झारखण्ड : हेमन्त पहले सीएम जिन्होंने सामन्ती षड्यंत्रों को समझा और यह मंच से कहने की हिम्मत दिखाई कि सामन्तवाद भेड़िया की तरह झुंड बनाकर अकेला आदिवासी सीएम समझ टूट पड़ा है.
रांची : वर्ष 2019 के पहले झारखण्ड के इतिहास में दिशोम गुरु शिबू सोरेन ही वह आदिवासी शख्स हैं जो सामन्ती पैंतरों को भलीभांति समझ सकते थे. लेकिन सामंतवाद ने उन्हें कभी लम्बे समय तक सीएम पद पर बैठने नहीं दिया. उन्हें बदनाम कर सत्ता से दूर किया गया. बाकी जो भी आए वह या तो सामन्तवादी रिमोट पर चले या सत्ता के खुमार में बहकते दिखे. लेकिन, हेमन्त सोरेन एक शख्स हैं जिन्होंने बतौर आदिवासी सीएम न केवल सामन्ती षड्यंत्रों को समझा उसे जवाब भी दिया.
ज्ञात हो, हेमन्त सोरेन पहले भी झारखण्ड राज्य के सीएम बने थे लेकिन उन्हें केवल 14 माह के लिए ही पद रहने दिया गया. बतौर प्रतिपक्ष नेता उन्होंने पूर्व के रघुवर सरकार के खिलाफ जन लड़ाई लड़ी और 2019 में फिर झारखण्ड के सीएम के रूप में शपथ ली. सत्ता के खुमार में सराबोर होने के बजाय उन्होंने अपना ध्यान जन संघर्ष के सवालों के हल में केन्द्रित किया. भूमि अधिग्रहण, खनन, आंगनबाड़ी, पारा शिक्षक, आदिवासी-मूलवासी के समस्याओं में व्याप्त सामन्ती षड्यंत्रों को समझे.
एक तरफ वह योजनाओं के माध्यम से एससी-एसटी-ओबीसी समेत सभी वर्गों के हित में आगे बढे. तो दूसरी तरफ राज्य के आदिवासी-मूलवासी की मूल समस्या के निराकरण में, 1932, आरक्षण बढोतरी, सरना-आदिवासी धर्म कोड जैसे बिल के आसरे निर्णायक कदम बढ़ाया. जो सरासर सामंतवाद के ऐतिहासिक राजनीतिक ज़मीन कुठाराघात था. मसलन, सामन्तवाद का उनपर आदिवासी को वनवासी बनाकर आगे कर संस्थानों के माध्यम से लगातार हमले जारी है.
सामन्तवाद भेड़िया की झुंड की तरह अकेला आदिवासी सीएम समझ टूट पड़े हैं -सीएम
सीएम हेमन्त पहले सीएम हैं जिन्होंने यह मंच से कहने की हिम्मत दिखाई है कि सामन्तवाद भेड़िया की तरह झुंड बनाकर अकेला आदिवासी सीएम समझ टूट पड़ा है. डुमरी उपचुनाव में पटखनी खाने के बाद भी यह अपना कपड़ा झाड़कर झूठ के आसरे दोबारा पीछे पड़ गये हैं. आज प्रदेश में यह जमात जात-पात और धर्म के आसरे सांप्रदायिक तनाव का जहर घोलने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन उनके नेतृव में झारखण्ड की जनता कंधे से कंधा मिलकर आगे बढ़ रही है.
शायद हेमन्त सोरेन के यही वह विशेषताएं हैं जिसके अक्स में राज्य के आदिवासी समुदाय समेत तमाम वर्गों को न्याय मिलने की उम्मीद बढ़ी है. सभी इनके जन कार्य को सराह रहे हैं. वहीँ दूसरी तरफ सीएम हेमन्त आदिवासी समुदाय के लिए एक आइकॉन बन कर उभरे हैं. यह बेजुबान वर्ग जिसे सुनियोजित षड्यंत्र के तहत वनवासी करार देने का प्रयास हुआ है. उस जमात में न केवल अधिकार संरक्षण की उम्मीद बल्कि अपनी पहचान व अस्तित्व बचाने की आस भी जगी है.