Skip to content
Jharkhand Khabar
  • News
  • Jharkhand
  • National
  • Viral Reports
  • Editorial
  • World Politics
  • Biography
    • Dishoom Guru Shibu Soren
    • Nirmal Mahto
  • News
  • Jharkhand
  • National
  • Viral Reports
  • Editorial
  • World Politics
  • Biography
    • Dishoom Guru Shibu Soren
    • Nirmal Mahto

संघी मानसिकता से जुड़ी बीजेपी में सब झारखंड मूल व आदिवासी विरोधी ही क्यों?

  TRENDING
मधुपुर उप चुनाव में भाड़े की भीड़ से सज रही है भाजपा की रैलियाँ ! April 10, 2021
मधुपुर उपचुनाव: भाजपा की नफरत की राजनीति का जवाब झामुमो विकास की राजनीति से देती April 9, 2021
मधुपुर उपचुनाव : दलबदलू जमात के बीच दलबदलू प्रत्याशी की राह नहीं आसान April 9, 2021
सहयोगी और गठबंधन धर्म…इसे कहते हैं , महागठबंधन से सीखे भाजपा-आजसू! April 7, 2021
बंगाल में बीजेपी सत्ता नहीं आयी तो देश की नेशनल सिक्योरिटी खतरे में -अमीत शाह April 7, 2021
Next
Prev
Search
संघी मानसिकता

संघी मानसिकता से जुड़ी बीजेपी में सब झारखंड मूल व आदिवासी विरोधी ही क्यों?

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on telegram
Share on whatsapp

संघी मानसिकता से जुड़ी बीजेपी में सब झारखंड और आदिवासी-मूलवासी विरोधी ही क्यों? क्यों लिंगायत समुदाय को अलग धर्म के रूप में मान्यता मिलने पर बधाई देने वाला शख्स भाजपा में जाते ही संरना धर्म विरोधी हो जाता है?

रांची :  19 मार्च 2018, प्रेस को पत्र जारी कर बाबूलाल मरांडी लिंगायत समुदाय को अलग धर्म के रूप में मान्यता देने के लिए कर्नाटक सरकार को बधाई दे। सच भी उभारे कि कर्नाटक में 17 प्रतिशत लिंगायत समुदाय की अलग धर्म के लिए लम्बे संघर्ष का परिणाम है। और बाबूलाल उस रिपोर्ट को उदाहरण के तौर पर रखते हुए तत्कालीन रघुवर सरकार को नसीहत देने से न चूके। कि झारखंड में सरना धर्मावली भी सरना को अलग धर्म के रूप में मान्यता दिलाने के लिए लंबे वर्षों से संघर्षरत हैं। तो इसी तर्ज पर झारखंड सरकार भी सरना धर्म को एक अलग धर्म के रूप में मान्यता देने के लिए प्रस्ताव केन्द्र को भेजे। और भाजपा की संघी मानसिकता उनके सुझाव को ठुकरा दे।  

मौजूदा दौर में झारखंड संघी मानसिकता वाली नहीं, आंदोलनकारी, झारखंडी मानसिकता वाली सत्ता को जी रहा है। लेकिन समस्या यह नहीं है कि हेमंत सत्ता ने 2018 के जेवीएम मानसिकता के बाबूलाल की नसीहत मानते हुए सरना कोड का प्रस्ताव केंद्र को भेज दिया है। समस्या उसके आगे की है जहाँ बाबूलाल मरांडी अब भाजपा के हैं। और अपनी उस नसीहत का ही विरोध कर रहे हैं, जिसका सम्बन्ध आदिवासी अस्तित्व से है।

यहीं से बड़ा सवाल उभरता है कि आखिर क्यों भाजपा और संघीय मानसिकता झारखंड और आदिवासी-मूलवासी के घोर विरोधी हैं? और भाजपा में जाने वाले पत्रवीर जैसे झारखंडी नेता को भी उसकी उसी मानसिकता को जीना पड़ता है। जहाँ वह आदिवासी मूलवासी समेत झारखंडी संस्कृति के पीठ में छुरा घोपने से नहीं चूकता है।      

संघी मानसिकता का जुड़ाव देश लूट से कैसे?

