झारखण्ड: बीजेपी के राष्ट अध्यक्ष न तो झारखण्ड की मूल समस्या पर कुछ बोले और ना ही बीजेपी के भविष्य की जन हित प्लान साझा किये, केवल मोदी चालीसा का पाठ कर चलते बने.
रांची : वर्तमान में आरएसएस-बीजेपी की विचारधारा की पहचान देश में भ्रम व सांप्रदायिक तनाव के आसरे राजनीति करने व सामन्तवाद के पोषक के रूप में उभरी है. ज्ञात हो, इनकी पूंजीवाद समर्थित दोमुहें नीतियों के अक्स में देश के समक्ष लगभग सभी राज्यों व सभी वर्गों को विभिन्न प्रकार के आर्टिफीसियल समस्याओं से जूझने का सच सामने है. मणिपुर की सुनियोजित आग, झारखण्ड के अस्तित्व की लड़ाई, एससी, एसटी व ओबीसी के अधिकार व पहचान हनन जैसी समस्याएं प्रमुख है.
प्रधानमन्त्री मोदी के वादों के अक्स में झारखण्ड की जनता ने बीजेपी को झोली भर-भर कर वोट दिए और केंद्र में दो दफा बीजेपी की सरकार बनाने में अहम भूमिका अदा की. लेकिन, मोदी के वादों के ठीक विपरीत न केवल झारखण्ड को गरीबी, मुफलिसी, भूख से मौत, ज़मीन लूट, मरांग बुरु व शिखर जी के अनुआइयों में फूट, अनुबंध व नियमित कर्मियों के रूप में दुर्भाग्य मिला. सरना कोड, 1932 सथानीयता, एससी, एसटी व ओबीसी आरक्षण बढ़ोतरी विधेयक की वापसी के सौगात भी मिला.
ज्ञात हो, ऑर्गनाइजर के रिपोर्ट व मणिपुर को जलता छोड़ मोदी जी के विदेश जाने सच तले, बीजेपी के राष्ट अध्यक्ष जेपी नड्डा का झारखण्ड, गिरिडीह का दौरा हुआ. झारखण्ड की जनता को आशा थी कि बीजेपी अपनी गलती को स्वीकार कर झारखण्ड के मूल समस्याओं को लेकर बीजेपी की वर्तमान व भविष्य के प्लान साझा करेंगे. लेकिन, नड्डा का केवल बीजेपी-संघ के प्रायोजित एजेंडे व मोदी चालीसा के पाठ ने फिर साबित किया कि बीजेपी-संघ के नीतियों में किसी भी बदलाव की आशा व्यर्थ है.