झारखण्ड : हेमन्त सरकार की नीतियां साबित हो रहा है आदिवासी-बहुजन-गरीब हित का पर्याय 

झारखण्ड के इतिहास में भाजपा शासन के लम्बे दौर में आदिवासी संघर्ष के सच के बीच हेमन्त सरकार की नीतियां आदिवासी-बहुजन समेत सभी गरीब वर्ग के हित का पर्याय के रूप में सामने उभरा है. 

रांची : आदिवासी समाज का सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक जीवन जल, जंगल और ज़मीन के इर्द-गिर्द रचाता-बसता है. आदिवासी इतिहास इसका स्पष्ट साक्ष्य पेश करता कि वह जल, जंगल, ज़मीन की रक्षा में आदिवासी अपना सब कुछ न्योछावर करने को हमेशा तैयार रहते हैं. और यही संघर्ष की तस्वीर झारखण्ड में भाजपा शासन के लम्बे दौर में भी दिखा है. जिसके अक्स में सीएनटी-एसपीटी एक्ट संरक्षण व आदिवासी अस्तित्व की लड़ाई प्रमुखता से सामने हो, और मौजूदा मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की नीतियों में आदिवासी युवाओं को विदेश में उच्च शिक्षा देने का सच सामने हो तो, निश्चित रूप से सीएम हेमन्त सोरेन को आदिवासी हित का पर्याय माना जा सकता है.

निजीकरण के दौर में सीएम हेमन्त सोरेन के कार्यकाल की नीतियां जन हित में

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के कार्यकाल में निजीकरण से इतर, राज्य में रिक्त पदों पर नियुक्ति हो रहे हों. स्वरोजगार के लिए आदिवासी-दलित बहुजन युवाओं को मुख्यमंत्री रोज़गार सृजन योजना के तहत 50 हज़ार से लेकर 25 लाख रुपए तक दिए जा रहे हों. शिक्षा के क्षेत्र में आदिवासी समाज को आगे बढ़ाने के लिए योजनाएं शुरू हुई हो. अनुसूचित जनजाति व बहुजनों के विद्यार्थियों को विदेशों में उच्च शिक्षा देने की कवायद हो. आदिवासी अस्तित्व के लम्बे संघर्ष ‘आदिवासी सरना कॉड’ विधानसभा में पास केंद्र को भेजा गया हो और केंद्र ने रोक रखा हो. 

साथी आदिवासी समेत तमाम बहुसंख्यक ग़रीब आबादी के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक संरक्षण में नीतियां कारगर साबित हो रही हो, माझी पारगाना माहाल, धाड़ दिशोम एप्प, पलाश ब्रांड का सच सामने हो. शहीद गणेश हांसदा की माता श्रीमती कापरा हांसदा को नियुक्ति पत्र प्रदान किये जाने का सच हो. तो निश्चित रूप से वर्तमान में हेमन्त सोरेन की नीतियों को आदिवासी-बहुजन हित का पर्याय माना जाना चाहिये.

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