प्रश्नपत्र लीक जैसे सामन्ती हथियार के विरुद्ध पास हुआ विधेयक

झारखण्ड: सीएम हेमन्त का सदन में कहना यह विधेयक कदाचार पर कार्रवाई करगा. नियुक्तियों में 80% मूलवासियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने में मदद करेगा. क्या सामंतियों को डरा रहा है?

रांची : आर्थिक व अधिकार लूट के अक्स में प्रश्नपत्र लीक अपराध युवाओं को न्यायपूर्ण व सामानपूर्ण अवसरों से वंचित करता है. भ्रष्टाचार के कैनवास में यह अपराध परीक्षा नियंत्रण निकायों के अधिकारियों के द्वारा किए जाने के सच से जुड़ा है. आंकड़े बताते हैं, झारखण्ड समेत देश भर के सभी संस्थाओं के पिरामिड के टॉप पर सामंती वर्ग का एकछत्र कब्जा है. जिसके अक्स में झारखण्ड जैसा आदिवासी, दलित और पिछड़ा बाहुल्य राज्य 70 फीसदी बाहरी नियुक्तियों काला सच लिए हुए है.

प्रश्नपत्र लीक जैसे सामन्ती हथियार के विरुद्ध पास हुआ विधेयक

ऐसे में इस अपराध पर अंकुश लगाने के मद्देनजर, उत्तराखंड में तानाशाही प्रावधानों के साथ विधेयक पारित करने वाली बीजेपी का झारखण्ड के लचीले विधेयक के विरुद्ध, अमर बाउरी जैसे दलित चेहरे के आसरे अड़ना, उसकी सामन्ती मंशा और अपराधिक सांठ-गांठ की झलक भर हो सकती है. यदि यह अपराध झारखण्ड के मूलवासियों के त्रासदी के मुख्य कारणों से जुड़े होने का सच लिए हो, तो इसके रोकथाम में झारखण्ड में पारित विधेयक के लिए सीएम हेमन्त की सराहना होनी चाहिए.

हेमन्त सरकार का प्रश्नपत्र रोकथाम विधेयक नियुक्तियों में 80% मूलवासियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने में साबित होगा मददगार 

झारखण्ड के सदन में सीएम हेमन्त के द्वारा स्पष्ट कहा जाना कि कार्रवाई कदाचार के खिलाफ होगी. यह विधेयक सरकारी नियुक्तियों में 80% मूलवासियों उपस्थिति सुनिश्चित करने में मदद करेगा. सीएम के यह शब्द शायद इस अपराध में संलग्न सामन्ती अधिकारियों और सामंती नेताओं के गठजोर को डरा रहा है. मसलन, उस दहशत का सदन में परीक्षार्थियों के आड़ में इस विधेयक के विरुद्ध खड़ा होना, उसके भ्रष्टाचार के रैकेट को संरक्षण देने का प्रयास से जोड़ कर अवश्य देखा जाना चाहिए. 


चूँकि झारखण्ड एक आदिवासी, दलित व पिछड़ा बाहुल्य राज्य है. इसलिए, यह विधेयक सामंतियों के आख में किरकिरी लिए होने सच से जा जुड़ा है. ज्ञात हो, मौजूदा वक़्त में पिछड़ों का कट ऑफ जेनरल केटेगरी से ज्यादा हो चला है. ऐसे में प्रश्नपत्र लीक जैसा अपराध सामन्ती वर्गों के लिए वरदान से कमतर नहीं आंका जा सकता है. ऐसे में इस सामन्ती सोच पर एक आदिवासी सीएम हेमन्त सोरेन का विधेयक के आसरे हमला, मूलवासियों के अधिकार रक्षा में मिल का पत्थर साबित होगा.

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