमिकों का इंतजार कर रहे हैं. 

उन्होंने स्पष्ट कहा कि परियोजनाओं में सेफ्टी और प्रीक्योशन का विषय अत्यंत चिंताजनक है. जबकि उत्तराखंड में ऐसे कई हादसे हुए हैं. पहले भी झारखण्ड के श्रमिक इसके चपेट में आये हैं. और अपनी जान गँवाई है. केवल खाना-पानी ही जरूरी नहीं मानसिक तनाव का आकलन भी आवश्यक है. तुरंत समाधान निकालने के बजाय अब 9-10 दिन बाद विदेशों से एक्सपर्ट लाने की बात की गयी है. चिंता का विषय है कि अब तक रेस्क्यू नहीं हो सका है. झारखण्ड सरकार ने दूसरी टीम भी वहां भेज दी है.

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