पारसनाथ विवाद : सामंतियों के राम को अब जैनियों की राम की आवश्यकता नहीं. सामंतियों ने झारखण्ड, पारसनाथ में आदिवासियों-जैनियों के सदियों के प्राकृत प्रेम में जहर घोल इसके संकेत दे दिए है.
रांची : आदिवासी मानव सभ्यता के इतिहास का आखिरी सच है. आदिवासी ही खुद को फ़िल्टर कर बौद्धों की परम्परा के रूप में विकसित हुआ और विश्व गुरु बना. ज्ञात हो, वर्तमान में भारत का राजनीति दर्शन लगभग पांच ‘राम’ के बीच घूमता है. सुकिती अर्थात गौतम बुद्ध के जातक कथा के राम पंचशील की शिक्षा देता है. तो वहीं जैन दर्शन का राम अहिंसक है. लेकिन ये दोनों राम परकृतिक पूजक हैं और आदिवासियों की महान संस्कृति को आगे बढाते हैं.
इसके बाद सामंतियों के राम सामने आते हैं. सामन्तवाद को मनुवाद-पूँजीवाद जो चाहें नामकरण कर लें. बाल्मीकि-तुलसी का राम अब प्राकृत निवासी नहीं वनवासी, हिंसक और चक्रवर्ती है. शम्बूक वध, अभीर वध, नारी-शुद्र-पशु के ताडन के पक्षधर व आदिवासी प्रतीकों के वध का पर्याय है. लेकिन वहीँ कबीर, गुरुनानक व रैदास के राम फिर वही जातक के राम यानी ज्ञान है. और वर्तमान के जनमानस का 5 वां राम मर्यादा पुरुषोतम है और खुद से पहले स्त्री को प्रमुखता देते हुए सीता-राम उच्चारता है.
सामंतियों के राम को जैनियों की राम की अब आवश्यकता नहीं. पारसनाथ में इसके स्पष्ट संकेत
इतिहास को देखने पर पता चलता है कि आगे चल कर जैन दर्शन के राम और सामंतियों के राम में समझौता होता है. दोनों मिलकर उग्रता की अड़ में वह राम जो पंचशील का ज्ञान देता है, भाईचारा, आपसी सौहार्द व अहिंसाक है, उस दर्शन पर हावी होने का षड्यंत्र रचता है. लेकिन अब सामंतियों के राम को जैनियों की राम की भी आवश्यकता नहीं. ज्ञात हो, सामंतियों ने झारखण्ड, पारसनाथ में आदिवासियों-जैनियों के प्रेम में जहर घोल कर इसके स्पष्ट संकेत दे दिए है.
ऐसे में जरुरी हो चला है कि देश अपने असल राम को पहचाने और उसके विकास में बाधक समन्तियों के जातिवादी राम-रावण को जल्द तिलांजलि दे. और मर्यादा पुरुषोत्तम, प्रेम, पंचशील, पशु प्रेमी, समानता, महिला स्वावलंबन के पक्ष लेने वाले राम को मन-मस्तिष्क में जगह दे. ताकि देश फिर से विकास की राह पर अग्रसर हो और हम फिर अपनी बौधत्व विरासत के आसरे देश दुनिया में अपनी पहचान गढ़ें. जिससे जापानी-कोरियाई डिक्सनरी में स्वर्ग का अर्थ भारत चरितार्थ हो.