भाजपा-आजसू की रैली से राजधानी में फैली अराजकता 

भाजपा नेता-कार्यकर्ताओं का रैली में व्यवहारकर रहा स्कूल के बिगड़ैल बच्चों से भी निम्न. सड़क पर दिखा मनुवाद का नंगा रूप

आदिवासी संगठनों द्वारा निकाली गई शांतिपूर्ण-रैली से इन्हें लेनी चाहिए सीख

रांची : बुधवार 8 सितंबर – राजधानी रांची में प्रदेश भाजपा द्वारा पैदा की गयी अराजकता में राज्य को संघ के भविष्य की झारखंड का रूप दिखा. बिना अनुमति रांची में निकाली गयी इस रैली को अराजक भीड़ कहा जा सकता है. मुद्दा विहीन हजारों लोग एकत्र हो विधानसभा घेराव की मंशा से बढ़ चले थे. पुलिस-मजिस्ट्रेट के बार-बार समझाने के बावजूद बैरिकेडिंग तोड़ा गया. सरकारी सम्पति को नुक्सान पहुंचाते हुए शहर में अराजकता की स्थिति उत्पन्न की गयी. अंतिम विकल्प के तौर पर पुलिस – प्रशासन को लाठीचार्ज करना पड़ा. नियम-कानून तोड़ने के मद्देनजर हुई कार्र्वाई के बीच सरकार को तानाशाही करार देना उस विचारधारा की समझ मनुवाद का परिचय भर हो सकता है . 

मोरहाबादी मैदान से मुख्यमन्त्री आवास का घेराव करने निकले आजसू की रैली में भी संगत का असर दिखा, समान अराजकता का भाव दिखा. पुलिस को यहाँ भी लाठीचार्ज करना पड़ा. दोनों ही प्रदर्शनों में राज्य के विपक्षी दलों का व्यवहार बिगड़ैल स्कूली बच्चों की तरह रही. न उन्हें नियम कानून की परवाह थी और न ही आम जनता को होनेवाली तकलीफ से कोई मतलब. इस रैली की वजह से शहर में जहां -तहां जाम लग गया. हजारों आम नागरिक सड़कों पर घंटों फंसे रहे. जरूरी काम से निकले लोग परेशान होते रहें. लोगों की परेशानी के लिए सीधे तौर पर प्रदेश भाजपा के नेता-कार्यकर्ता जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जाना चाहिए?  

आदिवासी संगठनों के द्वारा आहूत प्रदर्शन रहा शांतिपूर्ण

ज्ञात हो, बुधवार को ही एक और रैली निकली थी. आदिवासी संगठनों के द्वारा आहूत यह रैली शांतिपूर्ण ढंग से निकाली गई. रैली निर्धारित धरना स्थल पर तक पहुंची. धरना स्थल पर शांतिपूर्वक लोग बैठे और अपनी मांगों के समर्थन में ज्ञापन सौंपा. आदिवासी संगठनों के लोग धार्मिक स्थल से अलग दूसरी जगह पर एकलव्य विद्यालय खोलने की मांग कर रहे हैं. यहां पर कोई अराजकता नहीं दिखी और न ही लोगों को परेशानी हुई. 

आदिवासी संगठनों की रैली प्रदर्शन से भाजपा और आजसू दोनों को ही सीखना चाहिए. लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों का प्रदर्शन का रूप व्यवहार के दृष्टिकोण से शांतिपूर्ण होना चाहिए. जनता को अपने राजनीतिक दल से यही अपेक्षा भी होती है, जो उन्हें सीखना चाहिए. ज्ञात हो, देश ने यही प्रदर्शन 2014 आम चुनाव के पहले भी देखा था. मौजूदा दौर में उसकी तपिश जनता महंगाई व तानाशाह मोदी सरकार के रूप में झेल रही है.

मसलन,  जिन मुद्दों के आसरे भाजपा राजधानी में आराजक हुई, उससे राज्य की मूल जनता का नाता ही नहीं हो सकता. दरसल, भाजपा मुद्दों के आड़ में बाहरियों का एजेंडा को उग्र रूप देने का प्रयास कर रही है. खुद धर्म के अक्स में सांप्रदायिक राजनीति करती है और दूसरों पर तुष्टीकरण का आरोप लगाती है. आखिर इस दोहरे मानदंड के भाजपा विचारधारा से कब उपर उठेंगे झारखंड के मूल  भाजपा नेता- कार्यकर्ता. यह सवाल है….

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