गुरूजी शिबू सोरेन का सफ़रनामा कितना अहम है।
बेशक, आँखों देखे बिना यक़ीन नहीं हो सकता कि गुरूजी शिबू सोरेन के लिए झारखंड आन्दोलन का सफ़रनामा ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक एतबार से कितना अहम है। जो साक्ष शेष हैं – वह उनके गुज़रे हुए इंक़लाबी दौर से रुबरु करवाता है। जिसके सबक़ आज भी समाज को बेहतर बनाने के लिए इंसाफ़पसन्द एवं संजीदा लोगों को प्रेरणा देती हैं।
इसे गुरू जी की तरफ़ से हमारी पीढ़ी को दिया गया एक बहुमूल्य तोहफ़ा कहा जा सकता है। इस तीसरे लेख के माध्यम से गुरु जी के जीवनी को समझने की कड़ी में आगे बढते हैं।
गुरूजी शिबू सोरेन जी के आन्दोलनकाल के साथी सेवकी महतो जी ने गोला से लौट एक शाम को उन्हें आगाह करते हैं, कि उन्हें गिरफ्तार करने की मंशा से एक पुलिस का दल हजारीबाग से आया है, हो सकता है आज रात ही छापामारी कर दे। साथ ही सुझाव दिया कि इस समस्या से निपटने के लिए वे आज की रात उनके यहाँ बिताएं। गुरूजी अपने परिवार से मिले और अपनी पत्नी की साड़ी और गोबर फेकने वाला खंचिया (टोकरी ) ले सेवकी जी के घर चले गए।
गुरूजी शिबू सोरेन की गिरफ्तारी के लिए आधी रात में पहुंची पुलिस
ठीक आधी रात में नेमरा गाँव के साकल (कुँडी) पुलिस बल द्वारा खटखटाए जाने लगे, जबरन गुरूजी की तलाशी शुरू हो गयी। हालांकि रूपी ने पुलिस को बताया कि गुरूजी कल शाम ही साईकिल ले कहीं चले गए हैं। फिर भी घर के चप्पे-चप्पे की तलाशी ली गयी, कोई भी स्थान कुम्बा, कोठा, बारी यहाँ तक कि घोरान (झाड़ का घेरा) को भी पीट कर तसल्ली की गयी।
रूपी ने गुस्से में प्रशासन से कहा कि आपलोग इनके पीछे पड़ने के बजाय समाज के शोषकों, सूदखोरों एवं भ्रष्टाचारियों को क्यों नहीं पकड़ते? हत्या तक कर खुले आम घूम रहे हैं, रूपी के बच्चे सहमे बैठे थे।
इधर सेवकी महतो गुरुजी के कमरे में पहुंचा तो देखा गुरूजी गायब हैं और वहां एक औरत खंचिया लिए बैठी है, जब औरत ने उन्हें चुप रहने का इशारा की, तब वह समझा कि गुरूजी का लीला आरम्भ हो चूका है। गुरूजी ने दाढ़ी-मूंछ हटा लिए थे, बाल तो बड़े ही थे, टीका और सिंदूर लगा पूरी नारी प्रतीत हो रहे थे।
गुरूजी शिबू सोरेन महिला केे वेशभूषा में निकले
गोबर भरे खंचिया लेकर वह महिला सेवकी के घर से निकली, एक पुलिसवाले की उसपर नजर पड़ते ही रुकने का आदेश हुआ, वह रुक गयी। इतने में कड़कती आवाज “आयी कहा जा रही हो?”
महिला (गुरूजी ) ने तडके जवाब दिया दिखता नहीं मवेशी खोलने का वक़्त हो गया है, गोहाल के गोबर फेंकने जा रही हूँ। लेकिन आप लोग क्या कर रहे हो? – पुलिस वाला भौचक्का हो जवाब दिया कि गुरूजी को पकड़ने आये हैं। इतने में महिला (गुरूजी) ने कहा कि इस प्रकार ढोल बजाकर आने से क्या गुरूजी तुम्हारे हाथ लगेंगे? पुलिस वाले ने कहा हम क्या करें सरकारी आदेश है उसे पूरा करने आये हैं।
न जाने ऐसी कितनी ऐतिहासिक कहानियाँ गुरूजी के नेमरा गाँव से लेकर तमाम झारखंड के दुर्गम जंगलों-पहाड़ियों में बिखरी पड़ी है बस जरूरत है तो वहां पहुँच साक्ष समेट कहानियाँ निकाल प्रस्तुत करने की।
इसी तरह गुरूजी की एक दूसरी ऐतिहासिक कहानी है जिसमें मल्हा बन मूष पकाते है और उसके दुर्गन्ध से इन्होंने पुलिस को चकमा दे दिया था। लाख कठिनाईयां झेले लेकिन बिना उफ़ किये हमारी पीढ़ी को झारखंड सौगात स्वरुप दिए। आगे की कहानी अगले लेख में –जोहार –जय झारखंड।