भाजपा काल में जन्म के आधार पर दलित-आदिवासी की पहचान होने भर से ही वह गुनहगार

बाबूलाल मरांडी दलित-आदिवासी मामले में यदि सुनील तिवारी को पाक साफ बता रहे हैं तो सुनील तिवारी कानून का सामना क्यों नहीं कर रहे? –  क्यों फरार है?

भाजपा-संघ काल में, जन्म के परंपरागत आधार पर एक दलित-आदिवासी की पहचान भर ही, उनके गुनाहों की फेहरिस्त को पूरी कर देती है. और बतौर सज़ा सूक्ष्म रूप में बहुत सारे अधिकार भाजपा नेता, कार्यकर्ता व करीबियों को मिल जाते है. जो ख़ूब चलन में भी हैं. महज चंद सप्ताह पहले की बात है, कवयित्री नीलम को केवल इसलिए उनके विभाग की एक शिक्षक ने ही थप्पड़ मारा. क्योंकि वह मिनट्स पढ़ने लगीं. उन्होंने कहा कि वे पढ़ कर ही दस्तखत करेंगी. बस इतना भर के लिए ही विभागाध्यक्ष ने उन्हें चांटा मार दिया.

दरअसल संविधान ने जो बराबरी का अधिकार दिया है, दलित-आदिवासी नागरिकों ने जिसे पढ़ाई के माध्यम से संभव किया है, उसे संघ विचारधारा पर आधारित भाजपा नेताओं का एक बड़ा तबका स्वीकार करने को तैयार नहीं. उसे न शील की परवाह है और न क़ानून की. और सत्ता की ताक़त उन्हें इसके लिए भरपूर मदद व ताक़त भी मुहैया करती है. मसलन, नीलम ने एफआईआर तो लिखवाई, लेकिन भाजपा शासन में मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. 

संघ प्रचारक बाबूलाल मरांडी ने भाजपा कार्यालय तक को दुष्कर्मी के बचाव में झोका 

इसका एक और उदाहरण झारखंड में भी देखा गया, जहाँ एक आदिवासी समुदाय से आने वाले मुख्यमंत्री हैं. इस प्रदेश में, भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के राजनीतिक सलाहकार सुनील तिवारी के खिलाफ थाने में प्राथमिकी दर्ज हुई. जिसमें पीड़िता ने उस पर जबरन शारीरिक संबंध बनाने और विरोध करने पर मारपीट करने व  जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया. मामले में जब प्रशासनिक कार्रवाई होने लगी तो स्वयं संघ प्रचारक बाबूलाल मरांडी, जो प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं, ने भाजपा कार्यालय तक को दुष्कर्मी के बचाव में झोंक दिया. और मामले को राजनीतिक षड्यंत्र करार देने में जुट गए.

दर्ज प्राथमिकी पर पुलिस ने न्यायालय में पीड़िता का 164 का बयान दर्ज कराया. न्यायालय ने यौन शोषण मामले में आरोपी के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया है. जारी वारंट में सुनील को अविलंब गिरफ्तार कर कोर्ट में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है. लेकिन, बाबूलाल मरांडी के सलाहकार, आरोपी फरार है. ऐसे में महत्वपूर्ण सवाल है कि यदि वह बेगुनाह है तो फरार क्यों है? बाबूलाल जी क्यों नहीं उसे न्यायालय में पेश होने को कहते हैं. हालांकि, गिरफ्तारी के मद्देनजर पुलिस छापेमारी कर रही है. मसलन, जहाँ भाजपा सत्ता है वहां भले ही दलित-आदिवासी को जला दिया जाए, गुनहगार बच जाता है. और जहाँ भाजपा शासन नहीं वहां पार्टी गुनहगार को बचाने में लग जाती है.

बाबूलाल मरांडी सुनील तिवारी को पाक साफ बता रहे हैं तो कानून का सामना क्यों नहीं कर रहे? फरार क्यों?

गौरतलब है कि झारखंड आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. और राज्य का मुखिया कानून व्यवस्था के मामले काफी संवेदनशील देखे जाते है. मसलन, प्रदेश में केंद्रीय सरना समिति समेत तमाम आदिवासी संगठनों में आक्रोश है. उन्होंने भाजपा के शीर्ष नेता बाबूलाल मरांडी व उनके राजनीतिक सलाहकार, आरोपी सुनील तिवारी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, उनका पुतला फूंक भाजपा के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया है.

केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष नारायण उरांव का कहना है कि सुनील तिवारी ने आदिवासी बहन के साथ यौन शोषण किया है. यह दुष्कर्म एक एससी-एसटी एक्ट का भी मामला है. अपने ही घर में काम करनेवाली बेटी समान युवती पर गंदी नजर डालना एक घृणित कार्य है. उनका कहना है कि यदि बाबूलाल मरांडी सुनील तिवारी को पाक साफ बता रहे हैं तो सुनील तिवारी फरार क्यों है? वे क्यों कानून का सामना नहीं कर रहे? …ऐसे लोग बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देते हैं।

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