झारखण्ड, बिहार, यूपी के पक्ष में हेमन्त सोरेन की नीतियां केन्द्र की मनमानी राजनीति को साधने में कारगर. जनपक्ष में इन राज्यों की राजनीति को एकजुट भी करेगा. तीनों राज्य की राजनीति जनपक्ष में होंगे आत्मनिर्भर.
रांची : झारखण्ड के सीएम हेमन्त सोरेन मंच से कहते हैं कि एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक और अभी वर्गों के ग़रीबों को अधिकार थाल में सजा कर नहीं मिलती. इन्हें हड्डियां गला देने वाला संघर्ष करना पड़ता है. पिछले 9 वर्षों की बीजेपी-आरएसएस की नीतियों को देखते हुए तथ्य सटीक प्रतीत हुए हैं. ज्ञात हो, बीजेपी और उसके डबल इंजन सरकार तथा आरएसएस की नीतियों के अक्स में झारखण्ड के साथ हो रहे पक्षपात और आदिवासी सीएम के पैर थामने का सच सामने है.
दलित राजनीति का चेहरा बहन मायावती की आवाज़ को खामोश कर दिया गया. रामविलास पासवान की पहचान को पार्टी समेत डकार लिया गया. यूपी-बिहार के यादव राजनीति को गुंडा राज करार दिया गया. लालू यादव जैसे ओबीसी प्रखर आवाज़ को लम्बे वक़्त तक जेल की कोठरी में दबाने का प्रयास हुआ. और नीतिश कुमार जैसे जुझारू ओबीसी प्रतीक को उनके पार्टी समेत निगले का प्रयास हुआ. जिसके अक्स में बहुजन और ग़रीब की संवैधानिक दुर्दशा का सच सामने है.
हेमन्त सोरेन ने सीएम बनते ही सामन्ती राजनीति को जल्द समझने वाले नेता
केंद्र यानी दिल्ली में किसी भी राष्ट्रीय दल की सत्ता रही हो उसका राजनीतिक अस्तित्व यूपी, बिहार और झारखण्ड के बिना संभव नहीं. कमण्डल और गंगा मैया की राजनीति स्पष्ट उदाहरण है. जिसके अक्स में इन राज्यों के साथ सबसे अधिक केन्द्रीय सौतेला व्यवहार होने का सच सामने है. और शायद यह इसलिए भी सच कि इन प्रदेशों में एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक और ग़रीबों की संख्या अधिक है. जिसके अक्स में इन राज्यों का अधिकार हनन पराकाष्ठा को पार किया है.
झारखण्ड के सीएम हेमन्त सोरेन ने समय रहते सामन्ती राजनीति के मजबूत पक्ष और प्रभाव समझ लिया. जिसके अक्स में उन्होंने झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की राजनीति में सभी वर्गों के भागीदारी और प्रतिनिधित्व का रास्ता खोल दिया है. उनकी नीतियां सभी वर्गों के लोकतांत्रिक अधिकार सुनिश्चित करती दिखी है. साथ ही वह मान्यवर कांसीराम व बहन मायावती की भांति देश भर के आदिवासियों की केन्द्रीय राजनीति सुनिश्चित करने के दिशा में बढ़ चले हैं. और राज्य में प्रभावी महतो राजनीति के युवाओं को पनपने का मौका भी दे रहे हैं.
नितीश कुमार और तेजवी यादव ने दिखाई है परिपक्वता -अखिलेश यादव को खीचनी होगी बड़ी लकीर
ज्ञात हो बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने अपनी उम्र से अधिक परिपक्वता दिखाई है. और सामंती राजनीति के प्रभाव के समझ के अक्स में सीएम नितीश कुमार का उन्हें साथ मिला. उन दोनों बहुजन शक्तियों को एक होते ही न केवल बिहार की राजनीति जनपक्ष में अंगड़ाई ली, केंद्र में चिर काल तक स्थापित होने का सपना संजोये गुजरात लॉबी के सिंहासन डोल पर मजबूर कर दिया. और लगभग ज़मीदोज हो चुकी कोंग्रेस को भी फिर से उठ खड़ा होने की शक्ति मिली.
यही तस्वीर अखिलेश यादव और बहन मायावती को यूपी के जनता के समक्ष में पेश करनी होगी. इन दोनों को न केवल एक होना होगा अपनी पार्टियों में सभी वर्गों के लिए रास्ते खोलने होंगे. ऐसा नहीं हुआ तो प्रदेश में बुल्डोज़र चलते रहेंगे. और बहुसंख्यक जनता अपने अधिकार से वंचित होते रहेंगे. और इन्हें केवल राजनीतिक विफलता ही मिलेगी. मसलन, वक़्त है कि बहन मायावती, नीतिश कुमार, लालू यादव और दिशोम गुरु शिबू सोरेन के नेतृत्व में यह प्रदेश अपनी राजनीति को धार दें.
हेमन्त की राजनीति लकीर ना केवल इन परदेशों को आत्मनिर्भर बनायेगी केन्द्रीय राजनीति को साधने में भी मददगार साबित होगी
यूपी, बिहार और झारखण्ड की राजनीति का सुर-ताल जैसे ही एक होंगे. इन प्रदेशों की राजनीतिक मजबूरियां समाप्त होगी. जिसके अक्स में एससी, एसटी, अल्पसंख्यक और ग़रीब को केंद्र राजनीति में मजबूत प्रतिनिधित्व मिलेगा. यह प्रदेश अपने हित में केन्द्रीय राजनीति को साधने में सक्षम होंगे. जिसे इन प्रदेशों से पलायन का दाग मिटेगा. और केन्द्र के मनमानी नीतियों में बदलाव देखने को मिलेगा. जिसके अक्स में बहुसंख्यक आबादी के अधिकार हर क्षेत्र में संरक्षित और सुनिश्चित होंगे.