झारखण्ड : जनसरोकार और सरकार के बीच संतुलन बनाने की दिशा में विश्वास की ईंटें गांथता सीएम हेमन्त का कार्यकाल, आहिस्ता-आहिस्ता मंजिल की ओर बढ़ चला है. जन कदम ने ताल मिला लिए हैं.
रांची : चिन्तक लिखते हैं व्यवस्थाएं समाज का ही दर्पण है. जैसा समाज होता है वैसी ही व्यवस्थाएं स्वतः परिवर्तित हो जाती है. आमजन, पूंजीपति, जात-पांत देश के मौजूदा समाज का सच है. बहरहाल, राजनीति व उसके तंत्र का प्रतिबिंब मौजूदा व्यवस्था में दिख चला है. नेता-जनता के बीच का सम्बन्ध हो या संस्थान-जनता के बीच भ्रष्टाचार की पीड़ा, सामाजिक सच का ही अक्स है. ऐसे में देश को इस सच के साथ संतुलन बनाते हुए ही विकास की दिशा में आगे बढ़ना होगा.
झारखण्ड के आदिवासी सीएम हेमन्त सोरेन ने इस दिशा में बेहतरीन उदाहरण पेश किया है. विश्वास के इंटों के माध्यम से अपने कार्यकाल में जात-पांत को दरकिनार कर मूलवासी जनसरोकार को पूँजी के साथ संतुलन बनाने में कामयाब हो चले हैं. मौजूदा दौर में राज्यपाल जैसे कृत्रिम अवरोध के सच तले सामाजिक न्याय की दिशा में कर्मचारी, नियुक्ति, शिक्षा, चिकित्सा जैसे जन समस्याओं का हल ढूंढते हुए ‘आपकी सरकार आपके द्वार’ का क्रमबद्ध आयोजन तथ्य के सबूत हैं.
झारखण्ड विधानसभा के स्थापना दिवस पर सीएम का वक्तव्य इसी मंशा को समर्पित
सीएम ने विधानसभा को सबसे बड़ा पंचायत मन है, क्योकि यहां पहुँचने वाले जन प्रतिनिधयों को समाज द्वारा ही चुन कर भेजा जाता है. राज्य के जल, जंगल, जमीन, मानवता और जंतुओं के बीच संतुलन हेतु यहाँ महापंचायत लगती है और नीतियां बनती है. इससे बाबा साहब के उस दूरदर्शी लोकतांत्रिक सोच और महत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है. ऐसे में लोकतंत्र को हर हाल में बचाने की कवायद व्यवस्थाएं और सामाजिक सरोकार के बीच संतुलन कायम करना ही तो है.
मसलन, महत्त्वपूर्ण सवाल हो सकता है कि क्या लोकतंत्र के जड़ों को मजबूत करने का प्रयास केवल नेतृव पक्ष से संभव हो सकता है. नहीं, सामाजिक सरोकार के संतुलन के लिए समाज को भी जात-पांत को दरकिनार कर नेतृत्वकर्ता के साथ कदम-ताल करना ही होगा. तभी समाज तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच सुगम राह बनाते हुए विकास के पोड़ियाँ चढ़ सकता है. और समाज एक निर्माता के रूप में अपने कलाकारों के माध्यम से कर्तव्यों का निर्वहन कर सकता है.