झारखण्ड : पूर्व राज्यपाल ने कहा सरकार अस्थिर न हो, इसलिए उन्होंने निर्वाचन आयोग के मंतव्य पर निर्णय नहीं लिया. ऐसे में क्या यह नहीं माना जा सकता कि केंद्र के निर्देशों को ना मानने के कारण उन्हें बदला गया है.
राँची : पूर्व राज्यपाल रमेश बैस की विदाई झारखण्ड के मुख्यमंत्री के द्वारा सम्मान पूर्वक दिया गया. जो झारखण्ड की महान परम्परा को देश के पटल पर दर्शाता है. कार्यक्रम में पूर्व राज्यपाल रमेश के द्वारा कहा जाना कि हेमन्त सोरेन कम उम्र के लेकिन एक अच्छे मुख्यमंत्री व नेता हैं. जन भावना के अनुरूप कार्य करते हैं, न केवल राज्य में विपक्ष के आरोपों को मुँह चिढाता हैं. केंद्र के संस्थानिक हमले पर भी उंगली उठाती दिखती है.
क्या केंद्र के निर्देशों को ना मानने के कारण राज्यपाल को बदला गया?
पूर्व राज्यपाल के कुछ वक्तव्य जनता के बीच भ्रम पैदा कर सकता है. ज्ञात हो उनके द्वारा कहा गया कि झारखण्ड की सरकार अस्थिर न हो, इसलिए उन्होंने आफिस आफ प्राफिट मामले में भारत के निर्वाचन आयोग का मंतव्य आने पर भी उन्होंने कोई निर्णय नहीं लिया. लेकिन वर्तमान राज्यपाल इसपर निर्णय ले सकते हैं. ऐसे में क्या यह नहीं माना जा सकता है कि केंद्र के निर्देशों को ना मानने के कारण उन्हें बदला गया है.
1932 के खतियान आधारित स्थानीयता पर सोचने की नशीहत
1932 के खतियान आधारित स्थानीयता के लौटाने के सम्बन्ध में पूर्व राज्यपाल के द्वारा स्पष्ट कहा गया कि राज्य सरकार को इसपर गंभीरता से सोचने की जरूरत है. इस सन्दर्भ में उनके द्वारा कहा जाना कि झारखण्ड बनने के बाद बिहार से यहां कई लोग आए. ऐसे में जिनके पास खतियान नहीं है उन लोगों का क्या होगा. पूर्व राज्यपाल के इस वक्तव्य को सीधे बीजेपी के बाहरी समर्थित राजनीति के एजेंडे से जोड़ कर राज्य की जनता देख सकती है.
साथ ही उनके द्वारा यह भी कहा जाना कि भारत के निर्वाचन आयोग का बंद लिफाफा नहीं खुलने से हेमन्त सरकार ने पहले की अपेक्षा कई गुना तेजी से काम किए, विवादास्पद टिप्पणी हो सकती है. क्योंकि सीएम कोरोना संकट के 2 कठिन वर्षों के बाद तेजी से जनता से किये वादे धरातल पर उतार रहे हैं. ऐसे में पूर्व राज्यपाल का यह वक्तव्य दर्शाता है सीएम के जन कार्यों का श्रेय सामंतवाद व विपक्ष भ्रम पूर्वक लेना चाहता है.