झारखण्ड : संसद मेंभाजपा प्रदेश अध्यक्ष द्वारा पूछे गए अधिकांश सवाल नकारात्मक, सकारात्मक राजनीति से कोसों दूर. बाबूलाल मरांडी को बताना चाहिये की क्या गिरिडीह जिले के अशोक दास, मनोज दास, संतोष पासवान की पूरी कोयला माफिया टीम भजपा के कार्यकर्ता-सदस्य हैं या नहीं? और उन्हें केन्द्रीय भाजपा का संरक्षण प्राप्त है या नहीं?
राँची : सशक्त लोकतंत्र में सशक्त विपक्ष का होना जरूरी होता है. क्योंकि उसका दायित्व सरकार की कमियों को सदन से लेकर जनता के समक्ष उजागर करना होता हैं. क्योंकि विपक्ष द्वारा उजागर तमाम तथ्य व आरोप सत्यता पर आधारित होते है.जो प्रदेश को सकारात्मक राजनीति हेतु प्रेरित करते हैं. लेकिन, झारखण्ड का विडम्बना है कि विपक्ष की राजनीति तथ्य से उलट साफ़ प्रतीत हुए हैं. झारखण्ड के पिछले दो माह की विपक्षीय राजनीति के विश्लेषण से स्पष्ट है की प्रदेश की विपक्ष विशेष कर भाजपा नेता द्वारा हेमन्त सरकार पर लगाए गए आरोप, आधारहीन, असत्य आंकड़ों पर आधारित रहे हैं. जो प्रदेश की उन्नती के मद्देनजर सकारात्मकता से कोसों दूर हैं.
आरोप लगाने वाले नेताओं की फेहरिस्त में प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी सरीखे नेता तक शामिल हैं. क्योंकि इन नेताओं के तमाम साक्ष्यरहित रहे है और सत्य की कसौटी पर खरे नहीं उतारते है. दीपक प्रकाश जैसे नेता द्वारा आधारहीन आरोप लगाने की तीव्रता दर्शाता है कि उनका प्रयास किसी ख़ास एजेंडे का हिस्सा भर है. और वह एजेंडा राज्य की जनता की समझ को मनोवैज्ञानिक तौर पर नकार्तामकता से भरना देना चाहती है. पिछले दिनों संसद के बजट सत्र में पूछे गए तमाम सवाल सकारात्मक राजनीति से कोसों दूर रहना, उन सवालों का प्रदेश की जनता के हितों से सकारामक जुड़ाव न होना, तथ्य को प्रमाणित करता है.
दीपक प्रकाश के आधारहीन आरोप नकारात्मक सच लिए
- 29 जनवरी को दीपक प्रकाश ने प्रदेश की पूरी चिकित्सीय व्यवस्था और उसके प्रबंधन को कठघरे में खड़ा किया. उन्होंने कहा, वैक्सीनेशन बर्बादी में झारखण्ड पूरे देश में अव्वल रहा है. वैक्सीनेशन बर्बादी में राष्ट्रीय औसत 6.3 प्रतिशत, तो झारखण्ड में 37.3 प्रतिशत. जबकि सच यह है कि राज्य में केवल 4.65 प्रतिशत वैक्सीन की बर्बादी हुई है. केन्द्रीय प्रभाव वाले CoWin साइट की तकनीकी समस्या के कारण राज्य का वैक्सिनेशन डाटा अप्डेट नहीं हो पाया. बाद में जिसे केंद्र सरकार ने भी स्वीकारा था.
- 4 फरवरी को धनबाद के निरसा खान हादसा मामले में दीपक प्रकाश द्वारा आधारहीन आरोप लगाया गया कि, पूरे प्रदेश में सरकार की शह पर खनिजों की लूट हो रही है. लेकिन उनके द्वारा कोई सबूत पेश नहीं किया गया.
- 7 फरवरी को दीपक प्रकाश दारा जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएससी) के गठन पर राज्यपाल द्वारा अंसवैधानिक बताने के रिपोर्ट पर हेमन्त सरकार को घेररे का प्रयास किया गया. लेकिन दीपक प्रकाश द्वारा अपने ही दल, छत्तीसगढ़ की रमन सरकार में इसी तर्ज पर हुए टीएससी गठन को नजर अंदाज किया जाना दर्शाया कि उनका आरोप केवल भ्रम फैलाना ही था. और उस समय प्रदेश के तमाम भाजपा नेता भी खामोश बैठे रहे.
पूर्व के भाजपा शासन की नीतियों में उभरे जनाक्रोश को दीपक प्रकाश का हेमन्त सरकार के मत्थे मढ़ भुनाने का प्रयास
- 11 फरवरी को दीपक प्रकाश द्वारा राज्य के अंचल कार्यालय को लूट और भ्रष्टाचार का अड्डा बताया. लेकिन हर बार की भांति साबुत इस बार भी नदारत थे. और दीपक प्रकाश भूल चुके थे किपूर्व की भाजपा सरकार में उनके ही नेताओं द्वारा अंचल कार्यालय व्यवस्था पर कई सवाल उठाये गए थे. जबकि हेमन्त सरकार राज्य के ऐसे तमाम उलझे सिराओं को सुलझाने की दिशा में बढे हैं. जिसका जल्द हल निकलन संभव नहीं. और पूर्व के भाजपा शासन की नीतियों में उभरे जनाक्रोश को दीपक प्रकाश का हेमन्त सरकार के मत्थे मढ़ भुनाने का प्रयास भर है.