दरसल, संघी मानसिकता का जुड़ाव देश के लूट इतिहास के उस सच है। जिसके अक्स में शोषणवाद की शुरुआत हुई। और आगे चल यह मानसिकता आदिवासी-मूलवासी व गरीब की मेहनत लूट से जा जुडी। और जातिवाद के रूप में लोगों की आस्था जुड़ समाज को खोखला करती रही। देश में बलि प्रथा के रूप लगान वसूलने वाली यह मानसिकता मुग़ल दौर से खुद को एजेंट या दलाल के रूप में सस्थापित किया। अंग्रेजों के दौर में मुखबिर बने और आजादी के बाद महाजनी प्रथा के रूप में उस मानसिकता ने अपना विस्तार किया।    

मौजूदा दौर में वह शोषणवाद मानसिकता एक जमात के रूप में भाजपा में बदल गया है। और भ्रम-फूट फोर्मुले व कमंडल ले मंडल के पीछे खड़ा हो केंद्रीय सत्ता तक जा पहुंची है। साथ ही राष्ट्रीय पार्टी बन राज्यों में बाहरियों की लूट मानसिकता से जुड़ विस्तार पा रही है। जिसके अक्स में आज उसपर पूंजीपतियों के एजेंट होने के आरोप लग रहे हैं। और उनकी तमाम नीतियां देश के निरक्षरता का फायदा उठा, गरीबों की लूट शोषण के मद्देनजर, पूंजीपतियों की मुनाफे का वकालत करती दिखती है। ऐसे में उस भाजपा के लिए झारखंड जैसे राज्य में आदिवासी – मूलवासी विरोधी होना लाज़िम हो सकता है।

इस मानसिकता से जुडाव बनाने वाला या तो भ्रमित होगा या फिर महत्वाकांक्षी

जाहिर है ऐसी संघी मानसिकता से जो अपना जुडाव बनाएगा वह या तो भ्रमित होगा या फिर महत्वाकांक्षी। और उस मानसिकता से जुड़ने वालों के लिए भी उनकी शर्तों को जीवन शैली में उतारना जरुरी होगा। इसलिए तमाम भाजपा नेता का सच झारखंड जैसे राज्य में आदिवासी-मूलवासी विरोधी होने के सच से जुड़ा है। और जहां बाबूलाल जैसे शख्सियत का सच एक प्रचारक से लेकर भाजपा के मुख्यमंत्री तक के सफ़र से जुड़ा हो। वहां उसकी विचारधारा में बदलाव अवसरवादिता और महत्वाकांक्षा का ही रूप हो सकता है। जहां उनकी विचारधारा अपने समुदाय के पीठ में छुरा घोंपने से भी नहीं चूकती। स्पष्ट उदाहरण हो सकते हैं।

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on telegram
Share on whatsapp

This Post Has One Comment

  1. Pingback: बाबूलाल का स्वार्थी महत्वाकांक्षा झारखण्डी जनता के लिए घातक - Jharkhand Khabar

Leave a Reply Cancel reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

मधुपुर उपचुनाव:

मधुपुर उपचुनाव: भाजपा की नफरत की राजनीति का जवाब झामुमो विकास की राजनीति से देती

दलबदलू प्रत्याशी की राह नहीं आसान

मधुपुर उपचुनाव : दलबदलू जमात के बीच दलबदलू प्रत्याशी की राह नहीं आसान

सहयोगी और गठबंधन धर्म

सहयोगी और गठबंधन धर्म…इसे कहते हैं , महागठबंधन से सीखे भाजपा-आजसू!

नेशनल सिक्योरिटी खतरे में -अमीत शाह

बंगाल में बीजेपी सत्ता नहीं आयी तो देश की नेशनल सिक्योरिटी खतरे में -अमीत शाह

जेपीएससी नियमावली । खनन नहीं पर्यटन । खेल नीति ।

जेपीएससी नियमावली । खनन नहीं पर्यटन । खेल नीति । पहली बार कई काम महज 1 बरस में

पुरुषोत्तम राम

भाजपा रामराज में पुरुषोत्तम राम और सीता मैया की सेवा करते अनुज भारत

Previous Post

मधुपुर उपचुनाव - उधार या हाईजैक उम्मीदवार के भरोसे भाजपा और आजसू !

Next Post

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का असम उपस्थिति के मायने

बाबूलाल मरांडी का ट्वीट

भाजपा के बाबूलाल मरांडी का ट्वीट भी ब्लैकमेल व धमकी का ही एक रूप

खेल और खिलाड़ियों

भाजपा शासन में झारखंड में खेल और खिलाड़ियों को मिली सिर्फ बार्बादी

झारखंड की सत्ता में हेमंत सोरेन

झारखंड की सत्ता में हेमंत सोरेन की मौजूदगी जरूरी क्यों? भाग-1

बाबूलाल जी का स्वार्थी महत्वाकांक्षा

बाबूलाल का स्वार्थी महत्वाकांक्षा झारखण्डी जनता के लिए घातक

नक्सली सरेंडर अपील के मायने

होली की बधाई के बीच झारखंड में नक्सली सरेंडर अपील के मायने

Copyright 2021 - Jharkhandkhabar