आदिवासी कोड को लेकर सीएम हेमन्त का पीएम मोदी को आग्रह पत्र 

झारखण्ड : आदिवासी/सरना कोड को जनगणना कॉलम में शामिल करने हेतु सीएम हेमन्त सोरेन का पीएम मोदी को आग्रह पत्र. क्या पीएम प्रकृति पूजक की रक्षा कर भारत से विश्व को प्रकृति प्रेम का संदेश देंगे?

रांची : भारत देश का प्रथम नागरिक आदिवासी समुदाय ही है. विज्ञान व इतिहास तथ्य की पुष्टि करते हैं. आदिवासी समुदाय का परम्परा, इतिहास, पूजन शैली के अक्स में पृथक धर्म है. लेकिन, तमाम साक्ष्यों के बीच देश का आदिवासी समुदाय लम्बे वर्षों से अपने धार्मिक अस्तित्व की रक्षा हेतु जनगणना कॉलम में आदिवासी/सरना कोड को शामिल कराने को लेकर संघर्षरत है. विडंबना है कि वनवासी शब्द के अक्स में मादी सरकार के 9 वर्ष में भी उनकी मांग अनसुनी रही है. जो देश में 12 करोड़ से अधिक आदिवासियों के साथ हुए अन्याय को स्पष्ट दर्शा सकता है. 

आदिवासी कोड को लेकर सीएम हेमन्त का पीएम मोदी को आग्रह पत्र 

जबकि देश के समक्ष सीएम हेमन्त सोरेन के कार्यकाल में विशेष सत्र के माध्यम से सरना धर्म कोड विधेयक पारित कर केंद्र को भेजे जाने का सच सामने हैं. तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच भी सीएम हेमन्त ने आस नहीं छोड़ी है. इस सम्बन्ध में उनके द्वारा देश के प्रधानमंत्री को अनुरोध पत्र लिखा गया है. जिसमें उनके द्वारा देश के करोड़ों आदिवासियों के हित में आदिवासी/सरना धर्म कोड की चिरप्रतीक्षित माँग पर यथाशीघ्र सकारात्मक निर्णय लेने हेतु आग्रह किया गया है. प्रधानमंत्री से आशा जताया गया है कि वह वंचित वर्गों के संरक्षण में ऐतिहासिक फैसला लेंगे.

आदरणीय प्रधानमंत्री जी, जोहार! आशा करता हूँ आप सकुशल होंगे -सीएम हेमन्त 

पत्र में लिखा गया है कि आदिवासी का प्राचीन परंपरा प्रकृति उपासक के रूप में उन्हें चिन्हित करता है. और वह प्रकृति संरक्षण को ही धर्म मानते हैं. वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 12 करोड़ आदिवासी निवास करते हैं. झारखण्ड एक आदिवासी बाहुल्य राज्य है, जहाँ इस समुदाय की संख्या एक करोड़ से भी अधिक है. झारखण्ड में सरना धर्म मानने वालों की एक बड़ी आबादी है. जिसका संस्कृति, पूजा पद्धति, आदर्श एवं मान्यताएँ अन्य धर्मों के भांति पृथक है.

झारखण्ड समेत पूरे देश का आदिवासी लम्बे वर्षों से अपने धार्मिक अस्तित्व की रक्षा हेतु जनगणना कोड में प्रकृति पूजक आदिवासी/सरना धर्मावलंबियों को शामिल कराने को लेकर संघर्षरत है. समान नागरिक संहिता की माँग के दौर में प्रकृति पूजक आदिवासियों की पारंपरिक धार्मिक अस्तित्व की रक्षा एक गंभीर सवाल है. आदिवासी समुदाय में कई उपजाति समूह हैं जो विलुप्ति के कगार पर हैं. ऐसे में सामाजिक न्याय के तहत इन्हें संरक्षण नहीं मिला तो इनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा.

झारखण्ड के आदिवासियों की जनंसख्या के क्रमिक विशलेषण से ज्ञात होता है कि इनकी जनसंख्या का प्रतिशत 38 से घटकर 26 प्रतिशत ही रह गया है. और यह गिरावट लगातार दर्ज की जा रही है. मसलन, संविधान की 5वी-6ठी अनुसूची के अंतर्गत आदिवासी विकास पर प्रभाव पड़ा है. उपरोक्त परिस्थितियों के मद्देनजर हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन धर्मावलम्बियों की भांति आदिवासियों की पहचान एवं संवैधानिक अधिकारों के संरक्षण में पृथक आदिवासी/सरना कोड अत्यावश्यक है. 

जनगणना के कॉलम में इनके लिए अलग सरना आदिवासी कोड का लाभ 

पृथक आदिवासी सरना कोड मिलने से इनकी जनसंख्या का स्पष्ट आकलन हो सकेगा. जिसके तहत आदिवासियों की भाषा, संस्कृति, इतिहास का संरक्षण एवं संवर्द्धन के साथ इनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा हो सकेगी. उल्लेखनीय है कि वर्ष 1951 के जनगणना के कॉलम में अलग कोड की व्यवस्था थी परन्तु कतिपय कारणों से बाद के दशकों में यह व्यवस्था समाप्त कर दी गई. अतः आदिवासी समुदाय के संरक्षण एवं विकास के लिए यह व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है. 

ज्ञात हो, झारखण्ड विधानसभा से इस निमित्त प्रस्ताव पारित कराया गया है, जो केंद्र सरकार के स्तर पर निर्णय हेतु लंबित है. मुझे अपने आदिवासी होने पर गर्व है और एक आदिवासी मुख्यमंत्री होने के नाते मैं झारखण्ड समेत देश भर के आदिवासियों के हित में आपसे विनम्र आग्रह है कि आदिवासियों की आदिवासी/सरना धर्म कोड की चिरप्रतीक्षित माँग पर यथाशीघ्र सकारात्मक निर्णय लें. आज विश्व पर्यावरण की रक्षा को लेकर चिंतित है, ऐसे में भारत में प्रकृति पूजक की रक्षा का प्रयास विश्व को प्रकृति प्रेम का संदेश देगा.

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