बीजेपी नेताओं का फर्जी डिग्री का सहारा लेना -अशिक्षित होने का सबूत 

भारतीय राजनीति धर्म आधारित सवर्ण-शुद्र इतिहास का प्रतिबिम्ब. जो वर्ग एकलव्य का अंगूठा काट उसका टाईलेंट कुचलता है वही फर्जी डीग्री के आसरे द्रोणाचार्य होने का दंभ भरता है. अब समाज इसे अनपढ़, अज्ञानी व स्टंट जो चाहे नाम दे.

रांची : पिछले 1000 वर्षों के भारतीय धार्मिक इतिहास को देखने से मालूम पड़ता है कि धार्मिक ठेकेदारों को ज्ञान-विज्ञान, मानवीय जीवन शैली व शिक्षा से दूर-दूर तक का नाता नहीं रहा है. उनकी दुकानें तो अज्ञानता, लोक-परलोक के भ्रम की घुंटी, विभाजन व सामाजिक तनाव पर ही अपना अस्तित्व बरकरार रखती है. वर्तमान में बीजेपी में ऐसे मानसिकता कि भरमार है. नतीजतन, बड़े व अनुभवी पत्रकार कहने से नहीं चूकते कि देश की राजनीति में दागी नेताओं भीड़ बढ़ चली है.

बीजेपी नेताओं का फर्जी डिग्री का सहारा लेना -अशिक्षित होने का सबूत

दुनिया में भारत का पहचान बुद्ध-असोक के धम्म का अनुकरण करने वाला है. जिसकी नीव ज्ञान, विज्ञान, सत्य, प्रेम, सौहार्द व लोभ रहित आत्मचिंतन पर आधारित है. यही कारण है कि दुनिया न केवल बुद्ध को विश्वगुरु की उपाधि से नवाजती है, बुद्ध के पंचशील सिद्धांतों पर अडिग खड़े भारत को नमन भी करती हैं. लेकिन, भारत के राजनीति में स्कूली डीग्री की अनिवार्यता नहीं होने के बावजूद बीजेपी के मोदी, निशिकांत दुबे सरीखे नेताओं का फ़र्जी डिग्री का सहारा लिया जाना भारत के उस महान ऐतिहासिक छवि को धूमिल करती है.

भारतीय राजनीति धर्म पर आधारित सवर्ण-शुद्र इतिहास का प्रतिबिम्ब

ज्ञात हो, भारतीय राजनीति धर्म पर आधारित सवर्ण और शुद्र के जीवनशैली, सोच व शोषण का प्रतिबिम्ब है. एक तरफ जो वर्ग एकलव्य का अंगूठा काट उसके टाईलेंट को कुचल देता है तो दूसरी तरफ वही फर्जी डीग्री के आसरे द्रोणाचार्य होने का दंभ भरता है. अब समाज इसे अनपढ़, अज्ञानी व स्टंट जो चाहे नाम दे, लेकिन, आखिरी सत्य तो यही है कि संविधान के अक्षरों को रौंद बीजेपी द्वारा शुरू की गयी यह परम्परा फिर से ऐतिहासिक शुद्र दमन का आईना ही तो है. जो न समाज और ना ही देश के लिए सही हो सकता है. 


वर्तमान में, इसका एक और उदाहरण झारखण्ड प्रदेश में भी देखा जा सकता है. जहाँ निशिकांत दुबे जैसे फर्जी द्रोणाचार्य के द्वारा सरकारी संस्थाओं व फर्जी एजेंडों के आसरे, झारखन्डी एकलव्य द्वारा जन हित के अधिकार संरक्षण में उठाये गए, स्थानीय नीति, नियोजन नीति, OBC आरक्षण, सरना धर्म कोड जैसे निर्णायक कदम को बाधित करने का प्रयास किया गया है. जो न केवल एक बार फिर एकलव्य के टैलेंट को कुचलने प्रयास के रूप में देखा जा सकता है, फर्जी डिग्री के दुष्परिणाम को भी समझना आसान बना सकता है.

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