झारखण्ड के मूल मुद्दों के साथ कभी खड़ा न होने वाली आजसू आज मुखौटा बन सफाई से जन आक्रोश को बीजेपी हित में भुनाने को कर रहा प्रयास. बड़ा सवाल – साथी बीजेपी पर 1932 के लिए प्रेशर न बनाने वाले आजसू को राज्य कैसे ईमानदार माने?
रांची : बीजेपी व संघ की राजनीति पद्धति जनता को भ्रमित करने व झूठे डरावने एजेंडे पर हमेशा ही निर्भर रहती है. इसके लिए देश भर में राज्यों के कई मुखौटे वह धनबल के आसरे अपने साथ रखती है. फिर पहले वह संस्थानिक दुरूपयोग से अपने विशाल आईटी सेल के माध्यम से एजेंडे फैला आम जन को आक्रोशित करती देखि जाती है. और फिर सम्बंधित मुखौटे को आगे कर अपने सत्ता प्राप्ति के मिशन पर जुट जाती है.
वर्तमान में इसका प्रत्यक्ष उदाहरण फिर से एक बार झारखण्ड पदेश में देखा जा रहा है. ज्ञात हो इस राज्य में लम्बे समय तक विपक्ष व आजसू की सत्ता रही है है. उसके द्वारा कभी नियोजन व स्थानीय नीति पर पहल नहीं हुई. बल्कि 60-40 व 1985 जैसे नीतियों के आसरे राज्य को ठगा गया. वर्मान में जब हेमन्त सरकार में 1932 आधारित स्थानीय निति, सरना धर्म कोड, आरक्षण जैसे विधेयक विधान सभा से पारित हुए तो उसे रोकने के लिए बीजेपी ने पूरी संस्थानिक ताक़त लगा दी.
साथ ही मूलवासी समर्थित नियोजन नीति को बीजेपी कार्यकर्ता, बाहरियों व कोलेजियम सिस्टम के आसरे निरस्त किया गया. लेकिन मजेदार पहलू यह है कि झारखण्ड के मूल मुद्दों के साथ कभी भी खड़ा न होने वाली आजसू व उसके नेता आज मुखौटा बन सफाई से बीजेपी के फैलाए जन आक्रोश को बीजेपी हित में भुनाने के लिए खड़ी दिख रही है. ऐसे में बड़ा सवाल है कि अपने साथी बीजेपी पर 1932 के लिए प्रेशर न बनाने वा