- 27 फरवरी को दीपक प्रकाश द्वारा आरोप लगाया गया कि 2 साल बाद भी बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाना चाहती है हेमन्त सरकार. लेकिन यह आरोप भाजपा नेताओं के संवैधानिक समझ को दर्शा सकता है क्योंकि मामला अभी स्पीकर के न्यायाधिकरण में है. और भाजपा को यह भी जरूर बताना चाहिए कि सरकार बनाने के लिए जेवीएम से आये छह विधायकों के मामलों को उनस दौर के स्पीकर द्वारा कैसे उलझाया गया था.
संसद में दीपक प्रकाश के पूछे सवाल जनहित व सकारात्मक राजनीति से कोसों दूर
- 9 फरवरी -दीपक प्रकाश ने संसद में केंद्रीय विद्यालय खोले जाने को लेकर सवाल पूछा. जवाब मिला कि झारखण्ड सरकार द्वारा कोई प्रस्ताव नहीं मिला है. लेकिन दीपक प्रकाश यह बताना भूल गये कि उनके ही पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को चौपट कर दिया गया था. हेमन्त सरकार तो अब सरकारी स्कूलों में प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर शिक्षा देने के लिए मॉडल स्कूल की संकल्पना को धरातल पर उतारने का प्रयास कर रही है.
- 10 फरवरी को उन्होंने संसद में राज्य में अवैध खनन का आरोप लगाते हुए एसआईटी गठन कर जांच की मांग की. हालांकि उन्होंने यहाँ भी कई प्रमाण नहीं दिया. नतीजतन, केंद्र द्वारा भी उनकी मांगों पर आज तक कोई ध्यान नहीं दिया. जबकि सच यह है कि झारखण्ड प्रदेश में भाजपा नेता द्वारा, उनके पाले कोयला माफिया को केन्द्रीय संरक्षण दे तांडव मचावाया, हेमन्त सरकार को बदनाम करने का प्रयास हो रहा है.
- 31 मार्च को दीपक प्रकाश द्वारा संसद में ग्रामीण सड़क योजना पर सवाल पूछा गया. फिर उन्होंने आरोप लगाया कि हेमन्त सरकार केंद्र पर मदद नहीं करने का दोष लगा रही है. आरोप लगाने वाले दीपक प्रकाश भूल गये कि आज गांव के विकास को लेकर हेमन्त सरकार के कार्य दर्शाते हैं की वह संकल्पित है. सीमित संसाधनों के बीच भी हेमन्त सरकार लगातार गांव के संरचनात्मक व्यवस्था को बेहतर करने के प्रयास में जुटी है.
बाबूलाल जैसे अनुभवी नेता भी इस मामले पीछे नहीं, हेमन्त सरकार पर आधारहीन आरोप लगाना, अधिकारियों को मीठी धमकी देना मौकापरस्ती दर्शा सकता है
- 4 फरवरी को धनबाद के निरसा में हुए एक घटना को लेकर बाबूलाल मरांडी द्वारा आरोप लगाया गया कि राज्य में अवैध खनिजों की तस्करी हो रही है. इसकी सीबीआई जांच होनी चाहिए. भाजपा नेता द्वारा आरोप तो लगा गया लेकिन कोई सबूत नहीं दिया गया. अगर उनके पास सबूत हैं, तो केंद्र में तो उनकी सरकार है, सबूत वहां पेश करना चाहिए. उन्हें राज्य की जनता को बताना चाहिए कि गिरिडीह जिले के अशोक दास, मनोज दास, संतोष पासवान की पूरी कोयला माफिया टीम भजपा के कार्यकर्ता-सदस्य हैं या नहीं? वह केन्द्रीय भाजपा संरक्षण में तांडव मचा रहे हैं या नहीं? जनता उनके दहशत में त्रस्त हैं या नहीं? बाबूलाल जी को केन्द्रीय गृह मंत्त्रालय को पत्र लिख कर जांच कराना चाहिए और दलित बस्ती को इनके तांडव से मुक्ति दिलाना चाहिए.
- 8 फरवरी, बाबूलाल ने हजारीबाग में घटी एक घटना में मारे गये एक युवा मामले का जिक्र करते हुए पीड़ित परिवार को राज्य सरकार की तरफ से 1 करोड़ रुपये मुआवजा देने की मांग की. उन्होंने यह मांग मॉब लिंचिंग निवारण कानून का हवाला देकर किया. लेकिन सर्वविदित है कि हेमन्त सरकार द्वारा लाये मॉब लिंचिंग कानून का विरोध में उन्होंने राज्यपाल के पास जाने से परहेज नहीं किया.
- 2 मार्च, बाबूलाल मरांडी ने आरोप लगाया कि सीएम के संरक्षण में साहेबगंज में आपराधिक घटनाएं बढ़ी है. पुलिस बर्बरता पूर्ण कार्य कर रही है. वैसे तो उनके पास इसका कोई सबूत नहीं है. अगर लोकतंत्र में उनका भरोसा है, तो क्यों नहीं उनके द्वारा अब तक केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखा गया.