दुमका उपचुनाव सर्वे -भाजपा के कद्दावर नेताओं के दौरे के बावजूद जेएमएम आगे

राँची। झारखंड के संथाल परगना के दुमका उपचुनाव सीट का नतीजा ऐतिहासिक रहेगा। ज्ञात हो कि एनडीए प्रत्याशी लुइस मरांडी के जीत के लिए रणभूमि में बीजेपी ने कई कद्दावर नेताओं को उतार रखा है। जो अपने भाजपा शासन के करतूतों को छिपाने के लिए भ्रम की राजनीति करने से भी नहीं चूक रहे। पूरे पकरण में मजेदार पहलु 10 सालों तक भाजपा पर पानी पी-पी कर आरोप लगाने वाले बाबूलाल मरांडी व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा भी मैदान में है। फिर भी पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा अपशब्दों का प्रयोग करना दर्शाता है कि भाजपा अपने संभावित हार से बौखलायी हुई है।

वहीं दूसरी तरफ जेएमएम प्रत्याशी बंसत सोरेन केवल जुझारु छवि व राज्य में हेमंत सरकार द्वारा 9 माह के जनहित कार्यों के साथ चुनावी मैदान में शिरकत करते देखे जा रहे हैं। इस बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी दुमका प्रवास के दौरान क्षेत्र की जनता से मिले और सरकार के कार्यों की जानकारी उन्हें दी। स्थानीय लोगों के बीच क्षेत्र में किये गए सर्वे में यह बात सामने आयी है कि भाजपा के कद्दावर नेताओं के दौरे के बावजूद झामुमो प्रत्याशी का पलड़ा भारी है। शायद पूर्व मुख्यमंत्री के खीज का यही प्रतक्ष कारण हो सकता हैं। 

हेमंत सोरेन संथालियों की मदद कर अपने पिता शिबू सोरेन की परंपरा का मान रखे

बसंत सोरेन के सर्वें में आगे दिखने का प्रमुख कारण हेमंत सरकार द्वारा कोरोना काल में संथाल में किये कार्यों को माना जा रहा है। संथाल परगना झारखंड राज्य का एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है। इस इलाके के गरीब आदिवासी जीविका की तलाश में अन्य राज्यों की ओर रुख करते है। ज्ञात हो कि कोरोना महामारी में यहाँ के मजदूर भी देश के अन्य मजदूरों की भांति, भाजपा द्वारा आकस्मिक बेप्लानिग किये गए लॉकडाउन में जहाँ-तहां फंस गयी थी। हेमंत सोरेन पूरे राज्य की मजदूरों की तरह बिना भेद भाव किये आगे बढ़कर इनकी मदद की। ज्ञात हो मुख्यमंत्री ने यहाँ के मजदूरों को त्रासदी से निकालने के लिए एयरलिफ्ट तक कराया। साथ ही मजदूरों के बेरोजगार हो जाने की स्थिति में रोजगार भी मुहैया करवाए। 

परिवारवाद का आरोप लगाने वाले बाबूलाल जी तो हेमन्त के लोकप्रियता के खौफ में चुनाव लड़ने से किया इनकार

अलग झारखंड के लिए अपना सबकुछ त्याग और बलिदान के साथ हड्डियाँ गलाने वाले शिबू सोरेन पर बाबूलाल जैसे नेता का दुमका उपचुनाव के बीच ओंछी टिप्पणी करना भी दुमका क्षेत्र के लोगों में नाराज़गी का एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है। बाबूलाल ने गुरूजी के बलिदान को रिश्वतोखोरी का नाम देकर दुमका की जनता के बीच अपनी नैतिकता का विसर्जन कर दिया है। शायद वह ऐसा कर अपने दिल्ली आकाओं को खुश करना चाहते हैं। जबकि जमीनी सच्चाई वह हेमन्त सोरेन के लोकप्रियता के खौफ में चुनाव लड़ने से किया इनकार दिया। ज्ञात हो कि झारखंड से इतर संथाल के क्षेत्र में गुरूजी का विशेष सम्मान है और दुमका भी संथाल का हिस्सा है।  

मोदी सरकार की हक़ीकत बताने से बचते दिखे अर्जुन मुंडा

बीजेपी के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा अपना व मोदी सरकार की झारखंड के प्रति उपलब्धियों को गिनवाने के बजाय दुमका क्षेत्र में हेमंत सोरेन ने कोई रूचि नहीं दिखाए बता रहे हैं। जबकि उन्हें जनता को यह बताना चाहिए कि जब केंद्र सरकार झारखंड के अधिकार का हरण कर रही थी तो उन्होंने झारखंड के भविष्य के लिए क्या किया। मतलब वह सीधे तौर पर दुमका उपचुनाव में मोदी सरकार की उपलब्धियों को बताने से कतरा रहे हैं। जबकि हकीकत यह हैं कि मोदी सत्ता ने संकट में झारखंड के मजदूरों को सड़कों पर और झारखंड को बेसहारा छोड़ दिया। और झारखंडी पुत्र हेमंत सोरेन ने अपने झारखंडी भाई-बहनों को इसी बीजेपी के रोड़ों से जैसे-तैसे लड़कर संकट से उबारा। 

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